फ़ेसबुक से कौन डिलीट कर रहा है रोहिंग्या समर्थित पोस्ट?
सोशल मीडिया साइट से डिलीट हो रही हैं रोहिंग्या मुसलमान के समर्थन वाली पोस्ट.
म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के पलायन और हिंसा का दौर शुरू होने के साथ ही सोशल मीडिया पर चल रही रोहिंग्या समर्थित पोस्ट को डिलीट किया जा रहा है.
सवाल उठने लगा है कि आख़िर कौन है जो इन पोस्ट को डिलीट कर रहा है?
शाह हुसैन रोहिंग्या मुसलमानों के एक प्रमुख कार्यकर्ता हैं, वे सऊदी अरब में रहते हैं. वे साल 2010 से एक फ़ेसबुक पेज चला रहे हैं. लेकिन पिछले कुछ वक्त से उनकी वे पोस्ट डिलीट कर दी जा रही हैं जिनमें रोहिंग्या मुसलमानों के साथ हो रही हिंसा के बारे में बताया गया हो.
डिलीट हो रही हैं फ़ेसबुक पोस्ट
उनकी ज़्यादातर पोस्ट में ग्राफ़िक्स के ज़रिए हिंसा को दर्शाया जाता है. फ़ेसबुक की गाइडलाइन के अनुसार हिंसा की उन पोस्ट को डिलीट कर दिया जाता है जिनमें हिंसा को जश्न या सुखद आनंद के रूप में दर्शाया गया हो लेकिन अगर कोई पोस्ट सार्वजनिक हित में है तो फ़ेसबुक उसे मान्यता देता है.
बीबीसी से बात करते हुए हुसैन ने कहा, ''हमें रोहिंग्या मुसलमानों पर हो रही हिंसा से जुड़ी बहुत तस्वीरें मिल रही हैं, वे सभी ग्राफ़िक्स के रूप में हैं. अगर हम दुनिया को ये ग्राफ़िक्स भी नहीं दिखाएंगे तो फिर क्या दिखाएंगे?''
पोस्ट के डिलीट होने का मसला सिर्फ फ़ेसबुक तक ही सीमित नहीं है. शाह हुसैन का अराकन न्यूज़ एजेंसी नाम से एक यू ट्यूब चैनल भी है. हुसैन बताते हैं कि उनके यू-ट्यूब चैनल के 60 हज़ार सब्सक्राइबर थे, लेकिन अचानक ही यू ट्यूब ने उनके चैनल को डिलीट कर दिया.
जब बीबीसी ने यू ट्यूब से इस संबंध में बात की तो उन्होंने बताया कि इस चैनल से जुड़ी बहुत ज़्यादा शिकायतें एक साथ प्राप्त होने के कारण चैनल को बंद करना पड़ा. लेकिन वे इसे दोबारा शुरू करने का फ़ैसला ले रहे हैं.
पिछले एक महीने के भीतर लगभग 4 लाख रोहिंग्या मुसलमान रखाइन प्रांत से पलायन कर बांग्लादेश की तरफ जा चुके हैं. संयुक्त राष्ट्र ने इस पर चिंता व्यक्त की है. मानवाधिकार समूहों के अनुसार सेना ने रोहिंग्या मुसलमानों के गांव जला दिए हैं. वहीं सेना के अनुसार वे चरमपंथियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर रही है.
क्या था इन पोस्ट में?
शाह हुसैन की जिन पोस्ट को फ़ेसबुक से डिलीट किया गया है वे काफ़ी हद तक ग्राफ़िक्स थी. एक पोस्ट में कुछ पुरुषों को गड्ढा खोदते हुए दिखाया जा रहा था, वे एक महिला की लाश के लिए कब्र खोद रहे थे.
एक वीडियो में एक युवक नग्न अवस्था में था, उसके सिर पर गहरा घाव था. इस वीडियो में एक आदमी बता रहा था कि जब इस युवक के गांव को आग लगाई गई तब यह लड़का भी जल गया.
बीबीसी स्वतंत्र तरीके से इन वीडियो की प्रामाणिकता की जांच नहीं कर पाया है.
शाह हुसैन अकेले नहीं है जिनके फ़ेसबुक पेज से ऐसी पोस्ट डिलीट की जा रही हैं, जर्मनी में रहने वाले रोहिंग्या कार्यकर्ता नेय सेन ल्विन की फ़ेसबुक पोस्ट भी डिलीट की गई हैं.
कविताएं भी कर दी गई डिलीट
यहां तक की उनकी पोस्ट में सिर्फ टेक्स्ट ही था वे किसी ग्राफ़िक्स का भी प्रयोग नहीं कर रहे थे. उन्होंने अपनी पोस्ट में म्यांमार की सेना से कुछ सवाल पूछे गए थे और कुछ कविताएं लिखी गई थी.
नेय सेन ल्विन बताते हैं कि कुआलांम्पुर में रहने वाले उनके एक साथी ने अंग्रेजी में रोहिंग्या हिंसा से जुड़ी साधारण जानकारियां ही पोस्ट की थी, लेकिन फ़ेसबुक ने ये पोस्ट डिलीट कर दीं और उनके अकाउंट को 72 घंटे के लिए फ्रीज़ कर दिया गया.
फ़ेसबुक पर ल्विन के हज़ारों फॉलोअर हैं. ल्विन को उनकी फ़ेसबुक पोस्ट पर कई लोगों ने जान से मारने की धमकियां भी दी हैं.
सरकार का हाथ होने का शक़
ल्विन को लगता है कि उनकी फ़ेसबुक पोस्ट डिलीट होने के पीछे म्यांमार सरकार का हाथ हो सकता है, म्यांमार की सरकार किसी ख़ास अभियान के तहत सोशल मीडिया पर ऐसी पोस्ट फैलने से रोकना चाहती है.
हालांकि इन आरोपों को साबित करना मुश्किल है लेकिन मानवाधिकार समूहों का भी यही मानना है.
एमनेस्टी इंटरनेशनल की बर्मा में शोधार्थी लॉरा हैग ने बताया, ''हमें बहुत से रोहिंग्या कार्यकर्ताओं ने बताया कि उनके फ़ेसबुक और ट्विटर अकाउंट से कई पोस्ट डिलीट कर दी गई हैं.''
वे कहती हैं, ''ये पोस्ट किसके ज़रिए डिलीट की जा रही हैं, यह पता लगा पाना मुश्किल है, ऐसा हो सकता है कि शायद फ़ेसबुक और ट्विटर को इन पोस्ट से जुड़ी कई शिकायतें प्राप्त होती होंगी, इसलिए ये डिलीट की जाती हैं.
लॉरा कहती हैं, ''ये एक तरह के प्रोपेगेंडा वॉर का हिस्सा है जो पर्दे के पीछे चल रहा है.''