जानिए अमेरिकी चुनाव की मतदान रसीद में हिंदी का सच
सोशल मीडिया पर अमेरिकी चुनाव के हिंदी के विकल्प के साथ बैलेट पेपर को शेयर करने में मशगूल लोग। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया जा रहा है इसका भी श्रेय।
शिकागो। अमेरिकी चुनावों और नतीजों को आए हुए दो दिनों से ज्यादा का समय हो चुका है लेकिन इसकी खुमारी लोगों में अभी तक बरकरार है। इसका उदाहरण है सोशल मीडिया पर अमेरिकी चुनाव शेयर होने वाला वह बैलेट पेपर जिस हिंदी भी एक विकल्प के तौर पर मौजूद है।
देखें-Pics:नहीं मिले राष्ट्रपति ओबामा और नए राष्ट्रपति ट्रंप के दिल
बैलेट रसीद जो जोश में आए लोग
हुआ कुछ यूं कि एक बैलेट रेसीद शिकागो में एक मतदाता को दी गई। यह 'थैंक्यू रसीद' इस शहर के लोगों को दी गई और इस पर इंग्लिश के अलावा स्पेनिश, चाइनीज और आखिरी में हिंदी में मतदाताओं को धन्यवाद दिया गया था।
किसी ने इसी रसीद की फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दी और फिर क्या था यहां से सोशल मीडिया पर जोश देखते ही देखते आगे बढ़ने लगा। इन 'जोशीले' लोगों में से बॉलीवुड एक्टर ऋषि कपूर भी एक ही थे।
पढ़ें-नए राष्ट्रपति ट्रंप की कैबिनेट लिस्ट हो गई लीक
पीएम मोदी का भी दे डाला श्रेय
कोई 'जय हिंद' के साथ इस फोटो को शेयर करने लगा तो कोई इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मेहनत को 'थैंक्यू' कहने लगा।
इसके बाद शिकागो ट्रिब्यून ने भी आगे आकर दावों की पोल खोलने में कोई कसर नहीं छोड़ी। शिकागो ट्रिब्यूनने भी पूरी जानकारी के साथ लोगों को आगाह कर दिया।
इन चुनावों में यह पहला मौका नहीं था जब हिंदी भाषा के साथ इस तरह की रसीद वोटर्स को दी गई हो। वर्ष 2012 में इस चलन की शुरुआत हो चुकी थी और उस समय हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे।
पढ़ें-6 वर्ष, पीएम मोदी का दूसरा जापान दौरा और यह डील हुई सील
क्यों उठाया गया था यह कदम
अमेरिकी जनगणना ब्यूरों और मतदान अधिकार कानून सेक्शन 203 के तहत हिंदी को अमेरिकी बैलट पेपर में शामिल किया गया था।
इस कानून के तहत अधिकारियों को अल्पसमुदाय वाले लोगों की मदद के लिए उन्हें उनकी भाषा में मदद मुहैया करनी होती है।
2015 में भी हुआ ऐसा
वर्ष 2015 में अमेरिका में म्यूनिसिपल बोर्ड के चुनाव हुए थे तो भी हिंदी भाषा वाली रसीद लोगों को दी गई थी।वहीं अमेरिकी राज्य इलिनियॉस पहला ऐसा राज्य था जहां पर अमेरिकी न्याय विभाग ने हिंदी में बैलेट पेपर का प्रस्ताव दिया था।
इस राज्य में कई भारतीय रहते हैं। लेकिन उस समय समस्या यह हुई कि हिंदी के प्रयोग को अपनाया जाता तो फिर उर्दू या फिर गुजराती भाषा को नजरअंदाज करना पड़ता।