अमरीका-उत्तर कोरिया भिड़ गए तो दुनिया का क्या होगा?
चीन कभी नहीं चाहेगा कि उत्तर कोरिया से किम जोंग-उन का शासन ख़त्म हो. क्या उत्तर कोरिया का साथ देगा चीन?
अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने उत्तर कोरिया की धमकी को ऐसा जवाब देने का संकल्प जताया है जो दुनिया के लिए बिल्कुल नई होगी.
ट्रंप की इस सख्त चेतावानी की प्रतिक्रिया में उत्तर कोरिया ने अमरीकी द्वीप गुआम में मिसाइल हमले की तैयारी की बात कहकर तनाव को और बढ़ा दिया है. गुआम में एक लाख 63 हज़ार लोग रहते हैं.
इन सारे घटनाक्रमों में उस वक़्त तेजी आ रही है जब कहा जा रहा है कि उत्तर कोरिया ने छोटे परमाणु हथियारों और इंटर-कॉन्टिनेंटल मिसाइलों को हासिल कर लिया है.
यह भी कहा जा रहा है कि उत्तर को कोरिया के परमाणु हथियार इंटर-कॉन्टिनेंटल मिसाइल पर फ़िट हो सकते हैं. ऐसे में अमरीका और उसके एशियाई सहयोगियों की चिंता और बढ़ गई है.
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सैन्य संघर्ष की आंशका?
हालंकि विशेषज्ञों का कहना है कि इस मामले में लोगों को आतंकित होने की ज़रूरत नहीं है. हम बता रहे हैं कि ऐसा क्यों है-
कोई युद्ध नहीं चाहता
यह सबसे अहम बात है और इसे आपको अपने जेहन में बैठा लेना चाहिए. कोरियाई प्रायद्वीप में युद्ध किसी के भी हक़ में नहीं है. उत्तर कोरियाई सरकार का मुख्य लक्ष्य है अपना अस्तित्व बचाना.
ऐसे में अमरीका के साथ युद्ध कर वह ख़ुद को जोखिम में नहीं डालना चाहेगा. बीबीसी के सामरिक संवाददाता जोनाथन मार्कस के मुताबिक अभी के हालात में अमरीका और उसके सहयोगियों पर उत्तर कोरिया के किसी भी तरह के हमले से युद्ध का व्यापक पैमाने पर प्रसार होगा. ऐसे में उत्तर कोरिया आत्मघाती क़दम नहीं उठाएगा.
वास्तव में यही वजह है कि उत्तर कोरिया ख़ुद को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है. अगर यह क्षमता उसके पास आ जाती है तो किम जोंग-उन सरकार बेदख़ली की स्थिति में ख़ुद को बचा सकती है.
किम जोंग-उन लीबिया के पूर्व शासक गद्दाफ़ी और इराक़ के सद्दाम हुसैन की राह पर नहीं जाना चाहते हैं.
क्या अमरीका पर परमाणु हमला कर देगा उत्तर कोरिया?
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दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में कूकमिन यूनिवर्सिटी के एंड्रेई लंकोव ने ब्रिेतानी अख़बार गार्डियन से कहा कि युद्ध की बहुत मामूली आशंका है लेकिन इसी के साथ समान रूप से उत्तर कोरियाई राजयनिक स्तर पर भी चीज़ों को नहीं सुलझाना चाहते हैं.
लंकोव ने कहा कि उत्तर कोरिया पहले अमरीका के मानचित्र से शिकागो को मिटा देना चाहता है फिर वह राजनयिक समाधान की इच्छा जताएगा.
अमरीका हमले से पहले क्या करेगा?
अमरीका को पता है कि उसने उत्तर कोरिया पर हमला किया तो वह उसके सहयोगी जापान और दक्षिण कोरिया को निशाना बनाएगा. इसका नतीजा यह होगा कि व्यापक पैमाने पर लोगों की जानें जाएंगी.
