आपके फोन से पहले आपके दिमाग में है एक जीपीएस सिस्टम
स्टॉकहोम।
आज
आप
जीपीएस
एक्टिवेट
करने
के
लिए
तुरंत
अपने
हाथ
में
मौजूद
में
स्मार्ट
फाेन
की
ओर
देखते
हैं
लेकिन
क्या
आपको
मालूम
है
कि
फोन
से
पहले
आपके
दिमाग
में
एक
जीपीएस
सिस्टम
है।
70
के
दशक
में
ही
इस
बात
का
पता
वैज्ञानिकों
ने
लगा
लिया
था।
इन्हीं वैज्ञानिकों को दिमाग के 'जीपीएस सिस्टम' की खोज करने वाले तीन वैज्ञानिकों को वर्ष 2014-2015 के मेडिसिन के नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया है।
70 के दशक में पता चला
ब्रिटेन के रहने वाले ये वैज्ञानिक हैं, प्रोफेसर जॉन ओकीफे, मे-ब्रिट मोजर और एडवर्ड मोजर। इन वैज्ञानिकों ने यह पता लगाया था कि मस्तिष्क को हमारी स्थिति के बारे में कैसे पता लगता है और इसी के आधार पर यह हमें एक जगह से दूसरी जगह तक ले जाने में मदद करता है।
इन निष्कर्ष से यह बताने में मदद मिलेगी कि अल्जाइमर के मरीज क्यों अपने आस-पास को नहीं पहचान पाता। नोबेल असेंबली ने कहा है कि इन खोजों ने वे समस्याएं सुलझाई हैं जिन्होंने दार्शनिकों और वैज्ञानिकों को सदियों से परेशान कर रखा था।
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के प्रोफेसर ओकीफे ने सबसे पहले 1971 में मस्तिष्क के 'इंटरनल पोजीशनिंग सेंटर' का पता लगाया।
उन्होंने दिखाया कि कमरे में एक स्थिति पर होने पर एक चूहे के नर्व सेल्स का समूह सक्रिय हो जाता है। जब वह स्थिति बदलता तो नर्व सेल्स का दूसरा समूह सक्रिय हो जाता।
क्या है दिमाग का जीपीएस
दिमाग में मौजूद जीपीएस हमें एक जगह से दूसरी जगह तक जाने में मदद करता है। इस जीपीएस सिस्टम को वैज्ञानिकों ने पोजिशनिंग सिस्टम का नाम दिया है।
दिमाग में मौजूद यह जीपीएस सिस्टम हमें आसपास के वातावरण का मानचित्र बनाने के साथ ही उस वातावरण से बाहर निकलने में भी मदद करता है।
वैज्ञानिक ओकीफ ने पहली बार वर्ष 1971 में इस सिस्टम पर से पर्दा उठाया था। अपनी रिसर्च में उन्होंने पाया कि दिमाग के हिप्पाकैंपस में मौजूद कुछ खास प्रकार की तंत्रिका कोशिकाएं हमेशा तभी सक्रिय होती हैं, जब चूहा
कमरे के किसी खास हिस्से में होता है। जबकि दूसरी प्रकार की तंत्रिका कोशिका कमरे के दूसरे हिस्से में सक्रिय होती है।
इस प्रकार उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि इन खास तरह की ‘स्थान कोशिकाओं' की मदद से दिमाग पूरे वातावरण का मानचित्र तैयार करता है। ठीक वैसे ही जैसे सैटेलाइट में लगे कैमरे भू- आकृति और मौसम के अनुरूप काम करते हुए मानचित्र तैयार करते हैं।
इस खोज के करीब तीन दशक बाद वर्ष 2005 में मेय ब्रिट और एडवर्ड मोजर ने ‘पोजिशनिंग सिस्टम' के दूसरे अहम घटक की खोज की। इन्होंने दिमाग में मौजूद एक अन्य प्रकार की तंत्रिका कोशिका की पहचान की, जिसे उन्होंने ‘ग्रिड कोशिका' नाम दिया।
ये कोशिकाएं समन्यवय सिस्टम का निर्माण करती हैं, जो स्थान और रास्ते ढूढ़ंने की प्रक्रिया के बीच सटीक समन्यवय करता है।