महाराष्ट्र चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवारों के लिए 'उम्मीद'
मुंबई। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले सत्ताधारी गठबंधन एनसीपी-कांग्रेस और दूसरी ओर शिवसेना-भाजपा गठबंधन की टूट ने टक्कर के मुकाबले आशंकाएं पैदा कर दी हैं। दोनो बड़ी पार्टी भाजपा, कांग्रेस के अलावा शिवसेना और एनसीपी को चुनाव जीतने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है। 2009 में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डाले तों पता चलता है कि कई विधानसभा क्षेत्रे ऐसे रहे हैं जहां पर उम्मीदवारों में कांटे की टक्कर ही नहीं बल्कि जीतने का मार्जिन भी बहुत कम रहा है।
वोट बंटने से गड़बड़ाया समीकरण
दरअसल, जबसे महाराष्ट्र में बड़े गठबंधनों की टूट हुई है। तभी से महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का चुनावी समीकरण गड़बड़ा गया है। शिवसेना-भाजपा के साथ थी तो भाजपा को मिलने वाला 'मोदी सहानुभूति' वोट भी शिवसेना के कई उम्मीदवारों को मिल सकता था। वहीं अब शिवसेना का मराठी वोट बैंक भाजपा को फायदा पहुंचा सकता था। इसलिए दोनो का गठबंधन इस चुनाव के लिए दोनो पार्टियों के लिए महत्वपूर्रण था।
इसके अलावा कांग्रेस-एनसीपी के अलग-अलग चुनाव लड़ने से कांग्रेस के घोटाले से रूठी जनता के पास संदेश गलत गया है। जिससे दोनो पार्टियों के जो वोट बिखरेंगे उसका फायदा अन्य पार्टियों या निर्दलीय उम्मीदवारों को मिल सकता है।
कुल मिलाकर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव मेें विभिन्न पार्टियों के प्रति मतदाता आशंका में है। वह कन्फ्यूज हो सकता है। ऐसे में उस उम्मीदवार की ओर वोट खिसक जाएगा जो पहले कांटे की टक्कर से या तो हार गया था। ऐसे में महाराष्ट्र में छोटी पार्टियों और निर्दलीय उम्मीदवार भी खड़े होते हैं।
केवल 34 वोटों का अंतर भी रहा था
वर्ष 2009 में हुए विधानसभा चुनाव में केवल न्यूनतम उम्मीदवारों की हार जीत में 34 वोटोें के अंतर से भी हारजीत का फैसला हुआ था। कनकवली विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के प्रमोद संतराम ने केवल 34 वोटों के अंतर से कांग्रेस रविंद्र सदानंद को हराया था। वहीं डिंडोरी विधानसभा क्षेत्र से शिवसेना (SHS) धनराज ने 49 वोटों के अंतर से एनसीपी के नरहरी सितारमन को हराया था।