चीन की धीमी अर्थव्यवस्था का असर रक्षा बजट पर भी पड़ेगा, सात प्रतिशत ही होगी बढ़ोतरी!
सात प्रतिशत तक बढ़ा दिया है चीन ने अपना रक्षा बजट और ऐलान के समय अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के रक्षा खर्च में इजाफे के ऐलान को रखा जाएगा ध्यान में।
बीजिंग। चीन वर्ष 2017 के लिए अपना रक्षा बजट सात प्रतिशत तक बढ़ा सकता है। शनिवार को एक अधिकारी की ओर से यह बात कही गई है। विशेषज्ञों की मानें तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी रक्षा बजट में इजाफे की ओर इशारा कर चुके हैं और ऐसे में चीन का यह कदम कम महत्वाकांक्षी है।
ट्रूप्स में होगी कटौती
इस हफ्ते की शुरुआत में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि वह अमेरिकी सेना के लिए रक्षा बजट में 10 प्रतिशत तक का इजाफा कर सकते हैं। अमेरिका का रक्षा बजट पहले ही चीन से चार गुना ज्यादा है। चीन की नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) के प्रवक्ता फू यिंग ने कहा है कि चीन का रक्षा बजट करीब सात प्रतिशत तक बढ़ सकता है। पिछले वर्ष चीन ने अपने रक्षा बजट में 7.6 प्रतिशत का इजाफा किया था। अगर चीन अपना रक्षा बजट सात प्रतिशत रखता है और छह वर्षों में यह सबसे कम होगा। पिछले दो दशकों से चीन अपने रक्षा बजट को दहाई की संख्या में ही रखता है। वर्ष 1990 में जबसे चीन ने अपनी सेना को मजबूत बनाने के कदम उठाए हैं तब से ही वह ऐसा कर रहा है। लेकिन चीन की अर्थव्यवस्था की वजह से इसे खर्चों में कटौती करने को मजबूर होना पड़ रही है चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग चीन की सेना का आधुनिकीकरण करना चाहते हैं। उन्होंने वर्ष 2015 में ऐलान किया था कि वह चीन की 2.3 मिलियन क्षमता वाली सेना में 300,000 ट्रूप्स की कटौती करेंगे।
रविवार को आएगा रक्षा बजट
चीन का रक्षा बजट रविवार को आएगा पिछले वर्ष चीन का रक्षा बजट 980 बिलियन युआन यानी 150 बिलियन डॉलर था। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी रक्षा बजट को 603 बिलियन डॉलर कर सकते हैं। सिंगापुर के एस राजारत्नम स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में मिलिट्री एक्सपर्ट रिचर्ड बिट्झिंगर कहते हैं कि ऐसा लग रहा है कि चीन को अपना रक्षा बजट कम करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। उनका कहना है कि ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि चीन की अर्थव्यवस्था काफी धीमी है। सरकार पर दबाव है कि वह सेना पर थोड़ी कठोरता दिखाए। 15 वर्ष या इससे ज्यादा समय से चीन का रक्षा बजट दो अंकों की संख्या तक नहीं पहुंच सका है। हो सकता है कि सेना को महत्वकांक्षा में कमी का दौर देखना पड़ रहा हो।