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क्यों सुषमा स्वराज से मिलने के लिए राजी हुए चीनी राष्ट्रपति

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नई दिल्ली (विवेक शुक्ला)। चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग का सोमवार को भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मुलाकात करने के फैसले के पीछे नए विदेश सचिव एस.जयशंकर का चीनी प्रशासन के बीच तगड़ा नेटवर्क माना जा रहा है।

Suchma Swaraj

मालूम चला है कि जयशंकर ने स्वराज के चालू दौर से पहले ही इस संबंध में तगड़ी कोशिशें शुरू कर दी थीं। चीनी राष्ट्रपति अपने देश में आए किसी विदेश मंत्री से आमतौर पर नहीं मिलते हैं। जानकार मानते हैं कि शी चिनफिंग का सुषमा स्वराज से सीधे मिलना कई मामलों में अहम है। चीनी राष्ट्रपति के इस कदम को अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की दिल्ली यात्रा से भी जोड़कर देखा जा सकता है।

मनभाता चीन

चीन उनका मनभाता विषय है। कहने वाले कहते हैं कि चीन के अनुभव के चलते उनको विदेश मंत्रालय का शिखर पद मिला। उनसे पहले एस.शिवशंकर मेनन और निरुपमा राव को भी चीन में राजदूत रहने के बाद विदेश सचिव का पद मिला। उन्हें देखना होगा कि भारत-चीन के बीच व्यापारिक संबंध बढ़े और फले-फूले। पर भारत की एक चिंता भी है। दोनों मुल्कों के व्यापार में भारत लाभ की स्थिति में नहीं है। चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, लेकिन उसके साथ भारत का 29 अरब डॉलर का विशाल व्यापार घाटा भी है। इसे दूर करना होगा।

मोदी की विदेशी नीति का विजन

जानकार मानते हैं कि जयशंकर से मोदी देश विदेश नीति को नई दिशा और आयाम देने के स्तर पर एक कुशल नेतृत्व देने की उम्मीद करत हैं। इसके साथ ही,प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उनसे अपने विदेश नीति के विजन को अमली जामा पहनाने की अपेक्षा रखते हैं।

मोदी की विदेश नीति के मुख्य रूप से चार आयाम हैं। पहला, अमेरिका से संबंधों को मजबूत बनाना, जापान से रिश्तों को नए सिरे से परिभाषित करना, पड़ोसी चीन से संवाद में सीमा से जुड़े मसलों के साथ-साथ व्यापारिक संबंधों पर खास फोकस देना और साउथ एशिया के पड़ोसी मुल्कों से फिऱ से रिश्तों में नई जान फूंकना। बेशक, जयशंकर में चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी के साथ न्याय करने की क्षमताएं हैं। वे इसे बार-बार साबित करते रहे हैं। वे उत्साही हैं। मोदी सरकार अपनी विदेश नीति को पहले या कहें की यूपीए सरकार के समय की लुंज-पुंज नीति को छोड़कर प्रो-एक्टिव होना चाहती है।

चीन में मिले थे दोनों

जयशंकर का मोदी से साक्षात्कार और संबंध उस दौर का है, जब गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी ने तीन बार चीन की यात्रा की। तब वे बीजिंग में ही थे। मोदी की उन यात्राओं को सफल बनाने में जयशंकर ने ठोस बुनियाद रखी थी। मोदी की उन यात्राओं में चीन से गुजरात को तगड़ा निवेश मिला था। जिसमें चीन की बड़ी एनर्जी क्षेत्र की कंपनी टीबीईए का400 मिलियन डालर का निवेश शामिल है।

भारत की कूटनीति और सामरिक हितों पर जयशंकर की समझ और जानकारी का उनके सीनियर भी लोहा मानते हैं। जयशंकर के सामने अब चुनौती रहेगी कि मोदी की आगामी चीन यात्रा को सफल बनाया जा सके। बता दें कि वे भी इन दिनों विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के साथ चीन में हैं।

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English summary
New foreign secretary is making his presence felt in China. Sushma Swaraj will now meet Chinese President.
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