जानिए दशहरे का महत्व और खास बातें...
लखनऊ। दस दिशाओं पर राज्य करने वाला परम वि़द्वान, सर्वशक्तिमान और शिव का अन्नय भक्त लंकापति रावण के वध के उपलक्ष्य में दशहरा पर्व मनाया जाता है।
जब रामलीला में 'अंगद' ने 'सर्जिकल स्ट्राइक' से रावण को डराया
'रावण केवल दानव ही नहीं बहुत बड़ा शिवभक्त और ज्ञानी भी था'
आखिर कब-तक विडम्बनाओं और परम्पराओं को ढोकर लकीर के फकीर बनो रहोगे। मुझे ज्ञात है कि मेरी तर्कपूर्ण बाते धर्म के ठेकेदारों एंव अंधविश्वास के चश्में से धर्म को देखने वाली जनता को बुरी लग सकती है।
हिन्दू धर्म का रक्षण किया
राम ने रावण से युद्ध हेतु इसी दिन प्रस्थान किया था। मराठा रत्न शिवाजी ने भी औरंगजेब के विरुद्ध इसी दिन प्रस्थान करके हिन्दू धर्म का रक्षण किया था। भारतीय इतिहास में अनेक उदाहरण हैं जब हिन्दू राजा इस दिन विजय-प्रस्थान करते थे। इसी दिन लोग नया कार्य प्रारम्भ करते हैं, शस्त्र-पूजा की जाती है। प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा के लिए प्रस्थान करते थे। इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं। रामलीला का आयोजन होता है। रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है।
भगवान राम की विजय के रूप में मनाया जाए
दशहरा अथवा विजयदशमी भगवान राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह शक्ति-पूजा का पर्व है, शस्त्र पूजन की तिथि है। हर्ष और उल्लास तथा विजय का पर्व है। भारतीय संस्कृति वीरता की पूजक है, शौर्य की उपासक है। व्यक्ति और समाज के रक्त में वीरता प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव रखा गया है। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, ईर्ष्या, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है।
दशहरे के दिन ही महिषासुर का वध किया था
इस त्यौहार को मानने के संदर्भ में आस्था ये है कि माँ दुर्गा ने महिषासूर से लगातार नौ दिनो तक युद्ध करके दशहरे के दिन ही महिषासुर का वध किया था। इसीलिए नवरात्रि के बाद इसे दुर्गा के नौ शक्ति रूप के विजय-दिवस के रूप में विजया-दशमी के नाम से मनाया जाता है। जबकि भगवान श्रीराम ने नौ दिनो तक रावण के साथ युद्ध करके दसवें दिन ही रावण का वध किया था, इसलिए इस दिन को भगवान श्रीराम के संदर्भ में भी विजय-दशमी के रूप में मनाते हैं। साथ ही इस दिन रावण का वध हुआ था, जिसके दस सिर थे, इसलिए इस दिन को दशहरा यानी दस सिर वाले के प्राण हरण होने वाले दिन के रूप में भी मनाया जाता है।
विजय दशमी के दिन शमी के पत्तों का महत्व
एक पौराणिक कथा के अनुसार-एक बार एक राजा ने अपने राज्य में एक मंदिर बनवाया और उस मंदिर में भगवान की प्राण-प्रतिष्ठा कर भगवान की स्थापना करने के लिए एक ब्राम्हाण को बुलाया। प्राण-प्रतिष्ठा कर भगवान की स्थापना करने के बाद राजा ने ब्राम्हान से पूछा कि- हे ब्रम्हान देव आपको दक्षिणा के रूप में क्या दूं? ब्राम्हन ने कहा- राजन मुझे लाख स्वर्ण मुद्राए चाहिए। ब्राम्हण की दक्षिणा सुनकर राजा को बडी चिंता हुई क्योंकि राजा के पास देने के लिए इतनी स्वर्ण मुद्राऐं नहीं थीं और ब्राम्हण को उसकी मांगी गई दक्षिणा दिए बिना विदा करना भी ठीक नहीं था। इसलिए राजा ने ब्राम्हण को उस दिन विदा नहीं किया बल्कि अपने मेहमान भवन में ही रात ठहरने की व्यवस्था कर दी।
ब्राम्हण की दक्षिणा
राजा ब्राम्हण की दक्षिणा देने के संदर्भ में स्वयं काफी चिन्ता में था कि आखिर वह किस प्रकार से ब्राम्हण की दक्षिणा पूरी करे। यही सोंचते-सोंचते व भगवान से प्रार्थना करते-करते उसकी आंख लग गई। जैसे ही राजा की आंख लगी, उसे एक स्वपन आया जिसमें भगवान प्रकट होकर उसे कहते हैं- अभी उठो और जाकर जितने हो सकें उतने शमी के पत्ते अपने घर ले आओ। तुम्हारी समस्या का समाधान हो जाएगा।
शमी के पत्ते, स्वर्ण के पत्ते बन गए
अचानक ही राजा की नींद खुल गई। उसे स्वप्न पर ज्यादा विश्वास तो नहीं हुआ, लेकिन फिर भी उसने सोंचा कि शमी के पत्ते लाने में बुराई ही क्या है। सो वह स्वप्नानुसार रात ही में जाकर ढेर सारे शमी के पत्ते ले आया। जब सुबह हुई तो राजा ने देखा कि वे सभी शमी के पत्ते, स्वर्ण के पत्ते बन गए थे। राजा ने उन स्वर्ण के पत्तों से ब्राम्हण की दक्षिणा पूरी कर उसे विदा किया। जिस दिन राजा शमी के पत्ते अपने घर लाया था, उस दिन विजय-दशमी थी, इसलिए तभी से ये मान्यता हो गई कि विजय-दशमी की रात शमी के पत्ते घर लाने से घर में सोने का आगमन होता है। नोट-दशहरा के दिन जो भी जातक शमी पत्तियों को अपने घर लायेगा उसके घर में सुख व समृद्धि बनी रहेगी।