ब्लॉग: उज़मा के नाम पाकिस्तान से आई एक चिट्ठी...
वुसतुल्लाह ख़ान पूछ रहे हैं कि उज़मा ने पाकिस्तान के बारे में जो कहा वो सच है या सच कुछ और भी है.
मैडम सुषमा स्वराज की तरह मुझे भी डॉक्टर उज़मा के भारत लौटने की बहुत खुशी है.
सुषमा स्वराज तो इस केस में पाकिस्तान के भरपूर सहयोग से बहुत खुश हैं मगर डॉक्टर उज़मा 25 दिन बाद घर वापसी के बावजूद खुश नहीं.
उनका कहना है कि ये ठीक है कि ताहिर अली से उनकी पहचान क्वालालंपुर में हुई मगर वह ताहिर अली से शादी करने नहीं बल्कि अपने रिश्तेदारों से मिलने पाकिस्तान गई थीं.
फिर कहा कि मैं बस घूमने-फिरने पाकिस्तान गई थी. ताहिर अली ने उनसे बंदूक की नोक पर शादी की. उनका पासपोर्ट ले लिया, मारपीट की.
पाकिस्तान में हर आदमी की दो-दो तीन-तीन बीवियां हैं. उन पर जी भरके ज़ुल्म ढाया जाता है.
अगर मैं वहां रह जाती तो या तो वे मुझे मार देते या बेच देते या फिर किसी आतंकवादी ऑपरेशन में इस्तेमाल कर लेते.
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मुझे डॉक्टर उज़मा की किसी भी बात से कोई आपत्ति नहीं बल्कि मैं तो उनकी ऑबज़र्वेशन से इतना प्रभावित हूं कि पूछो नहीं.
सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार डॉक्टर उज़मा इस महीने की पहली तारीख़ को दिल्ली से वाघा अटारी के रास्ते पाकिस्तान पहुंची थीं.
तीन मई को ताहिर अली से उसके गांव में शादी हुई. पांच मई को यानी शादी के दो दिन बाद वो इस्लामाबाद के भारतीय उच्चायोग के दफ़्तर पहुंच गईं.
इसका मतलब ये हुआ कि वे अपने किसी रिश्तेदार से मिले बगैर सीधे ताहिर अली के गांव पहुंचीं. कोई तो उन्हें सीमा पर लेने आया होगा.
अगले 48 घंटे में उनकी ज़बरदस्ती शादी भी हुई. मारपीट भी हुई.
उन्हें यह भी पता चल गया कि पाकिस्तान में घर-घर औरत जाति के साथ क्या-क्या व्यवहार होता है और हर आदमी की कितनी-कितनी बीवियां हैं.
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मगर ताहिर अली अजीब आदमी निकला.
वो डॉक्टर उज़मा को मार डालने या बेचने या किसी आतंकवादी ऑपरेशन में झोंकने की बजाय घर से 150 किलोमीटर दूरी पर स्थित इस्लामाबाद में भारतीय हाई कमीशन तक ले आया और वो भी अपने पासपोर्ट और वीज़े की दरख़्वास्त के साथ.
शायद वो पाकिस्तान की बजाय भारत जाकर डॉक्टर उज़मा को तलाक देना या जान से मारना या बेचना या किसी हमले में इस्तेमाल करना चाह रहा हो.
बहरहाल, कहानी जो भी हो, डॉक्टर उज़मा ख़ैरियत से घर पहुंच गईं और ताहिर अली को वीज़ा नहीं मिला.
उज़मा ने वापसी के बाद मैडम सुषमा स्वराज के बगल में खड़े होकर कहा कि भारत सबसे अच्छा मुल्क है. यहां मुकम्मल आजाद़ा है. मगर पाकिस्तान मौत का कुआं है.
बात ये है कि हर इंसान को अपने देश से मोहब्बत होनी चाहिए, लेकिन अगर मुझे पाकिस्तान से मोहब्बत है तो इसका मतलब ये तो नहीं कि मुझे भारत से नफ़रत है.
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सुषमा का नज़रिया
मैं पाकिस्तान की तारीफ़ भारत के कीड़े निकाले बगैर भी तो कर सकता हूं. उज़मा को सब पाकिस्तानी ज़ालिम नज़र आए.
मगर सुषमा को उज़मा का केस लड़ने वाला पाकिस्तानी वकील भी ऐसा नज़र आया जैसे बाप, बेटी का केस लड़ता है.
और इस्लामाबाद हाई कोर्ट का वो जज भी नज़र आया जिसने इंसानियत के जज़्बे के तहत उज़मा को भारत जाने की इजाज़त दे दी.
और वो पाकिस्तानी फ़ॉरेन ऑफ़िस और गृह मंत्रालय भी जिन्होंने सुषमा स्वराज के मुताबिक दोनों देशों के दरमियान चल रही दुश्मनी के बावजूद उज़मा की वतन वापसी में अहम किरदार अदा किया.
इसका मतलब तो ये हुआ कि भारत और पाकिस्तान जितने बुरे हैं, उतने ही अच्छे भी हैं. सब नज़र का खेल है.
हम चाहें तो दुनिया को उज़मा की नज़र से देख सकते हैं और चाहें तो सुषमा की नज़र से भी...
(ये लेखक के निजी विचार हैं)