पाकिस्तान पर हमले को तैयार हैं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जुलाई में लेंगे बड़ा फैसला
वॉशिंगटन। ऐसा लगने लगा है कि अमेरिका की कई अपीलों के बाद भी पाकिस्तान अपनी सरजमीं पर मौजूद आतंकी संगठनों के खिलाफ कोई कार्रवाई करने के मूड में नहीं है। पाकिस्तान के ढीले रवैये को देखते हुए ही अब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तय किया है कि वह खुद आतंकियों से निबटेंगे। राष्ट्रपति ट्रंप और उनका प्रशासन पाकिस्तान के आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए रेडी नजर आ रहा है। न्यूज एजेंसी रायटर्स ने अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से इस बात की जानकारी दी है।
पाकिस्तान पर होंगे ड्रोन हमले
राष्ट्रपति ट्रंप ने पाकिस्तान पर होने वाली संभावित कार्रवाई के बारे में अपने प्रशासन से चर्चा की है। इसमें ड्रोन हमलों से लेकर, पाकिस्तान को मिलने वाली आर्थिक मदद तक बंद करने पर विचार हुआ है। यहां तक कि गैर-नाटो साथी के तौर पर पाकिस्तान का स्टेटस भी खत्म करने की संभावना पर विचार किया जा रहा है। जिस अधिकारी ने यह जानकारियां रायटर्स को दीं उसने नाम बताने से साफ इनकार कर दिया।
कितना सफल होगा अमेरिका
हालांकि कुछ अमेरिकी अधिकारियों को इस बात का अंदेशा भी है कि इन सभी विकल्पों को सफलता मिल सकेगी या नहीं। उनका तर्क है कि पहले के अमेरिकी अधिकारियों ने आतंकियों को मिलने वाले समर्थन की वजह से पाकिस्तान पर जितने भी अंकुश लगाने की कोशिशें की हैं वे सभी असफल साबित हुई हैं। इसके अलावा भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती करीबियों की वजह से इस बात की संभावनाएं भी कम हो गई हैं कि अमेरिका को कोई सफलता मिल सकेगी।
पेंटागन ने साधी चुप्पी
अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि उन्हें पाकिस्तान से बड़ा सहयोग चाहिए न कि उसके साथ संबंध खराब करने हैं। एक बार अफगानिस्तान में 16 वर्षों से जारी युद्ध पर रणनीति की समीक्षा हो जाए, उसके बाद ही कोई बड़ा फैसला लिया जाएगा। वहीं पेंटागन और व्हाइट हाउस की ओर से इस पर किसी भी तरह की टिप्पणी करने से साफ इनकार कर दिया है। साथ ही वॉशिंगटन स्थित पाकिस्तान के दूतावास की ओर से भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई है।
अफगानिस्तान के हालातों के लिए जिम्मेदार पाक
ट्रंप प्रशासन का मानना है कि आतंकियों के लिए पाकिस्तान के नरम रवैये की वजह से अफगानिस्तान में जारी संघर्ष अब बद से बदतर हालातों में पहुंचता जा रहा है। अमेरिकी विशेषज्ञों की मानें तो पाकिस्तान ने ही तालिबान से जुड़े आतंकी संगठनों को अफगानिस्तान में खतरनाक आतंकी हमलों की मंजूरी दी है और जमीन पर आतंकी संगठन के खिलाफ हो रहे हमलों के बावजूद यह फिर से ताकतवर हो गया है।
अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की तैनाती
हालांकि राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप का रवैया पाकिस्तान के लिए काफी हद तक बदला है लेकिन अब ट्रंप क्षेत्रीय रणनीति के बाद पाकिस्तान पर कोई बड़ा फैसला लेना चाहते हैं। अमेरिका, अफगानिस्तान में और सैनिक भेजना चाहता है लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक पाकिस्तान में छिपे आतंकवादियों को निशाना नहीं बनाया जाएगा, तब तक अमेरिकी सैनिकों पर खतरा बरकरार रहेगा।
पाक ने किया इनकार
पाकिस्तान हमेशा से ही इस बात से इनकार करता आया है कि उसका देश आतंकियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह है। पाकिस्तान अमेरिकी इंटेलीजेंस एजेंसी सीआईए के उस दावे को भी नहीं मानता है कि आईएसआई के हक्कानी नेटवर्क के साथ संबंध हैं, जो कि अफगानिस्तान में कई खतरनाक आतंकी हमलों के लिए जिम्मेदार है।
वर्ष 2004 में बुश ने लिया अहम फैसला
वर्ष 2004 में पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने पाकिस्तान को गैर-नाटो साथी देश का दर्जा दिया था। उस समय अमेरिका को अल-कायदा और तालिबान से निबटना था और इसलिए बुश के उस फैसले को काफी अहम माना गया। इस दर्जे के बाद पाकिस्तान को कुछ सीमा के अंदर काफी फायदे भी मिले। पाकिस्तान को अमेरिका के अतिरिक्त मिलिट्री हार्डवेयर तेजी से मिलने लगे और यह सबसे बड़ा फायदा साबित हुआ।
अमेरिका से मिली बिलियन डॉलर की मदद
पाकिस्तान को वर्ष 2002 से अमेरिकी मदद के तौर पर 33 बिलियन डॉलर मिल चुके हैं और इनमें से 14 बिलियन डॉलर कोऑलिएशन सपोर्ट फंड यानी सीएसएफ के तहत मिले थे। सीएसएफ अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन का प्रोग्राम है जो काउंटर-इनसर्जेंसी ऑपरेशंस के लिए चलाया जाता है।
पिछले वर्ष रुकी 300 मिलियन डॉलर की मदद
पिछले वर्ष पेंटागन ने तय किया था कि वह पाकिस्तान को सीएसएफ के तहत मिलने वाले 300 मिलियन डॉलर की रकम नहीं देगा। यह फैसला तब लिया गया जब तत्कालीन अमेरिकी रक्षा सचिव एश कार्टर ने यह कहते हुए फंड से जुड़े डॉक्यूमेंट को साइन करने से इनकार कर दिया कि पाकिस्तान हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ जरूरी कार्रवाई नहीं कर रहा है।