नहीं मिली लकड़ियां, तो कचरे इकट्ठा कर पत्नी का शव जलाया
इंदौर। कचरे से बिजली बनाने की बहुत योजनाएं देखी और सुनी गई होंगी लेकिन मध्यप्रदेश के नीमच में कुछ ऐसा हुआ है जो कालाहांडी के बाद फिर से मानवता को शर्मशार कर रही है।
पीड़ित जगदीश
इंदौर से 270 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नीमच के रतनगढ़ गांव में आदिवासी समुदाय के जगदीश भील को अपनी पत्नी का शव जलाने के लिए प्लास्टिक और झाड़ियों का इस्तेमाल करना पड़ा क्योंकि उसके पास लकड़ी खरीदे के लिए पैसे नहीं थे।
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जगदीश की पत्नी नोजीबाई की चिता की राख
इतना ही नहीं गांव की पंचायत ने भी इस मामले में जगदीश की कोई मदद नहीं की। ऐसे में पत्नी की मौत से दुखी जगदीश ने चिता के लिए प्लास्टिक और कचरे जमा करता रहा।
शुक्रवार को हुई पत्नी की मौत
चिता सजाता जगदीश और उसके परिजन
बताया जा रहा है कि घटना बीते शुक्रवार ( 2 अगस्त ) की बताई जा रही है। इतना ही नहीं जिन लोगों ने जगदीश को प्लास्टिक इकट्ठा करते हुए देखा तो उसे सलाह दी कि पत्नी की लाश को पास की नदी में फेंक दे।
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जगदीश के मुताबिक उसकी पत्नी नोजीबाई का देहांत शुक्रवार सुबह हुआ।
दाह संस्कार के लिए लकड़ियों का इंतजाम करने के लिए रतनगढ़ गए लेकिन वहं के ग्राम प्रधान से उसे जवाब मिला कि वो इस मामले में कुछ नहीं कर सकते क्योंकि उनके पास पर्याप्त पैसे नहीं थे।'
एक ने कहा लाश नदी में फेंक दो
(घर के दरवाजे पर बैठा जगदीश)
जगदीश के परिवार ने कई लोगों से मदद मांगी और लोगों ने अलग अलग तरीके बताए। जगदीश के भाई के अनुसार एक जन ने यहां तक कह दिया कि जब पैसे नहीं है तो शव नदी में बहा दो।
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कई लोग रास्ते से गुजरे लेकिन कोई मदद को आगे नहीं आया। जगदीश ने बताया जब कहीं से मदद की कोई आस नहीं दिखी तो हमने शव दफ्न करने का फैसला लिया।
उसने बताया कि हालांकि जब वो खुदाई करने जा रहे थे तभी किसी सामाजिक कार्यकर्ता ने हमसे मुलाकात की और उनकी मदद से बिखरी लकड़ियां और दूसरी चीजें इकट्ठा कर शव को जलाया गया।
यहां भी देर हो गई
वहीं हर मामले में देर रहने वाला प्रशासन इस मामले में भी लेट लपेट ही आया।
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जब इसकी खबर अधिकारियों तक पहुंची तो आनन फानन में लकड़ियां भेजी गईं लेकिन तब तक चिता जल चुकी थी।
नीमच के जिलाधिकारी रजनीश श्रीवास्तव के अनुसार जिम्मेदार लोगों को नोटिस भेजा गया है, हमें देरी हुई लेकिन हमने लकड़ियां पहुंचा दी।