क्यों बदल जाता है केजरीवाल के बात करने का तरीका ?
आप अगर उनकी भाषा शैली को गौरत से देखे तो आपको लग जाएगा कि मौके के साथ केजरीवाल अपने लफ्ज, लहजा और अपना स्टाइल बदल लेते है।
रैलियों में वो बाकी नेताओं की तरह गाली-गलौज और आरोप-प्रत्यारोल लगाने में कोई गुजेर नहीं करते, लेकिन जैसी ही वो टीवी पर आते है वो शालीनता का चादर ओढ़ लेते है। केजरीवाल जब टीवी स्टूडियो में बैठते हैं या मीडिया से बात करते हैं, तो शालीन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन चुनावी रैली और धरने के वक्त उनकी शब्दावली पूरी तरह बदल जाती है।
अरविंद केजरीवाल ने जब दिल्ली की सत्ता संभालते हुए शपथ लिया तो उनकी भाषा पूरी तरह अलग थी, लेकिन जैसे ही वो जनलोकपाल को लेकर धरने पर बैठे वो उपराज्यपाल से लेकर सुशील कुनार शिंदे तक को गाली लेने लगे। लेकिन बतौर सीएम भी उन्होंने अपनी भाषा के दो पहलुओं से अवगत कराया, जो एक-दूसरे से उलट थे। दिल्ली सचिवालय के अपने दफ्तर या कहीं और प्रेस कॉन्फ्रेंस करते वक्तप वो संयत रहे, लेकिन जब बात धरने पर बैठने की जगह तय करने की आई, तो केजरीवाल तू-तड़ाक पर उतरते दिखे।