क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

मुस्लिम देशों की आंखों में क्यों चुभता है इसरायल

अरब में दुश्मनों से घिरा छोटा-सा देश इसराइल आख़िर क्यों आंखों की किरकरी बन गया है.

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News

प्रधानमंत्री मोदी की इसराइल यात्रा को भारत की विदेश नीति में अहम बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत का खाड़ी के मुस्लिम देशों से अच्छा संबंध रहा है.

दूसरी तरफ़ इसराइल से खाड़ी के मुस्लिम देशों के संबंध काफ़ी कड़वे हैं. दुनिया भर के मुसलमानों के मन में इसराइल की नकारात्मक छवि है.

इसराइल
Getty Images
इसराइल

आख़िर इसराइल से खाड़ी के मुस्लिम देश क्यों चिढ़े रहते हैं. इस सवाल का जवाब जानने के लिए आपको इसराइल के उदय को समझना होगा.

इसराइल दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां की बहुसंख्यक आबादी यहूदी है. इसराइल एक छोटा देश है पर उसकी सैन्य ताक़त का दुनिया लोहा मानती है.

अनौपचारिक रूप से कहा जाता है कि इसराइल परमाणु शक्ति संपन्न देश है और अपनी ताक़त के दम पर ही अस्तित्व में है.

जिसने 6 दिन में बदल दिया मध्य पूर्व का नक्शा

सद्दाम को फांसी पर रोए थे अमरीकी सैनिक

'मोदी की बीजेपी और इसराइल की एक जैसी सोच'

मोदी के लिए क्यों अहम है यहूदी देश इसराइल?

इसराइल
Getty Images
इसराइल

अरब देशों का इसराइल पर हमला

50 साल पहले इसराइल और उसके पड़ोसियों के बीच युद्ध भड़क गया था जिसे 1967 के अरब-इसराइल युद्ध के नाम से जाना जाता है. यह संघर्ष महज छह दिन ही चला, लेकिन इसका असर आज तक नज़र आता है. 1948 के आख़िर में इसराइल के अरब पड़ोसियों ने हमला कर दिया था. इनकी कोशिश इसराइल को नष्ट करने की थी, लेकिन वे नाकाम रहे.

अरब और इसराइल के संघर्ष की छाया मोरोक्को से लेकर पूरे खाड़ी क्षेत्र पर है. इस संघर्ष का इतिहास काफ़ी पुराना है. 14 मई 1948 को पहला यहूदी देश इसराइल अस्तित्व में आया.

यहूदियों और अरबों ने एक-दूसरे पर हमले शुरू कर दिए. लेकिन यहूदियों के हमलों से फ़लस्तीनियों के पाँव उखड़ गए और हज़ारों लोग जान बचाने के लिए लेबनान और मिस्र भाग खड़े हुए.

1948 में इसराइल के गठन के बाद से ही अरब देश इसराइल को जवाब देना चाहते थे.

इसराइल
Getty Images
इसराइल

जनवरी 1964 में अरब देशों ने फ़लस्तीनी लिबरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन, पीएलओ नामक संगठन की स्थापना की. 1969 में यासिर अराफ़ात ने इस संगठन की बागडोर संभाल ली. इसके पहले अराफ़ात ने 'फ़तह' नामक संगठन बनाया था जो इसराइल के विरुद्ध हमले कर काफी चर्चा में आ चुका था.

1967 का युद्ध

इसराइल और इसके पड़ोसियों के बीच बढ़ते तनाव का अंत युद्ध के रूप में हुआ. यह युद्ध 5 जून से 11 जून 1967 तक चला और इस दौरान मध्य पूर्व संघर्ष का स्वरूप बदल गया. इसराइल ने मिस्र को ग़ज़ा से, सीरिया को गोलन पहाड़ियों से और जॉर्डन को पश्चिमी तट और पूर्वी यरुशलम से धकेल दिया. इसके कारण पाँच लाख और फ़लस्तीनी बेघरबार हो गए.

इसराइल
Getty Images
इसराइल

1973 का संघर्ष

जब कूटनीतिक तरीकों से मिस्र और सीरिया को अपनी ज़मीन वापस नहीं मिली तो 1973 में उन्होंने इसराइल पर चढ़ाई कर दी. अमरीका, सोवियत संघ और संयुक्त राष्ट्र संघ ने संघर्ष को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस युद्ध के बाद इसराइल अमरीका पर और अधिक आश्रित हो गया. इधर सऊदी अरब ने इसराइल को समर्थन देने वाले देशों को पेट्रोलियम पदार्थों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया जो मार्च 1974 तक जारी रहा.

