तो इसलिए तालिबान को अमेरिका नहीं मानता है आतंकी संगठन
वाशिंगटन। अमेरिका की ओर से यह बात आधिकारिक तौर पर कह दी गई है कि वह अफगानिस्तान के तालिबान को आतंकी संगठन नहीं मानता है। शुक्रवार को जब व्हाइट हाउस की ओर से यह बयान जारी किया गया तो हर कोई हैरान रह गया लेकिन इस पर किसी को भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए। जी हां इस बात पर कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए क्योंकि अमेरिका कहीं न कहीं चुपचाप मुल्ला उमर की अगुवाई वाले अफगान तालिबान के खिलाफ न तो कोई एक्शन ले रहा है और न ही कभी पाकिस्तान को उसके लिए मजबूर किया।
अमेरिका और पाकिस्तान का गुड तालिबान
अफगानिस्तान के तालिबान को मुल्ला उमर लीड करता है और मुल्ला उमर को आईएसआई का समर्थन हासिल है। आईएसआईएस मुल्ला उमर वाले तालिबान को तहरीक-ए-तालिबान के खिलाफ लड़ाई के लिए तो तैयार कर रहा है साथ ही साथ अफगानिस्तान में आईएसआईएस के खिलाफ भी तैयार कर रहा है।
यह वही तालिबान है जिसके खिलाफ अमेरिका पिछले कई वर्षों से अफगानिस्तान में लड़ाई लड़ रहा था। वहीं गुड तालिबान जो पाक पर हमला नहीं करता और बैड तालिबान यानी टीटीपी को जवाब देने के लिए तैयार है।
प्रोटेक्शन मनी बन गई तालिबान की जिंदगी
- अमेरिका ने अफगान तालिबान की अहमियत को समझता है।
- अमेरिका जानता है कि अफगानिस्तान में जब शांति बहाल होगी, तो इस क्षेत्र से उसका अधिकार खत्म हो जाएगा।
- अमेरिका ने कई वर्षों तक अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ लड़ाई लड़ी ।
- अपनी लड़ाई के बाद भी अमेरिका ने कभी उसके खिलाफ कोई ठोस एक्शन नहीं लिया।
- मुल्ला उमर को पाक सेना ने बलूचिस्तान में सुरक्षित जगह मुहैया कराई हुई है।
- इस सच को जानने के बावजूद अमेरिका ने पाक के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया है।
- अमेरिका की रणनीति हमेशा इस बात को सुनिश्वित करने की रही कि यह संगठन पूरी तरह से खत्म न हो सके।
- जिस समय अफगानिस्तान में लड़ाई चल रही थी तालिबान कमजोर पड़ने लगा था।
- तालिबान के लड़ाके पूरे अफगानिस्तान में मौजूद थे और उन्हें पैसे की जरूरत थी।
- इसी दौरान अमेरिका की ओर से सैनिकों को मिलियन डॉलर्स की रकम दी गई।
- इसी प्रोटेक्शन मनी को अमेरिकी सैनिक चेक प्वाइंट क्रॉस करते समय नियमित तौर पर तालिबानी लड़ाकों को देते थे।