इनमें हज़ारों अमरीकी भी मारे जाएंगे. ये अमरीकी जापान में सैनिक और नागरिक के रूप में हैं. इसके अलावा अमरीका नहीं चाहता है कि कोई परमाणु हथियार से लैस मिसाइल उसकी ज़मीन पर गिरे.
उत्तर कोरिया का चीन एकमात्र दोस्त है. चीन उत्तर कोरियाई प्रशासन को संभालने की पूरी कोशिश करेगा. उत्तर कोरिया का ख़त्म होना चीन के हक़ में नहीं होगा.
किम जोंग-उन का जाना चीन के लिए सामरिक रूप से बड़ा नुक़सानदेह होगा. अमरीका और दक्षिण कोरियाई सैनिक चीनी सरहद पार करेंगे और चीन कभी नहीं ऐसा नहीं चाहेगा.
केवल जुबानी जंग या कोई कार्रवाई?
अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भले उत्तर कोरिया को असामान्य भाषा में चेताया है लेकिन अमरीका भी नहीं चाहता है कि वो किसी सक्रिय युद्ध में शामिल हो.
नाम नहीं ज़ाहिर करने की शर्त पर समाचार एजेंसी रॉयटर्स से एक अमरीकी अधिकारी ने कहा, ''बयानबाजी बढ़ने का मतलब युद्ध होना नहीं है.'' न्यूयॉर्क टाइम्स के स्तंभकार मैक्स फ़िशर भी सहमति जताते हुए कहते हैं, ''हम किसी टिप्पणी के आधार पर नहीं कह सकते कि युद्ध होने जा रहा है.''
जुलाई में उत्तर कोरिया की तरफ़ से दो इंटर-कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलों के परीक्षण के बाद से अमरीका चाहता है कि उस पर संयुक्त राष्ट्र के ज़रिए लगाम कसा जाए. अमरीका ने रणनीतिक रुख़ अपनाते हुए यूएएन के ज़रिए उत्तर कोरिया पर कई आर्थिक प्रतिबंध लगवाए.
अमरीकी राजनयिक अब भी संवाद के लिए कोशिश कर रहे हैं. बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए अमरीका चीन और रूस से भी मदद लेने की कोशिश कर रहा है.
इसके बावजूद कुछ विश्लेषकों का कहना है कि वर्तमान तनाव के माहौल में एक नासमझी भरा क़दम युद्ध की आग में झोंक सकता है.
आर्म्स कंट्रोल असोसिएशन के अमरीकी थिंक टैंक डारल किमबॉल ने कहा, ''युद्ध से पहले उत्तर कोरिया की बिजली गुल हो सकती है और यह युद्ध से पहले की एक ग़लती होगी. अमरीका यहां चूक कर सकता है. यहां सभी पक्षों में नामसझी का माहौल बनना मुश्किल नहीं है और अगर ऐसा होता है कि हालात हाथ से निकल जाएंगे.''
पहले यहां था अमरीका
अमरीका के पूर्व उप विदेश मंत्री पीजे क्रावली ने बताया कि अमरीका और उत्तर कोरिया 1994 में सैन्य संघर्ष के क़रीब पहुंच गए थे. तब उत्तर कोरिया ने अपने परमाणु संयंत्रों में अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को आने की अनुमति नहीं दी थी.
इसके बाद से उत्तर कोरिया रुका नहीं. वह लगातार अमरीका के ख़िलाफ़ कोई न कोई क़दम उठाता रहा. इसके साथ ही जापान और दक्षिण कोरिया को उकसाता रहा. कई बार उत्तर कोरिया को आग के समंदर में तब्दील करने की धमकी मिली.
ऐसे में अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप की धमकी कोई अप्रत्याशित नहीं है. भले उनकी शैली अलग हो. पूर्व अमरीकी उप विदेश मंत्री ने लिखा है, ''अमरीका ने हमेशा कहा है कि अगर उत्तर कोरिया ने हमला किया तो वहां के वर्तमान शासन का अंत हो जाएगा.''