क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

#70yearsofpartition: आख़िरी वक्त पर क्यों बदली पंजाब की लकीर?

ब्रितानी वकील सिरिल रैडक्लिफ़ ने आख़िरी लम्हे में माउंटबेटन के कहने पर फ़िरोज़पुर हिंदुस्तान को दे दिया गया था.

By इशलीन कौर - बीबीसी संवाददाता, लंदन
Google Oneindia News
मीना बीबी और राम पाल शोरी
BBC
मीना बीबी और राम पाल शोरी

ये कहानी है सत्तर साल पहले की. भारत का बँटवारा होगा और एक नया देश पाकिस्तान बनेगा इस बात का फ़ैसला हो चुका था.

भारत का बँटवारा कैसे होगा यानी कि कौन सा हिस्सा भारत में रहेगा और कौन पाकिस्तान के हिस्से में आएगा इसको तय करने की ज़िम्मेदारी ब्रितानी वकील सिरिल रैडक्लिफ़ को दी गई थी.

सिरिल रैडक्लिफ अविभाजित हिंदुस्तान के नक़्शे पर पंजाब के बँटवारे की लकीर खींच चुके थे. कुछ ही दिनों बाद तत्कालीन वायसराँय लॉर्ड माउंटबेटन ने सिरिल रैडक्लिफ़ को अपने यहां खाने पर बुलाया.

बाउंडरी कमीशन के सदस्य
BBC
बाउंडरी कमीशन के सदस्य

खाने की मेज़ पर दोनों के बीच पंजाब को लेकर लंबी बातचीत हुई जिसने पंजाब के कई ज़िलों की तक़दीर ही बदल दी.

खाने की उस मेज़ पर जिन ज़िलों के बारे में फ़ैसला किया गया उनमें एक फ़िरोज़पुर भी था.

लंदन स्थित ब्रिटिश लाइब्रेरी में मुझे सिरिल रैडक्लिफ के निजी सचिव क्रिस्टोफ़र बोमौंट का 1992 में 'द टेलीग्राफ़' के लिए लिखा एक आर्टिकल मिला. उस लेख में उन्होंने रैडक्लिफ़ और माउंटबेटन के इस लंच का ज़िक्र किया है.

क्रिस्टोफ़र बोमौंट के मुताबिक़ रैडक्लिफ ने पंजाब की सीमा का जो नक्शा बनाया था, उसमें फिरोज़पुर पाकिस्तान को दिया गया था. लेकिन आख़िरी लम्हे में माउंटबेटन के कहने पर रैडक्लिफ़ ने फ़िरोज़पुर हिंदुस्तान को दे दिया.

क्रिस्टोफ़र बोमौंट के बेटे रॉबर्ट बोमौंट ने बीबीसी को बताया कि उनके पिता माउंटबेटन से नफ़रत करते थे. रॉबर्ट के मुताबिक़ उनके पिता क्रिस्टोफ़र बोमौंट का मानना था कि पंजाब में हुए नरसंहार की ज़िम्मेदारी माउंटबेटन को लेनी चाहिए थी.

रोबर्ट बोमौंट
BBC
रोबर्ट बोमौंट

बीबीसी से बातचीत के दौरान उनका कहना था, "मेरे पिता बँटवारे की लकीर बदलने के फ़ैसले से काफ़ी परेशान थे क्योंकि लकीर का फ़ैसला तो पहले ही हो चुका था. दस्तावेज़ पंजाब के तत्कालीन गवर्नर सर एवन जेंकिन्स को दे दिए गए थे और सबको पता था लकीर कहां बनने वाली है. उन्हें इस बात की हैरानी थी कि माउंटबेटन नेहरू के दबाव में आ गए, जिसकी वजह से हज़ारों मासूमों की जानें गई. मेरे पिता को पता था कि बंटवारे का नतीजा बहुत बुरा होगा, लेकिन आख़िरी पल में लकीर बदलने से हालात बदतर हो गए."

लकीर में इस बदलाव से फ़िरोज़पुर में रहने वाले हज़ारों लोगों की जान दांव पर लग गई. इस त्रासदी को क़रीब से देखने वाले दो लोगों से बीबीसी ने बात की.

