6 वर्ष, पीएम मोदी का दूसरा जापान दौरा और यह डील हुई सील
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे जापान दौरे पर छह वर्ष बाद परमाणु ऊर्जा के सपना हुआ सच। जापान के साथ डील हुई सील।
टोक्यो। छह वर्षों के बाद आखिरकार भारत और जापान के बीच एतिहासिक परमाणु ऊर्जा समझौता हो गया। दोनों देशों के बीच छह वर्षों से इस समझौते को लेकर सौदेबाजी जारी थी। यह समझौता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे, तीन दिवसीय जापान दौरे पर हुआ है। यह समझौता एशियाई क्षेत्र में बढ़ते चीन के प्रभुत्व के बीच में काफी अहम माना जा रहा है।
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समझौते के बाद क्या फायदा
भारत और जापान के बीच हुए इस समझौते के बाद जापान भारत को परमाणु रिएक्टर्स सप्लाई, फ्यूल और टेक्नोलॉजी सप्लाई कर सकेगा। पीएम मोदी ने डील के बाद जापानी पीएम शिंजो एबे का शुक्रिया अदा किया।
पीएम मोदी ने कहा कि इस डील के बाद अब क्लीन एनर्जी मिशन को पूरा करने में सफलता मिल सकेगी।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने बताया था कि दोनों देशों के बीच यह समझौता पिछले वर्ष दिसंबर में एक विस्तृत करार की ओर बढ़ चुका था।
भारत के लिए यह समझौता इसलिए और भी अहम है क्योंकि भारत अमेरिका स्थित वेस्टिंगहाउस इलेक्ट्रिक के साथ भी बातचीत कर रहा है। इसका स्वामित्व जापान की कंपनी तोशिबा के पास है। वेस्टिंगहाउस दक्षिण भारत में छह न्यूक्लियर रिएक्टर्स का निर्माण करेगी।
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छह गुना तक बढ़ेगी परमाणु क्षमता
दक्षिण में छह रिएक्टर्स की स्थापना का मकसद वर्ष 2032 तक परमाणु क्षमता को छह गुना तक बढ़ाना है। भारत ने जापान के साथ यह न्यूक्लियर डील तब हासिल करने में सफलता पाई है जब जापान कुछ बातों को लेकर आशंकित था।
जापान भारत के साथ इस डील को साइन करने से इसलिए हिचक रहा था क्योंकि भारत अभी तक नॉन-प्रॉलिफिरेशन ट्रीटी यानी एनपीटी का सदस्य नहीं है।
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जापान ने रखी थी एक शर्त
जापान दुनिया का अकेला ऐसा देश है जिसने परमाणु हमले का दर्द झेला है। ऐसे में जापान भारत से यह भरोसा चाहता था कि वह आने वाले समय में कोई भी परमाणु परीक्षण नहीं करेगा।
जापान ने एक शर्त रखी थी कि अगर भारत जापान के साथ किए हुए वादे को तोड़ता है तो फिर जापान सभी तरह के परमाणु संबंधों को भारत से खत्म कर लेगा। जापान के न्यूजपेपर योमियूरी ने इस बात की जानकारी दी।
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भारत ने किया इंकार
जापान शुरुआत में इस शर्त को समझौते का हिस्सा बनाना चाहता था लेकिन भारत ने ऐसा करने से मना कर दिया। भारत ने वर्ष 1998 में हुए परमाणु परीक्षण के बाद से परीक्षणों को बैन किया हुआ है।
भारत की चिंताएं परमाणु संपन्न पड़ोसी चीन और पाकिस्तान से जुड़ी हुई हैं। भारत ने एनपीटी को भेदभाव करने वाला बताया है और इस वजह से ही उसने इसे साइन करने से मना कर दिया था।