पीने का पानी चाहिए तो जाओ 250 ग्राम मिट्टी का तेल लेकर आओ
मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले से एक ऐसा ही मामले सामने आया है जहां पीने के पानी के लिए लोगों को 250 ग्राम मिट्टी का तेल लेकर जाना पड़ता है।
श्योपुर। आजादी के 70 साल बाद भी इस देश की एक बड़ी आबादी गले की प्यास बुझाने के लिए पानी को तरस रही है। मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले से एक ऐसा ही मामले सामने आया है जहां पीने के पानी के लिए लोगों को 250 ग्राम मिट्टी का तेल लेकर जाना पड़ता है।
गांव के सभी हैंडपंप खराब पड़े हैं
यह मामला कराहल ब्लॉक के अंदर आवे वाले भीमलत गांव का है जहां पीने का पानी उसी को मिलता है जो एक पाव(250 ग्राम) मिट्टी का तेल लेकर बोर पर जाता है। 76 परिवारों की आबादी वाले इस गांव के सारे हैंडपंप खराब पड़े हैं तो कुएं व अन्य जल स्त्रोत भी सूख चुके हैं। ऐसे में पानी का एकमात्र स्त्रोत ग्राम पंचायत का एक बोर है, लेकिन उसके लिए बिजली का कनेक्शन नहीं है। पंचायत ने बोर चलाने के लिए जनरेटर खरीदकर रख दिया, लेकिन उसे चलाने के लिए डीजल की व्यवस्था नहीं की। पंचायत ने जनरेटर और बोर ग्रामीणों के भरोसे छोड़ रखा है। खुद ही इसे चलाओ और पानी भरो।
सिर्फ पांच बर्तन में मिलता है पानी
ग्रामीणों के पास डीजल की कोई व्यवस्था नहीं है इसलिए पीडीएस दुकान से मिलने वाली केरोसिन से जनरेटर को चला रहे हैं। बोर पर पानी लेने आने वाले हर आदिवासी परिवार से एक-एक पाव केरोसिन लिया जाता है, उसके बाद ही बोर से पांच बर्तन पानी भरे जाते हैं। सुबह जब बोर चालू होता है तो ग्रामीण केरोसिन से भरी बोतलें लेकर लाइन में लग जाते हैं। यहां पानी लेने वहीं परिवार जाता है जो साथ में केरोसिन लेकर जाए।
डीजल लाना गांव की जिम्मेदारी
गांव की रहने वाली माया बाई का कहना है कि पंचायत ने जनरेटर चलाने के लिए कभी डीजल नहीं दिया। ग्रामीण रोज एक-एक पाव केरोसिन इकट्ठा कर उससे जनरेटर चलाते हैं। पीएचई विभाग केअधिकारी, के.आर.गोयल का कहना है कि इलाके में भू-जल स्तर में गिरावट आने से हैण्ड पम्प बंद हो गए है। हमारे द्वारा गांव में बोर चलाने के लिए जनरेटर रखवाया गया है उसमें डीजल की जवाबदारी ग्राम पंचायत की है।