शांति समझौता

मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सादात 19 नवंबर 1977 को यरुशलम पहुँचे और उन्होंने इसराइली संसद में भाषण दिया. सादात इसराइल को मान्यता देने वाले पहले अरब नेता बने. अरब देशों ने मिस्र का बहिष्कार किया लेकिन अलग से इसराइल से संधि की.

1981 में इसराइल के साथ समझौते के कारण इस्लामी चरमपंथियों ने सादात की हत्या कर दी.

इसराइल
Getty Images
इसराइल

फ़लस्तीनी इंतिफ़ादा

इसराइल के कब्ज़े के विरोध में 1987 में फ़लस्तीनियों ने इंतिफ़ादा यानी जनआंदोलन छेड़ा जो ज़ल्दी ही पूरे क्षेत्र में फैल गया. इसमें नागरिक अवज्ञा, हड़ताल और बहिष्कार शामिल था. लेकिन इसका अंत इसराइली सैनिकों पर पत्थर फेंकने से होता. जवाब में इसराइली सुरक्षाबल गोली चलाते और फ़लस्तीनी इसमें मारे जाते.

शांति प्रयास

खाड़ी युद्ध के बाद मध्य पूर्व में शांति स्थापना के लिए अमरीका की पहल पर 1991 में मैड्रिड में शिखर सम्मेलन का आयोजन हुआ. 1993 में नोर्व के शहर ओस्लो में भी शांति के लिए वार्ता आयोजित की गई. इसमें इसराइल की ओर से वहाँ के तत्कालीन प्रधानमंत्री रॉबिन और फ़लस्तीनी नेता यासिर अराफ़ात ने हिस्सा लिया.

इसराइल
Getty Images
इसराइल

इसके बाद तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पहल पर व्हाइट हाउस में शांति के घोषणा पत्रों पर हस्ताक्षर हुए. पहली बार इलराइली प्रधानमंत्री यित्ज़ाक राबिन और फ़लस्तीनी नेता अराफ़ात को लोगों ने हाथ मिलाते देखा.

4 मई 1994 को इसराइल और पीएलओ के बीच काहिरा में सहमति हुई कि इसराइल कब्ज़े वाले क्षेत्रों को खाली कर देगा. इसके साथ ही फ़लस्तीनी प्राधिकारण का उदय हुआ. लेकिन ग़ज़ा पर फ़लस्तीनी प्राधिकरण के शासन में अनेक मुश्किलें पेश आईं.

इन समस्याओं के बावजूद मिस्र के शहर ताबा में ओस्लो द्वितीय समझौता हुआ. इस पर पुन: हस्ताक्षर हुए. लेकिन इन समझौतों से भी शांति स्थापित नहीं हो पाई और हत्याओं और आत्मघाती हमलों का दौर जारी है.

इसराइल की मजबूती से स्थापित करने में खुफिया एजेंसी मोसाद की अहम भूमिका रही है.

इसराइल
Getty Images
इसराइल

मोसाद की अहम बातें

  • मोसाद (हामोसाद लेमोदी इन उलेताफ़ाकिदिम मेयुहादिम) की स्थापना 1949 में की गई थी.
  • दुनिया भर में मोसाद के डर और मनगंढ़त कहानियां प्रचलित हैं. यह एजेंसी साहसिक ऑपरेशन और नृशंस हत्याओं के लिए भी जाना जाता है.
  • इसने 1960 में अर्जेंटीना में नाज़ी युद्ध अपराधी अडोल्फ आइसमई को पकड़ ख़ुद को साबित किया था.
  • 2010 में एक पूर्व मोसाद एजेंट गैड शिमरोन ने बीबीसी से कहा था,''वे ईमानदार धोखेबाजों की तलाश में हैं. वे मेरे जैसे लोगों को लेते हैं- मैं एक धोखेबाज नहीं हूं. इसराइल का एक आज्ञाकारी नागरिक हूं. वे आपको सिखाते हैं कि कैसे चोरी करें और ये कई बार लोगों को मारना सिखाते हैं. ये आपको वे चीज़ें सिखाते हैं जिसे कोई सामान्य इंसान नहीं कर सकता है. दरअसल, इसे एक अपराधी ही कर सकता है.
BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Many Muslim nations don't like Israel. There were many conflicts in past between Arab nations and Israel.
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X