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ब्लॉग: 'लॉटरी लगे तो एलओसी भी कुछ न बिगाड़ पाएगी'

भारत और पाकिस्तान में ग़लती से नियंत्रण रेखा पार करने वालों पर वुसतुल्लाह ख़ान

By वुसतुल्लाह ख़ान - पाकिस्तान से बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए
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भारतीय सेना का जवान
AP
भारतीय सेना का जवान

जब पिछले वर्ष सितंबर में भारत प्रशासित कश्मीर के उड़ी में चरमपंथी हमला हुआ तो उसके तीन दिन बाद दो युवा भी गिरफ़्तार हुए जिनके बारे में भारतीय टीवी चैनल्स पर ब्रेकिंग न्यूज़ फ्लैश होनी शुरू हुई कि ये दो चरवाहे हैं जो चरमपंथियों के गाइड थे.

ये भी बताया गया कि उनसे कड़ी पूछताछ हो रही है.

बाद में पता चला ये लड़के तो मुज़फ़्फराबाद के एक स्कूल में मैट्रिक में पढ़ रहे थे और सैर-सपाटे के लिए निकलते-निकलते लाइन ऑफ कंट्रोल के दूसरी तरफ़ पहुंच गए और धर लिए गए.

अब संकेत ये मिल रहे हैं कि इन लड़कों को निर्दोष पाया गया है और आशंका है कि उन्हें किसी भी दिन पाकिस्तान लौटा दिया जाएगा.

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वाघा बॉर्डर
PTI
वाघा बॉर्डर

अब से दो दिन पहले ये हुआ कि भारतीय कश्मीर की ओर से दो वर्ष पहले भटककर लाइन ऑफ कंट्रोल के इस पार आ जाने वाले गांव गुरेज के बिलाल अहमद और कुपवाड़ा के अरफाज़ यूसुफ़ को चकोटी उड़ी सेक्टर के क्रॉसिंग प्वाइंट पर पाकिस्तान के फौजियों ने तोहफों और मिठाई के साथ भारतीय अफ़सरों के हवाले किया.

बिलाल का भाई जावेद और अरफाज़ के पिताजी यूसुफ़ भी उन्हें लेने पुल पर मौजूद थे.

भारत-पाक सीमा
AFP
भारत-पाक सीमा

मगर सियालकोट के दिवारा गांव की 53 वर्षीय रशीदा बीबी इतनी खुशकिस्मत न थीं. वैसे भी उसका दिमागी संतुलन ठीक नहीं था. चुनांचे वो इसी हालत में अब से पांच दिन पहले सियालकोट-जम्मू वर्किंग बाउंड्री की तरफ निकल गईं. बीएसएफ़ के संतरियों ने देखते ही गोली मार दी और रशीदा बीबी का शव पाकिस्तानी रेंजर्स के हवाले कर दिया.

जब दो देश किसी मामले में एक-दूसरे पर भरोसा न करते हों तो ऐसा माहौल आम नागरिक के लिए नसीब की लॉटरी बन जाता है. किस्मत अच्छी है तो पकड़े जाने पर अपनी विपदा सुनाकर ज़िंदा रह गए. किस्मत ख़राब है तो मारे जाएंगे या बीसियों वर्ष एक-दूसरे की जेलों में सड़ते रहेंगे.

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भारत-पाकिस्तान के झंडे थामे लोग
AFP
भारत-पाकिस्तान के झंडे थामे लोग

मगर अच्छी बात ये है कि भारत और पाकिस्तान के दरम्यां दुश्मनी में घटाव- बढ़ाव से अलग एक तरह की अपूर्वदृष्ट समझ बढ़ती जा रही है.

उदाहरण ये है कि एक-दूसरे के भटके हुओं को वापस भेजने के काम में पहले से ज्यादा तेज़ी आ रही है.

अब पांच वर्ष के बच्चे निसार अहमद का मामला ले लीजिए जिसे उसका बाप मां से झूठ बोलकर दुबई के रास्ते जम्मू ले गया. मगर छह महीने के अंदर-अंदर एक भारतीय अदालत ने निसार की मां रुबीना कियानी की अर्ज़ी निबटा दी और इस महीने के शुरू में निसार को वाघा-अटारी बॉर्डर पर उसकी मां के हवाले कर दिया गया.

कोई रोल मॉडल है पाकिस्तान में

नवाज़ शरीफ और नरेंद्र मोदी
Reuters
नवाज़ शरीफ और नरेंद्र मोदी

अब से दस वर्ष पहले इस तरह का केस निबटने में कम से कम पांच- दस साल लगना नॉर्मल बात समझी जाती थी.. इसी तरह पहले भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे के मछुआरों को पकड़ने के बाद उन्हें जेल में डालकर भूल जाया करते थे और जब दोनों देशों के दरम्यां घड़ी दो घड़ी के लिए नेताओं की पप्पियां-झप्पियां होतीं और आसमान पर ऐसा भ्रम दिखाई देने लगता कि बस अब दोस्ती हुई कि तब हुई तो बेचारे मछुआरों को भी खुशी के समय छोड़े जाने वाले कबूतरों की तरह आज़ाद कर दिया जाता.

मगर अब साल- छह महीने मछुआरों को मेहमान रखकर छोड़ दिया जाता है ताकि नए पकड़े जा सकें. इस ट्रेजडी को कम करने में दोनों देशों की एनजीओ भी अहम भूमिका निभा रहे हैं.

विनती बस इतनी है कि आपस में भले दोनों देश एक-दूसरे के साथ कितने ही घटिया व्यवहार पर उतर आएं पर निर्दोष नागरिकों को अपने दंगल में न घसीटें.

अगर दंगल में घसीटने का इतना ही शौक़ है तो आमिर ख़ान की दंगल हमारे लिए बहुत है.

BBC Hindi
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English summary
india and pakistan people who cross line of control by mistake
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