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समाजवाद की घिनौनी तस्वीर, राजशाही घराने के सामने घुटने टेकता लोकतंत्र

समाजवादी पार्टी के भीतर की कलह ने समाजवाद के नाम पर लोकतंत्र का घिनौना चेहरा सामने लाकर रख दिया है।

By Ankur
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अंकुर सिंह। क्या होता है लोकतंत्र, अगर इस सवाल का जवाब ढूंढ़े तो इसका आदर्श जवाब मिलता है जनता का जनता के लिए जनता के द्वारा शासन। लेकिन समाजवादी पार्टी के भीतर जो कुछ भी देखने को मिला है उसमें जनता को छोड़कर वह सब कुछ था जिसका लोकतंत्र से कुछ भी लेना देना नहीं था।

Samajwadi party

समाजवादी पार्टी की नींव आज से तकरीब 25 साल पहले राम मनोहर लोहिया के समाजवाद के सिद्धांतो पर की गई थी, जिसका सीधा अर्थ था समानता और संपन्नता का अधिकार, लिहाजा माना जा रहा था कि समाजवादी पार्टी इन सिद्धांतों को लेकर आगे बढ़ेगी, इन सब से इतर समाजवादी पार्टी अब सत्ता की लूट के लिए सड़क पर उतरकर नंगा नाच करने लगी है।

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उत्तर प्रदेश में चुनाव को अब महज चंद महीने बचे हैं, ऐसे में अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच वर्चस्व को लेकर जमकर तू तू मै मै सामने आई है। एक तरफ जहां शिवपाल यादव खुद को पार्टी के भीतर सुप्रीम के तौर पर स्थापित करने में लगे है तो दूसरी तरफ अखिलेश यादव एक निरीह मुख्यमंत्री की तरह यह कहते रहे कि मैंने आपके कहने पर प्रदेश के चीफ सेक्रेटरी को नियुक्त किया, आपके कहने पर गायत्री प्रजापति को बचाया।

प्रदेश का प्रशासन प्रशासनिक अधिकारी चलाते हैं, जो सरकार की नीतियों को लागू करने का काम करते हैं, लेकिन जिस तरह से अखिलेश ने कहा कि मैंने मुख्य सचिव दीपक सिंघल को नेताजी से मांफी मांगने को कहा और वो उनके पास मांफी मांगने गए, तो क्या प्रदेश का प्रशासनिक मुखिया समाजवाद के सामने नतमस्तक हो गया, वो भी उस आदमी के सामने जो सिर्फ एक पार्टी का मुखिया है, उसका सरकार से कोई लेना-देना नहीं है।

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प्रमुख सचिव ने जिस तरह से समाजवाद के सामने अपने घुटने टेके उसने प्रशासनिक अधिकारियों की सत्ता के सामने निरीहता को सामने लाकर रख दिया। क्या यही है समाजवाद की असल परिभाषा, यह सवाल हर उस व्यक्ति के भीतर उठ रहा होगा जिसने प्रदेश की बेहतरी के लिए सपा को अपना वोट दिया था।

यहां समझने वाली बात यह है कि बतौर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की यह जिम्मेदारी थी कि वह गुण और दोष के आधार पर फैसले लें, बजाए इसके वह पार्टी के भीतर अलग अलग नेताओं के आदेश मान रहे थे। अखिलेश यादव का यहा सार्वजनिक ऐलान ने उनकी पोल को खोलकर रख दिया है कि वह महज कठपुतली की तरह से प्रदेश का शासन चला रहे थे।

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समाजवाद के नाम पर जिस तरह से पहले अखिलेश यादव फिर शिवपाल सिंह यादव और फिर मुलायम सिंह यादव ने सार्वजनिक मंच पर परिवार की राजनीति की उससे प्रदेश के वोटर सीधे तौर पर ठगा महसूस कर रहे हैं।

मुलायम सिंह ने सार्वजनिक मंच पर अखिलेश यादव की जमकर धज्जियां उड़ाई, उन्होंने कहा कि तुम्हारी हैसियत क्या है, तुम हवा में हो, इस सरकार में सबसे खराब काम हुआ है मुसलमानों के लिए, सत्ता और पॉवर मिलने से तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है।

