हिटलर और एक नाबालिग यहूदी लड़की की दोस्ती की दास्तान
दोनों की तस्वीर देखने में प्यारी लगती है, लेकिन इसके पीछे की कहानी थोड़ी पेचीदा है. हॉफ़मैन ने 1955 में छपी उस किताब में दोनों की एक और तस्वीर शामिल की है, जिसका कैप्शन है: "हिटलर का प्यार: वो उसे बर्गोफ (हिटलर का आवास) में देखना पसंद करता था लेकिन फिर किसी को पता लगा कि वो आर्य वंश से नहीं है। हिटलर
पहली नज़र में एक बच्ची को गले लगाते इस व्यक्ति की ये तस्वीर बहुत प्यारी लगती है.
लेकिन 1933 में ली गई इस तस्वीर के पीछे की कहानी थोड़ी पेचीदा है. तस्वीर में दिख रहे लोग हैं, जर्मन नेता और 60 लाख यहूदियों की मौत के ज़िम्मेदार अडॉल्फ हिटलर और यहूदी मूल की एक लड़की रोज़ा बर्नाइल निनाओ.
वरिष्ठ नाज़ी अधिकारियों के हस्तक्षेप तक हिटलर ने इस लड़की से कई साल तक दोस्ती बनाए रखी, लेकिन बाद में सब ख़त्म हो गया.
मैरीलैंड स्थित एलेक्ज़ेंडर हिस्टॉरिकल ऑक्शन एज़ेंसी के अनुसार, हैनरिक़ हॉफ़मैन ने इस तस्वीर को लिया था. इस तस्वीर की बीते मंगलवार को अमरीका में 11,520 डॉलर यानी क़रीब 8.2 लाख रुपये में नीलामी की गई.
नीलामी करने वाले बिल पैनागोपुलस ने ब्रिटिश समाचार पत्र डेली मेल से कहा, ''इस हस्ताक्षरित तस्वीर को पहले कभी किसी ने नहीं देखा.''
इस तस्वीर की ख़ास बात ये है कि इस तस्वीर में बच्ची और हिटलर के बीच का रिश्ता वास्तविक लग रहा है. बिल कहते हैं, ''हिटलर अक्सर बच्चों के साथ प्रचार के मक़सद से ही फोटो खिंचवाते थे. ''
हिटलर का प्यार
20 अप्रैल को अपने जन्मदिन पर हिटलर की इस लड़की से मुलाक़ात हुई.
ऑक्शन वेबसाइट के अनुसार रोज़ा और उनकी मां कैरोलिन 1933 में बच्ची के जन्मदिन वाले दिन आल्प्स स्थित हिटलर के निवास 'बर्गोफ़' के बाहर जुटी भीड़ में शामिल हुए थे.
ऐसा माना जाता है कि जब हिटलर को पता चला कि आज रोज़ा का भी जन्मदिन है तो हिटलर ने रोज़ा और उनकी मां कैरोलिन को अपने घर आमंत्रित किया, जहां ये तस्वीरें दर्ज की गईं.
कुछ समय बाद पता चला कि कैरोलिन की मां यहूदी थी.
लेकिन इससे हिटलर और रोज़ा की दोस्ती पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा. हिटलर ने ही ये तस्वीर अपने हस्ताक्षरों के साथ रोज़ा को भेजी थी.
उन्होंने लिखा था, "प्रिय और रोज़ा निनाओ, एडॉल्फ हिटलर, म्यूनिख, 16 जून, 1933,"
ऐसा लगता है कि रोज़ा ने बाद में तस्वीर में अपना स्टैंप लगाया, काले और सफेद रंग के फूल बनाएं.
1935 और 1938 के बीच रोज़ा ने हिटलर और उनके क़रीबी विलहेम ब्रक्नर को कम से कम 17 बार ख़त लिखे. लेकिन फिर हिटलर के निजी सचिव मार्टिन बॉर्मन ने रोज़ा और उनकी मां से कहा कि वे हिटलर से कोई संपर्क न रखें.
फोटोग्राफर हॉफ़मैन का मानना है कि इस आदेश से हिटलर ख़ुश नहीं थे.
अपनी किताब 'हिटलर माय फ़्रेंड' में हॉफमैन ने लिखा है कि हिटलर ने उनसे कहा था, "कुछ ऐसे भी लोग हैं जिनका असली हुनर मेरी सारी ख़ुशियां बर्बाद करना है."
दुखद अंत
हॉफ़मैन ने 1955 में छपी उस किताब में दोनों की एक और तस्वीर शामिल की है, जिसका कैप्शन है: "हिटलर का प्यार: वो उसे बर्गोफ (हिटलर का आवास) में देखना पसंद करता था लेकिन फिर किसी को पता लगा कि वो आर्य वंश से नहीं है."
हिटलर के निजी सचिव की ओर से रोज़ा और हिटलर का संपर्क बद करवाने के अगले साल द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया.
6 साल बाद जब युद्ध ख़त्म हुआ तो 60 लाख यहूदी मारे जा चुके थे.
युद्ध के दौरान ही रोज़ा की भी मौत हो गई. हिटलर से पहली मुलाक़ात के एक दशक बाद, 1943 में म्यूनिख के एक अस्पताल में 17 साल की उम्र में पोलियो ने रोज़ा की जान ले ली.
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