क्या है चीन की वन चाइना पॉलिसी जिसने ट्रंप को भी झुकने पर मजबूर कर दिया
वर्ष 1979 से अमेरिका वन चाइना पॉलिसी को मानता आ रहा है। चीन हमेशा से चीन के मुख्य हिस्से के अलावा ताइवान पर भी इस नीति के तहत ही अपना दावा करता आया है।
बीजिंग। चुनावों से पहले, जीत मिलने के बाद और शपथ लेने के कुछ समय बाद तक अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चीन को लेकर आक्रामक रूख दिखाते आ रहे थे। लेकिन अचानक से गुरुवार को उनका रुख नरम पड़ गया और जिस ट्रंप को उनके आक्रामक तेवरों और बेबाक बयानबाजी के लिए जाना गया, वह भी चीन के सामने कमजोर पड़ते नजर आने लगे।
ट्रंप की बदली सोच का उदाहरण
राष्ट्रपति ट्रंप ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को फोन करके कहा है कि वह वन चाइना पॉलिसी का सम्मान करेंगे। इस वन चाइना पॉलिसी के आगे जब ट्रंप का रुख नरम पड़ा तो दुनिया के कई देशों को हैरानी हुई। ट्रंप के लिए शायद इतना आसान नहीं था कि वह उस नीति का विरोध करें जिसे अमेरिका रिचर्ड निक्सन के दौर से मानता आ रहा है। ट्रंप की फोन कॉल उनकी नीति और सोच में परिवर्तन का उदाहरण है। व्हाइट हाउस आने से पहले ट्रंप ने ऐलान किया था कि वह वन चाइना पॉलिसी के लिए बाध्य नहीं होंगे जब तक कि अमेरिका चीन के साथ दूसरी चीजों को लेकर कोई डील नहीं कर लेता है। अमेरिका, चीन और ताइवान एक बहुत ही मुश्किल त्रिकोणिय स्थिति बनाते हैं और वन चाइना पॉलिसी के मुद्दे इसके आसपास ही ठहर जाते हैं। आइए आपको इस वन चाइना पॉलिसी से जुड़ी 10 बातों के बारे में बताते हैं।
क्यों है चीन और ताइवान के बीच विवाद
चीन और ताइवान के बीच विवाद, चीन के सिविल वॉर के समय से ही चल रहा है। वर्ष 1927 में हुए इस सिविल वॉर की वजह से सेनाओं ने चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया और यह गठबंधन नेशनलिस्ट क्यूमिनटैंग आर्मी यानी केएमटी के विरोध में हुआ था।
कब आई अस्तित्व में
वर्ष 1949 में में जब चीन का सिविल वॉर खत्म हुआ तक यह पॉलिसी अस्तित्व में आई। हारे हुए देश के लोगों को क्यूओमिनटैंग कहा गया और ये ताइवान चले गए। यहां पर इन्होंने अपनी सरकार बना ली जबकि जीती हुई कम्यूनिस्ट पार्टी चीन पर शासन कर रही थी। दोनों ही पक्षों का कहना था कि वे चीन का प्रतिनिधित्व करते हैं। तब से ही चीन की सत्ताधारी कम्यूनिस्ट पार्टी ने ताइवान को धमकी दी हुई है कि अगर उन्होंने औपचारिक तौर पर खुद को एक आजाद देश घोषित किया तो फिर चीन को अपनी सेनाओं का प्रयोग करना पड़ेगा। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में चीन का रुख नरम हुआ है।
क्या है वन चाइना पॉलिसी
वन चाइना पॉलिसी चीन के राजनयिक दर्जे को स्थान देती है। इस पॉलिसी के तहत एक चीनी सरकार को ही स्वामी माना जाता है। इस नीति के तहत अमेरिका, चीन के साथ औपचारिक संबंधों को पहचान देता है। वह ताइवान को मान्यता नहीं देता है। चीन, ताइवान को अपना हिस्सा मानता है और उसका भरोसा है कि एक दिन ताइवान भी चीन का हिस्सा होगा।
दुनिया में अकेला है ताइवान
वन चाइना पॉलिसी चीन और अमेरिका के रिश्तों की आधारशिला है। इसके अलावा चीन इसी पॉलिसी के तहत अपनी नीतियां बनाता है। ताइवान की सरकार भले ही ताइवान को आजाद देश मानती हो लेकिन इसे आज भी आधिकारिक तौर पर रिपब्लिकन ऑफ चाइना ही कहा जाता है। जिस किसी भी देश को चीन के साथ रिश्ते रखने हैं, वह ताइवान के साथ रिश्ते नहीं रख सकता है। इस वजह से ही ताइवान इंटरनेशनल कम्यूनिटी से कटा हुआ है।
अमेरिका ने कब दी मान्यता
चीन के साथ अमेरिका ने वर्ष 1979 में पूर्व राष्ट्रपति जिमी कार्टर के समय में औपचारिक तौर पर राजनयिक रिश्तों की शुरुआत की थी। इसका नतीजा हुआ कि अमेरिका को ताइवान के साथ अपने रिश्ते तोड़ने पड़े और ताइवान की राजधानी ताइपे में दूतावास को बंद करना पड़ गया। लेकिन इस वर्ष अमेरिका ने ताइवान रिलेशंस एक्ट पास किया, जो ताइवान को समर्थन देने की गारंटी था। यह एक्ट यह भी कहता था कि अमेरिका को हर हाल में ताइवान की मदद करनी चाहिए ताकि वह अपनी सुरक्षा कर सके।
लेकिन ताइवान में अमेरिका की मौजूदगी
इसी वजह से अमेरिका आज भी ताइवान को अपने हथियारों की बिक्री करता है। ताइवान में अमेरिका का आज एक अमेरिकन इंस्टीट्यूट है और अनाधिकारिक तौर पर अमेरिका की मौजूदगी भी है। यहीं से अमेरिका अपनी सभी राजनयिक गतिविधियों को भी चलाता है।
किसको फायदा और किसको नुकसान
चीन का निश्चित तौर पर इस नीति से फायदा हुआ है। ताइवान को आज भी स्वतंत्र देश का दर्जा नहीं मिला हुआ है और यहां तक यूनाइटेड नेशंस ने भी उसे एक देश मानने से इंकार कर दिया है। ताइवान को किसी भी अंतराष्ट्रीय इवेंट जैसे ओलंपिक में हिस्सा लेने के लिए भी कई मुश्किलों से गुजरना पड़ता है। लेकिन अलग-थलग होने के बावजूद ताइवान पूरी तरह से अंतराष्ट्रीय परिदृश्य से गायब नहीं है।
क्या किया था ट्रंप ने
ट्रंप ने चुनाव जीतने के बाद ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग-वेन से फोन पर बात की थी। वर्ष 1979 में जिमी कार्टर ने आखिरी बार बतौर अमेरिकी राष्ट्रपति ताइवान के राष्ट्रपति से बात की थी। इसके बाद से ही अमेरिका चीन की 'वन चाइना पॉलिसी' को मानने लगा था। ट्रंप के उस कदम से चीन का गुस्सा सांतवें आसमान पर पहुंच गया था।
भारत भी इसका शिकार
सिर्फ अमेरिका ही नहीं बल्कि भारत को भी चीन की ओर से वन चाइना पॉलिसी की वजह से अक्सर विरोध का सामना करना पड़ता है। दलाई लामा का विरोध इसी का नतीजा है। भारत ने जब-जब दलाई लाम का पक्ष लिया है तब-तब चीन ने वन चाइना पॉलिसी का हवाला देकर भारत को आंखें दिखाई हैं।