दुनिया की सबसे बड़ी अदालत ने खारिज की परमाणु मुद्दे पर भारत के खिलाफ शिकायत
नई दिल्ली। अतंरराष्ट्रीय न्यायालय ने आज मार्शल द्वीप के भारत पर परमाणु हथियारों की दौड़ रोकने में विफल रहने के आरोप, की शिकायत को सुनने के बाद इसको खारिज कर दिया।
दक्षिण प्रशांत सागर के मार्शल दीप ने भारत, पाकिस्तान और ब्रिटेन के खिलाफ अतंरराष्ट्रीय न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हुए आरोप लगाया कि ये परमाणु शक्तिय संपन्न देश 1970 की परमाणु हथियारों की अप्रसार संधि के अनुसार काम करन में विफल रहे हैं।
दो देशों के कानूनी झगड़े निपटाने के लिए वर्ष 1945 में स्थापित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने इस मामले पर आज भारत का पक्ष सुनने के बाद इस मामले में भारत के तर्क सही मानते हुए कहा कि ये मामला उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं है। कोर्ट ने कहा कि मामले की सुनवाई उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आती है। कोर्ट ने मार्शल द्वीप की बात को खारिज कर दिया।
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क्या है पूरा मामला
2014 में मार्शल द्वीपसमूह ने नौ देशों पर आरोप लगाया था कि वे एक तय तिथि पर परमाणु हथियारों की होड़ बंद कर देने और परमाणु निशस्त्रीकरण के अपने वादे पूरे नहीं कर रहे। इन नौ देशों में चीन, ब्रिटेन, फ्रांस, भारत, इस्राइल, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान, रूस और अमेरिका शामिल हैं।
प्रशांत सागर के इस छोटे से द्वीप ने दुनिया की तीन परमाणु शक्तियों- भारत, पाकिस्तान और ब्रिटेन के खिलाफ मामलों के तहत संयुक्त राष्ट्र की शीर्षतम अदालत में भारत के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया को परमाणु निरस्त्रीकरण वार्ता में नई जान फूंकने की कोशिश बताया।
मार्शल द्वीप ने अदालत से इन परमाणु शक्तियों पर परमाणु अप्रसार कार्क्रम में तेजी लाने को दवाब डालने का आग्रह किया था। भारत ने चिट्ठी के जरिए पहले ही शीर्ष अदालत को अवगत कराया था कि एनपीटी प्रावधान कानूनी बाध्यता के तौर पर उस पर लागू नहीं किए जा सकते। आज भारत का पक्ष सुनने के बाद अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने मामले को खारिज कर दिया।
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मार्शल द्वीपसमूह प्रशांत महासागर का एक क्षेत्र है, जहां 53 हजार लोग रहते हैं। इस द्वीप पर दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका ने दर्जनों परमाणु परीक्षण किए थे।
इस द्वीपसमूह की सरकार ने परमाणु शक्तियों को अदालत में लेकर जाने का फैसला करने के सवाल पर कहा था कि, वो शीर्ष अदालत में जाएंगे क्योंकि उन्हें परमाणु हथियारों के बुरे परिणामों के बारे में खास तौर पर जानकारी है।