जरा सोचिए जो प्रदेश की जिस अखिलेश यादव को प्रदेश की जनता अपना मुख्यमंत्री समझ रही थी उसका इस तरह से सार्वजनिक मंच पर मखौल उड़ाकर मुलायम सिंह ने समाजवाद की कौन सी परिभाषा स्थापित की है, अगर अखिलेश के अंदर काबिलियत या क्षमता नहीं थी तो उन्हें सत्ता क्या सिर्फ इस आधार पर दी गई कि वह उनके बेटे हैं और अगर दी गई तो क्या उसका सम्मान नहीं होना चाहिए था।

मुलायम यही नहीं रुके उन्होंने समाजवाद की एक नई परिभाषा भी लोगों के सामने आज रखी, उन्होंने कहा कि अमर सिंह मेरा भाई है उसकी वजह से मैं जेल जाने से बचा, नहीं तो मैं सात साल के लिए जेल में होता। यही नहीं उन्होंने उस मुख्तार अंसारी को सम्मानित परिवार का बता दिया जिसपर 30 से अधिक आपराधिक मामले चल रहे हैं और वह मौजूदा समय में जेल की हवा खा रहा है।

यानि की इससे यह भी साफ हो गया है कि आप अपराध करें तो भी आप सत्ता में रहकर बच सकते हैं और एक अपराधी जोकि जेल में बंद है उसे सम्मानित कहकर समाजवाद को नई बुलंदियों पर ले जा सकते हैं।

गायत्री प्रजापति जिनके विभाग के खिलाफ अवैध खनन को लेकर कोर्ट ने सीबीआई जांच बैठा दी है और उनपर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लगाए हैं। उनको बचाने के लिए मुख्यमंत्री को मुलायम सिंह यादव ने फोन करके कहा कि तुम मुख्यमंत्री हो तुम चाहो तो उसे बचा सकते हो, यही नहीं राजशाही के सिंघासन पर बैठे अखिलेश यादव ने कहा कि मैं बचाउंगा उसे लेकिन वह मेरी सुनता नहीं है।

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मुलायम सिंह जिस समाजवाद की दुहाई देते हैं वह दो चाचाओं के बीच की नूराकुश्ती बनकर सामने आई है, एक चाचा कहते है कि शिवपाल खुद मुख्यमंत्री बनने के षड़यंत्र कर रहे हैं तो दूसरे चाचा कहते हैं कि अवैध कब्जे का धंधा चला रहे हैं। पार्टी के शीर्ष नेता एक दूसरे पर खुलेआम भ्रष्टाचार, लूट-खसूट के आरोप लगा रहे हैं, लेकिन इन भ्रष्टाचार के आरोपों पर कार्रवाई करने की जनता ने जिसे जिम्मेदारी दी थी वह परिवारवाद की चौखट पर घुटने टेककर बैठा था।

समाजवाद की एक परिभाषा जहां समाजवादी पार्टी कार्यालय के भीतर गढ़ी जा रही थी दूसरी परिभाषा कार्यालय के बाहर भी लिखी जा रही थी। पार्टी के कार्यकर्ता खुलेआम एक दूसरे से मारपीट कर रहे थे जो पुलिस सरकार के इशारे पर काम करती है वह समाजवाद के इस नाटक की महज दर्शक बनी रही। यही नहीं पार्टी के विधायक एक दूसरे पर जान से मारने का आरोप लगा रहे हैं।

आशू मलिक ने कहा कि उन्हें पार्टी के विधायक तेज नारायण पांडे ने तमाचा मारा। आखिर यह कौन से समाजवाद की नई परिभाषा पार्टी के विधायक और नेता गढ़ रहे हैं। जरा सोचकर देखिए जो कुछ आज लखनऊ की सड़कों पर हुआ वह अगर कोई सामान्य परिवार और उसका सदस्य कर रहा होता तो पुलिस का क्या रवैया होता। खैर किसे समाजवाद, लोकतंत्र, जनता के हित के से लेना देना है, सत्ता की बंदरबाट लगी है और हर वह व्यक्ति जो लूट सकता है लूटने में पूरे तन मन धन से लगा है।

खैर बतौर प्रदेश की जनता समाजावाद के नाम पर लोकतंत्र की इस नई परिभाषा का आप स्वागत करिए, क्योंकि यह सब हमारे और आपके जनमत के दम पर ही हो रहा है।

English summary
Ugly face of Samajwad in the name of Democracy for the power. How people have been fooled in the name of Samajwad.
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