दिल्ली चुनाव में केजरीवाल के सामने ये है 10 चुनौतियां
नयी दिल्ली। दिल्ली में चुनाव की सुगबुगाहट होते ही अरविंद केजरीवाल एक्शन में आ चुके है। जिस हिसाब से केजरीवाल चुनाव को लेकर उत्सुक है उससे ये कहना गलत नहीं होगा कि दिल्ली में विधानसभा चुनावों के लिए जितनी बेसब्री आम आदमी पार्टी को थी उतनी दिल्ली के किसी और राजनैतिक दल को नहीं थी। पिछले चुनाव में आप ने 28 सीटें जीतीं और उसे 29 फीसदी वोट मिले. जबकि लोकसभा चुनाव में आप चारों खाने चित हो गई, लेकि उसके वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी हुई। अब जबकि केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार है तो आम आदमी पार्टी के लिए ये साबित करना आसान नहीं होगा कि दिल्ली में केजरीवाल का जादू अब भी बरकरार है। केजरीवाल के लिए ये काम आसान नहीं है। देखिए वो 10 चुनौतियां जिससे केजरीवाल होंगे दो-चार
कैसे बचेगी साख
लोकसभा चुनाव में भले ही आप 45 सीटें जीतने का दावा कर चुकी हो, लेकिन पंजाब छोड़कर आप हर जगह फेल रही। लोकसभा में हार के बाद आप ने दिल्ली पर फोकस कर दिया है। ऐसे में अगर वो अपने गढ़ में चूक गई तो उसकी साख पर जबरदस्त संकट आ जाएगा।
कहीं फेल ना हो जाए योजना
आम आदमी पार्टी अपने आप को बदलाव की पार्टी करार देने का एक मौका नहीं गंवाती है। दिल्ली में अपने 49 दिनों की सत्ता को वो भुनाने का भरसक प्रयास करती है। लेकिन दिल्ली में हार की सूरत में राजनैतिक विकल्प के तौर पर खुद को देश के सामने रखने की आप की कोशिश नाकामयाब हो सकती है।
मोदी बड़ी चुनौती
देश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लहर चल पड़ी है। हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों ने आप के मन में डर पैदा कर दिया है। आप भले भ्रष्टाचार और 49 दिन के शासन के आधार पर वोट मांग रही है, लेकिन मोदी से टकराने के लिए ये मुद्दे फीके पड़ सकते हैं।
कार्यकर्ताओं में निराशा
लोकसभा चुनाव में हार के बाद आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं में जबरदस्त निराशा है। ऐसे में दिल्ली चुनाव से पहले केजरीवाल को अपने इन कार्यकर्ताओं में जोश भरना होगा जो उनके लिए बड़ी चुनौती है।
आप में दरार
पिछले चंद महीनों के भीतर एक के बाद एक कर कई सदस्य आम आदमी पार्टी को छोड़कर जा चुके है। बड़ी तादाद में अलग-अलग सोच के लोग उसके साथ जुट गए, लेकिन पार्टी बनने के बाद से एक के बाद एक नामी चेहरे आम आदमी पार्टी से अलग होते गए।
कैसे दबाएंगे विरोध की आवाज
आम आदमी पार्टी के भीतर कई बार विरोध के स्वर गूंजे। फिर चाहे वो आवास विनोद कुमार बिन्नी की हो या पार्टी के वरिष्ठ नेता योगेन्द्र यादव की। ऐसे में पार्टी के भीतर विरोध के स्वर को दबाना केजरीवाल के सामने बड़ी चुनौती होगी।
कैसे बचेगी खुद की इज्जत
दिल्ली के चुनावों में केजरीवाल की खुद की साख भी दांव पर लगी होगी। पहले चुनाव में 28 सीटें जीतने का कैडिट जब उन्होंने लिया तो इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन का दांव भी उनपर ही लगा है।
डोनेशन की टेंशन
लोकसभा चुनाव में पानी की तरह पैसा बहाने के बाद आप का खजाना खाली हो चुका है। ऐसे में दिल्ली चुनाव से पहले केजरीवाल को पार्टी के लिए चंदे जुटाने होंगे जो कि आसान नहीं होगा।
भाजपा के कैसे बचेंगे केजरीवाल
भाजपा चुनाव प्रचार में माहिर है। ऐसे में दिल्ली में उनका सीधा मुकाबला भाजपा के साथ होगा। केजरीवाल के सामने भाजपा को मुंहतोड़ जवाब देने की चुनौती है।
मोदी के सहारे कैंपेन
आम आदमी पार्टी ने मोदी का सहारा लेकर कैपेंन शुरु की है। मोदी फॉर पीएम और केजरीवाल फॉर सीएम का नारा लगाने वाली आप अगर ऐसा करने में कामयाब नहीं रही तो विपक्ष में बैठना उनके लिए आसान नहीं होगा।