आप में संघर्ष के दिनों के नेताओं का अपमान-अनदेखी
नई दिल्ली(विवेक शुक्ला) पुरानी कहावत है कि सफलता और संघर्ष के मित्र अलग होते हैं। आम आदमी पार्टी (आप) में योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण के साथ अरविंद केजरीवाल के चंपू और चम्चे जिस तरह का व्यवहार कर रहे हैं, उससे यह कहावत सच साबित हो रही है।
योगेन्द्र यादव और भूषण तपे हुए नेता रहे हैं। आप को खड़ा करने में इनकी अहम भूमिका रहा है। आप के शुरूआती दौर में भूषण के पिता शांति भूषण ने एक करोड़ रुपये का राशि पार्टी को दी थी।
गौरतलब है कि आप के आतंरिक लोकपाल एडमिरल रामदास ने हाईकमान को चिट्ठी लिखकर आम आदमी पार्टी में आतंरिक लोकतंत्र का अभाव बताया। इसके साथ ही एडमिरल ने कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए है।
केजरीवाल के हक में
उधर,आम आदमी पार्टी में आंतरिक कलह तेज होने और प्रशांत भूषण के राष्ट्रीय कार्यकारिणी को लिखी चिट्ठी के बाद आप नेता संजय सिंह ने ट्वीट कर केजरीवाल के पक्ष में मोर्चा संभाल लिया है। संजय सिंह ने अपने ट्वीट में कहा है कि केजरीवाल को संयोजक पद से हटाने की मांग करने वाले कार्यकर्ताओं की भावना का भी ख्याल रखें।
आप भी बाकी की तरह
अब यह अहम नहीं है कि योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण आप में रहेंगे या इनकी विदाई होगी, पर साफ है कि आप में बहुत सारी कुरीतियां अन्य दलों वाली हैं। पार्टी से जो उम्मीदें लगाई गईं थी वह खत्म हो सकती है अगर यादव और प्रशांत भूषण जैसे नेताओं के लिए स्पेस घटता है तो।
अब वक्त काम करने का
बहरहाल योंगेंद्र यादव ने ट्वीट कर कहा, दिल्ली में सफलता के बाद अब वक्त है काम करने का। देश को हमसे बहुत उम्मीदें हैं। छोटी गलतियों को लेकर लोगों की उम्मीदों को ध्वस्त ना करें। पिछले दो दिन से मीडिया में मेरे और प्रशांत भूषण के बारे में खबरें हैं। आधारहीन आरोप लगाए जा रहे हैं, साजिशें रची जा रही हैं।
हालांकि आप को करीब से जानने वाले जानते हैं कि योगेन्द्र यादव पार्टी में उठे तूफान को शांत करने की कोशिश कर रहे हैं। आपको याद होगा कि योगेंद्र यादव ने पहले भी कहा था कि उनके और केजरीवाल के बीच कोई मतभेद नहीं है। उन्होंने ये भी कहा कि आंतरिक लोकपाल की तरफ से जो मुद्दे उठाए गए हैं वो पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र को दर्शाता है।
आप की इमेज पर असर
इस बीच,वरिष्ठ राजनीतिक चिंतक संजय वधावन मानते हैं कि भले ही आप में चल रहे ताजा घटनाक्रम से दिल्ली सरकार के कामकाज पर असर ना पड़े पर इतना तो साफ है कि दिल्ली की जनता के बीच आप नेताओं के इमेज प्रभावित जरूर होगी। इसलिए इन्हें अपने आतंरिक मसलों को सार्वजिनक नहीं करना चाहिए। गौरतलब है कि आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में योगेंद्र यादव को पार्टी से हटाने की मांग उठी। उनके खिलाफ पांच सबूत रखे गए हैं।
कैबिनेट में महिला नहीं
आप की इस बात के लिए पार्टी के भीतर आलोचना हो रही है कि दिल्ली कैबिनेट में एक भी महिला के ना होने के कारण पार्टी बॉयज क्लब बनकर रह गई है। जानकार मानते हैं कि दिल्ली चुनाव की सफलता के बाद आप नेताओं को पार्टी संगठन को मजबूत करना चाहिए था। जिससे कि पार्टी 2017 में पंजाब और उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों में शानदार तरीके से उतर सकती। पर उसने इस अवसर को गंवा दिया है।