अमेरिकी अखबार ने नोटबंदी के फैसले को बताया अत्याचारी, कहा- नहीं टिकेगा जनता का धैर्य
अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने नोटबंदी के फैसले को आम आदमी के लिए संकट भरा बताते हुए लिखा है कि इससे लोगों को बहुत दिक्कत हुई। अगर इससे जुड़े दावे पूरे नहीं हुए तो लोगों का धैर्य टिकेगा नहीं।
नई दिल्ली। बीते साल 8 नवंबर को राष्ट्र के नाम संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से घोषित की गई नोटबंदी के फैसले की अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने कड़ी आलोचना की है। अखबार के द कॉस्ट ऑफ इंडियाज मैन-मेन करेंसी क्राइसिस शीर्षत के तहत प्रकाशित संपादकीय में लिखा गया है कि इस बात के बहुत ही कम सबूत हैं कि नोटबंदी से भ्रष्टाचार को रोकने में मदद मिली हो और ना ही इस बात की गारंटी है कि भ्रष्टाचार सरीखे क्रियाकलापों पर आगे कोई रोक लग पाएगी, जब ज्यादा कैश उपलब्ध हो जाएगा।
लिखा
है
कि
भारत
सरकार
की
ओर
से
करेंसी
को
बाहर
करने
के
फैसलेस
को
दो
महीने
से
चुके
हैं
और
इसके
चलते
अर्थव्यवस्था
पर
प्रभाव
पड़ा
है।
लिखा
गया
है
कि
इस
फैसले
से
निर्माण
उद्योग
सिकुड़
रहा
है
साथ
ही
कारों
और
रियल
स्टेट
की
बिक्री
नीचे
आ
गई
है।
किसानों
और
आम
लोगों
का
कहना
है
कि
कैश
की
कमी
ने
उनका
जीवन
मुश्किलों
भरा
कर
दिया
है।
नोटबंदी
के
फैसले
को
अत्याचारी
तरीके
से
लागू
किया
गया।
इस
दौरान
नकदी
निकालने
और
जमा
करने
के
लिए
लोगों
को
घंटों
लाइन
में
लगना
पड़ा।
लिखा
गया
है
कि
इस
फैसेल
से
नए
नोटों
की
कमी
है
क्योंकि
पहले
से
छपाई
नहीं
की
गई
साथ
ही
छोटे
शहरों
और
ग्रामीण
क्षेत्रों
में
कैश
की
कमी
बहुत
ज्यादा
है।
नोटबंदी
के
फैसले
को
मानवनिर्मित
संकट
करार
देते
हुए
न्यूयॉर्क
टाइम्स
ने
लिखा
है
कि
कई
भारतीयों
को
करप्शन
के
खिलाफ
जंग
लड़ने
में
वो
थोड़ा
कष्ट
सहने
को
तैयार
है
लेकिन
कैश
की
कमी
अगर
खत्म
नहीं
हुई
साथ
ही
यदि
नोटबंदी
के
इस
फैसले
से
भ्रष्टाचार
पर
अंकुश
नहीं
लगा
तो
उनका
धैर्य
भी
टिकेगा
नहीं।
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