भारत, अमेरिका और ब्रिटेन की लापरवाही का नतीजा 26/11!
न्यूयॉर्क। हम अक्सर कहते हैं कि अमेरिका और ब्रिटेन सिर्फ अपनी सुरक्षा के लिए ही चिंतित रहते हैं और इन्हें दूसरे देशों की परवाह ही नहीं है। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट शायद इस बात की पुष्टि करने के लिए काफी है। लेकिन यह रिपोर्ट भारत को भी चेतावनी की तरह है कि अगर आपको दूसरे देशों की ओर से कुछ जानकारी दी जा रही है तो इसे नजरअंदाज करने से बेहतर होगा कि आप इस पर तुरंत कार्रवाई करें। अगर समय रहते कोई एक्शन नहीं लिया गया तो फिर 26/11 जैसे हमलों को भी नहीं रोक पाएंगे।
जफर शाह पर थी ब्रिटेन की नजर
सोमवार को अमेरिका के लीडिंग न्यूजपेपर न्यूयॉर्क टाइम्स की ओर से इस बात का खुलासा किया गया है कि कैसे ब्रिटेन, अमेरिका और यहां तक कि भारत की सुरक्षा और इंटेलीजेंस एजेंसियों ने ध्यान देना जरूरी नहीं समझा।
इस रिपोर्ट सबसे अहम जिक्र है 30 वर्ष के कंप्यूटर एक्सपर्ट जफर शाह का जो लश्कर-ए-तैयबा के लिए काम करता था और जिसने गूगल अर्थ की मदद से आतंकियों को मदद पहुंचाईं। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक जफर पाकिस्तान के पहाड़ी इलाकों का रहने वाला था और उसने मुंबई हमलों में सबसे अहम रोल अदा किया था।
जफर लश्कर के लिए बतौर टेक्नोलॉजी चीफ के लिए काम करता था और उसने गूगल अर्थ की मदद से मुंबई में उन जगहों के बारे में आतंकियों को जानकारी मुहैया कराई थी, जिन्हें उनको निशाना बनाना था। जफर ने एक इंटरनेट फोन सिस्टम का सेटअप किया ताकि वह अपनी लोकेशन के बारे में लोगों को भ्रमित कर सके। इस फोन के जरिए उसकी कॉल्स की लोकेशन न्यू जर्सी आती थी।
ऑन लाइन मिली ताज होटल की जानकारी
मुंबई हमलों के कुछ ही दिनों पहले जफर ने ऑनलाइन एक ज्यूईश हॉस्टल के बारे में जानकारी ली और फिर उसने दो लग्जरी होटल के बारे में पता किया। मुंबई हमलों में नारीमन हाउस, ताज होटल और ओबेरॉय ट्राइडेंट हमले का बड़ा निशाना बने थे। इन हमलों में 166 लोगों की मौत हो गई थी जिसमें छह अमेरिकी भी शामिल थे।
नवंबर में यह आतंकी हमला हुआ था और सितंबर तक उसे इस बात का इल्म भी नहीं था कि ब्रिटेन की जासूसी एजेंसी उस पर नजर रख रही है। ब्रिटेन की जासूसी एजेंसी की ओर से जफर के इंटरनेट सर्च और उसके मैसेज के बारे में ट्रैक किया जा रहा था।
भारत को दी गई थी चेतावनी
सिर्फ जासूस ही जफर पर नजर नहीं रख रहे थे बल्कि भारतीय इंटेलीजेंस एजेंसी की इसी तरह की एक शाखा भी इन सब पर अपनी नजर बनाए हुए थी। वहीं दूसरी ओर अमेरिका को भारत और ब्रिटेन की ओर से किए जा रहे इन प्रयासों के बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी।
लेकिन फिर भी अमेरिका को दूसरे इलेक्ट्रॉनिक और मानवीय सूत्रों की ओर से मुंबई हमलों की साजिश का पता लग चुका था। भारत के सुरक्षा अधिकारियों को मुंबई हमलों के बारे में कई माह पहले आगाह कर दिया गया था लेकिन उन्होंने इस चेतावनी को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया।
इसके बाद जो कुछ भी हुआ वह पूरी दुनिया की इंटलीजेंस एजेंसियों पर एक धब्बा साबित हुआ। अमेरिका, भारत और ब्रिटेन की एजेंसियां जानकारी होने के बावजूद कुछ नहीं कर सकीं।
भारत के पूर्व एनएसए और मुंबई हमलों के दौरान विदेश सचिव रहे शिव शंकर मेनन के हवाले से न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है कि ब्रिटेन, अमेरिका और भारतीयों की ओर से कुछ भी नहीं किया गया। जब मुंबई हमला शुरू हुआ तो एक्शन लेना शुरू किया गया और उस समय ब्रिटेन और भारतीय अधिकारियों के बीच कई दौर की मुलाकातें भी हुईं।
हेडली की पत्नी ने बताया था मुंबई मिशन के बारे में
ब्रिटेन के पास जफर की हर कम्यूनिकेशन का डाटा हासिल करने का जरिया था लेकिन उसे लगा कि जफर के पास जो जानकारी है वह इस खतरे का पता लगाने के लिए काफी नहीं है।
वहीं अमेरिका भी इसमें असफल साबित हुआ। इस हमले के मुख्य आरोपियों में से एक डेविड कोलमेन हेडली, जो कि एक पाक-अमेरिकी नागरिक था, उसके बारे में उसकी पत्नी की ओर से कई अहम जानकारियां दे दी गई थीं। उसकी पत्नी ने अमेरिका की काउंटर-टेररिज्म एजेंसियों के अधिकारियों को इस बारे में बताया था कि हेडली एक पाक आतंकी है जो मुंबई में एक रहस्यमय और अजीब से मिशन पर गया हुआ है।
इसके अलावा हेडली ने इन हमलों से जुड़े जितने भी ई-मेल एक्सचेंज किए उस पर अमेरिकी अधिकारियों ने कोई ध्यान नहीं दिया। जब शिकागो में उसे वर्ष 2009 में गिरफ्तार किया गया तभी इन ई-मेल्स को अमेरिका ने खंगालना शुरू किया।