जानें उस गिलगित-बाल्टीस्तान के बारे में सब-कुछ जिस पर आजादी के बाद से है पाकिस्तान का कब्जा
पीओके से छह गुना बड़ा है गिलगित-बाल्टीस्तान। पिछले 70 वर्षों से भारत इसे जम्मू कश्मीर का अंग बताता आया है और उसकी इसी बात पर अब ब्रिटेन की संसद ने भी मोहर लगा दी है।
इस्लामाबाद। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज ने उन्हें गिलगित-बाल्टीस्तान को देश का पांवचां प्रांत घोषित करने की सलाह दी है। अजीज की इस सलाह को ब्रिटिश संसद की ओर से करारा झटका लगा है। आइए आपको इसी गिलगित-बाल्टीस्तान के बारे में कुछ खास बातें बताते हैं।
ब्रिटिश संसद में आया प्रस्ताव
ब्रिटेन की संसद की ओर से एक प्रस्ताव पास किया गया है। इस प्रस्ताव में गिलगित-बाल्टीस्तान को जम्मू कश्मीर का हिस्सा बताया गया है और इस पर पाकिस्तान के कब्जे को गैर-कानूनी करार दिया गया है। पिछले 70 वर्षों से भारत भी इसी बात को कहता आया है लेकिन हर पाकिस्तान ने उसकी बात को अनसुना कर दिया है। ब्रिटेन की संसद ने वर्ष 1947 से पाक को कब्जे को गैर-कानूनी तो करार दिया ही है साथ ही उसने इसे जम्मू कश्मीर का संवैधानिक हिस्सा बताया है।
कहां पर है गिलगित बाल्टीस्तान
गिलगित-बाल्टीस्तान, कश्मीर घाटी के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में हिमालय की वादियों में स्थित है। पाकिस्तान ने वर्ष 1947 में हुए बंटवारे के बाद से ही इस पर अपना कब्जा कर रखा है। गिलगित-बाल्टीस्तान, आजादी से पहले जम्मू-कश्मीर की रियासत के तहत आते थे।
जम्मू कश्मीर के महाराजा की थी रियासत
गिलगित-बाल्टीस्तान पर भी जम्मू कश्मीर के महाराजा की रियासत चलती थी। गिलगित-बाल्टीस्तान में रियासत के पांच क्षेत्र थे-जम्मू कश्मीर, लद्दाख, गिलगित वजारात और गिलगित एजेंसी। वर्ष 1917 में सोवियत संघ का गठन हुआ और यहां से समीकरण बदलने लगे। ब्रिटेन ने वर्ष 1935 में जम्मू कश्मीर के राजा से गिलगित एजेंसी को 60 वर्षों की लीज पर लिया।
क्या हुआ बंटवारे के बाद
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारत में आजादी की जंग और बढ़ने लगी और ब्रिटिश शासकों पर दबाव बढ़ने लगा। तय हुआ कि भारत और पाकिस्तान को दो हिस्सों में बांटा जाएगा। तब भारत में जो शाही रियासतें थीं उनका उनकी इच्छा के हिसाब से दोनों देशों में विलय कर दिया गया। ब्रिटिश शासकों ने गिलगित एजेंसी को जम्मू कश्मीर के महाराजा को वापस कर दिया। भारत को आजादी मिलने के 15 दिनों बाद गिलगित पर भी जम्मू कश्मीर के महाराजा की शासन हुआ।
आजादी के बाद क्या हुआ
आजादी के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच सीमाएं बन गईं। जम्मू कश्मीर रियासत के महाराजा ने फैसला किया कि वह न तो भारत की ओर से दिया गया कोई पद ग्रहण करेंगे और न ही पाकिस्तान की ओर से। लेकिन अक्टूबर 1947 में जब पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर में घुसपैठ की तो हालात बदल गए।