मीना बीबी
BBC
मीना बीबी

100 बरस की मीना बीबी बँटवारे से पहले फ़िरोज़पुर में रहती थी. बँटवारा होने से सिर्फ़ एक दिन पहले उन्हें पता चला कि उन्हें फिरोज़पुर छोड़ कर सीमा पार यानी पाकिस्तान जाना पड़ेगा.

मीना बीबी अब पाकिस्तान के बुरेवाला गांव में रहती हैं. बँटवारे की आग में मीना बीबी के परिवार के 19 लोग मारे गए थे. सत्तर साल पहले हुई इस ख़ौफ़नाक घटना को वो आज भी नहीं भूल पाईं हैं.

मीना बीबी ने अपने पति और दो बच्चों के साथ सीमा पार की और नए बने देश पाकिस्तान में क़दम रखा.

उनसे बात करने पर लगता है कि सत्तर साल पहले की बात भी उन्हें इस तरह याद है जैसे ये कल की बात हो.

पाकिस्तान के बुरेवाला गांव में रहती हैं मीना बीबी
BBC
पाकिस्तान के बुरेवाला गांव में रहती हैं मीना बीबी

वो कहती हैं, ' 'हम सब कुछ छोड़कर आ गए, बस अपनी जान बचाई और आ गए. मेरे मां-बाप हमें कसूर में मिले, और मेरे पिता ने सिर्फ़ एक साफ़ा पहना हुआ था, उनके पास कुर्ता भी नहीं था, मैंने अपनी एक कुर्ती उनको दी. मेरे पास कपड़ो का एक ट्रंक था, तौबा मेरी तौबा उसमें से मैंने किसी को सलवार दी, किसी को कुर्ती दी.''

वहीं बुरेवाला से लगभग 200 किलोमीटर दूर, सरहद की दूसरी तरफ़ यानी मौजूदा हिंदुस्तान में राम पाल शोरी पिछले 84 सालों से फ़िरोज़पुर में रह रहे है.

बँटवारे के समय शोरी क़रीब 13-14 साल के थे. हिंदू होने की वजह से उन्हें अपना मुल्क हिंदुस्तान तो नहीं छोड़ना पड़ा लेकिन अपनों को खोने का ग़म उन्हें आज भी है.

84 सालों से फिरोज़पुर में बसे राम पाल शोरी
BBC
84 सालों से फिरोज़पुर में बसे राम पाल शोरी

शोरी बताते हैं कि उन्होंने आज भी नहीं पता कि उनके कई क़रीबी दोस्तों का क्या हुआ.

उस वक़्त के अपने एक दोस्त का वो ख़ास ज़िक्र करते हैं.

शोरी के मुताबिक़ उनके एक शिक्षक मुसलमान थे. उनका नाम अब्दुल मजीद था.

शोरी के अनुसार अब्दुल मजीद अपना भेष बदल कर पाकिस्तान पहुंचे थे.

अपने उस ख़ास दोस्त का ज़िक्र करते हुए शोरी कहते हैं, '' वो छुप छुपाकर भेस बदल कर निकले. वो हिन्दुओं की तरह जनेऊ और टोपी पहन लेते थे. वो अपनी वेशभूषा बदल कर हिंदुस्तान से निकले. किसी ने हमें बाद में बताया कि उन्होंने अपनी मूंछ भी मुंडवा ली थी ताकि उन्हें कोई पहचान ना सके.''

फिरोज़पुर रेलवे स्टेशन
BBC
फिरोज़पुर रेलवे स्टेशन

मीना बीबी की तरह शोरी भी वो मंज़र नहीं भूल पाए हैं जो उन्होंने आज से सत्तर साल पहले अपने बचपन में देखे थे.

उन्होंने हमें बताया कि लाहौर से जब ट्रेनें आती थीं तो उस पर ज़ख़्मी लोग लदे हुए आते थे. उन दिनों को याद करते हुए वो कहते हैं,"किसी की बाज़ू कटी होती, तो किसी के सिर पर चोट, हालात बहुत बिगड़ चुके थे. ऐसा हाल था जैसे लोग इंसानियत से बहुत नीचे गिर गए हों."

सिरिल रेडक्लिफ और माउंटबेटन के एक छोटे से फ़ैसले ने सिर्फ़ मीना बीबी और शोरी की ही नहीं बल्कि ऐसी हज़ारों ज़िन्दगियां बदल डालीं. और उसके ज़ख़्म सत्तर साल बाद भी ताज़ा हैं.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
why did Punjab's streak to change at the last moment?
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X