पाकिस्तान ने किया कब्जा
उस समय पाकिस्तान पूरे गिलगित क्षेत्र पर अपना कब्जा कर लिया। इसे ही आज गिलगित-बाल्टीस्तान के तौर पर जानते हैं। ब्रिटिश मिलिट्री के एक ऑफिसर ने महाराजा के साथ धोखा किया था और तब पाकिस्तान को सफलता मिल सकी थी। लीज के तहत गिलगित-बाल्टीस्तान की रक्षा ब्रिटेन नियंत्रित सेनाएं करती थीं इसे गिलगित स्काउट्स कहते थे। जब ब्रिटेन ने लीज खत्म कर दी तो उन्होंने दो ऑफिसर्स मेजर डब्लूय ए ब्राउन और कैप्टन एएस मैथेसन को इन दोनों ऑफिसर्स को महाराजा के अनुरोध पर सुरक्षा के लिए लगाया था।
31 अक्टूबर को भारत का हिस्सा बना जम्मू कश्मीर
दोनों को नई व्यवस्था होने तक सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई थी। 31 अक्टूबर 1947 को जम्मू कश्मीर के महाराज हरी सिंह ने राज्य के भारत में विलय से जुड़े कागजात साइन किए। इसके बाद मेजर ब्राउन ने बगावत कर दी और महाराजा के गर्वनर घंसारा सिंह को बंधक बना लिया। मेजर ब्राउन ने तब अपने पूर्व ब्रिटिश बॉस जो कि पेशावर में थे, उन्हें गिलगित के पाकिस्तान में विलय की जानकारी दी।
ब्रिटेन ने दिया साथ
कहते हैं कि मेजर ब्राउन के इस फैसले को ब्रिटेन का साथ मिला और ब्रिटेन ने पाकिस्तान के बनने के बाद अरब देशों की प्रतिक्रिया को समझा था। ब्रिटेन इन देशों के विरोध में नहीं जाना चाहता था क्योंकि यह देश तेल और दूसरे खनिजों के नजरिए से काफी अमीर थे। ब्रिटेन ऐसे समय मुसलमान विरोधी फैसला नहीं लेना चाहता था जब उसे सोवियत संघ के दबाव डर सता रहा था।
पाकिस्तान की सेना ने किया कब्जा
मेजर ब्राउन एक नवंबर 1947 को चले गए और पाकिस्तान की सेना ने चार नवंबर को गिलगित बाल्टीस्तान पर अपना कब्जा कर लिया। तब से ही गिलगित-बाल्टीस्तान पर पाकिस्तान की सरकार का नियंत्रण है। इस क्षेत्र पर कब्जा करने के बाद पाकिस्तान ने गिलगित वजारात और गिलगित एजेंसी का नाम बदलकर नॉर्दन एरियाज ऑफ पाकिस्तान कर दिया। आज इस हिस्से पर पाकिस्तान की सरकार का सीधा नियंत्रण है।
चुनी हुई विधासनसभा भी यहां
आज गिलगित-बाल्टीस्तान में एक चुनी हुई विधानसभा है जिसकी शक्तियां सीमित हैं। इस क्षेत्र को एक काउंसिल चलाती है जिसके मुखिया पाकिस्तान के प्रधानमंत्री हैं। गिलगित-बाल्टीस्तान को एक अलग भू-क्षेत्र के तौर पर देखा गया है। गिलगित-बाल्टीस्तान का कोई जिक्र पाकिस्तान के संविधान में भी नहीं है।
सीपीईसी से बदलीं चीजें
लेकिन जब यहां पर चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरीडोर (सीपीईसी) की शुरुआत हुई तो यहां के स्थिति बदलने लगी। आपको बता दें कि पाकिस्तान ने भारत और चीन के बीच हुए युद्ध के एक वर्ष बाद वर्ष 1963 में चीन को गिलगित-बाल्टीस्तान का करीब 5,000 से 8,000 स्क्वॉयर किलोमीटर का एरिया चीन को तोहफे में दे दिया था।