याकूब को फांसी और देश में बढ़ते दहशतगर्दों के चाहने वाले
नई दिल्ली(विवेक शुक्ला) हालांकि याकूब मेमन को फांसी हो गई, पर उनकी फांसी रूकवाने के लिए जितने जतन किए गए, वह इतिहास में हमेशा याद रखे जाएंगे। सुप्रीमकोर्ट ने फांसी रूकवाने वालों को निराश नहीं किया। उन्हें कानून के आखिरी नुकते तक को निचोडने का मौका दिया। भारत की मजबूत न्याय व्यवस्था की इस से बडी मिसाल शायद ही मिले।
आतंकवादियों के समर्थक
बहरहाल,समय समय पर आतंकवादियों के कई समर्थक सामने आते रहे हैं। वरिष्ठ लेखक अजय सेतिया कहते हैं कि पहले हम कुलदीप नैय्यर और जस्टिस सच्चर को दशकों तक अकेले आंतकवादियों के हमदर्द के रूप में देखते रहे। फिर उनके साथ महेश भट्ट जुड़े। तिस्ता सितलवाड भी जुडी।आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, इसे साबित करने के लिए भगवा आतंकवाद का जाल बुना गया।
एक तरफ आतंकवादी
अब याकूब मेमन के बहुत से समर्थक खुल कर देश के सामने आ चुके हैं।हम आतंकवाद से हार रहे हैं या जीत रहे हैं? एक तरफ आतंकवादी हैं, जिन्हें पाकिस्तान धन और पनाह देता है। यह खुलासा याकूब मेमन ने खुद किया है कि कैसे उसे पाकिस्तान ले जाया गया और मेहमान नवाजी की गई।
याकूब मेमन: जानिए कैसी रही मौत से पहले की रात
पाकिस्तान का पासपोर्ट भी दिया गया। दूसरी तरफ आतंकवादियों की यह समर्थक फौज तैयार हो गई, जो आतंकवादियों के शिकारों के मानवाधिकारों, उन के जिंदा रहने के अधिकारों पर मौन हो जाती है। पर आतंकवादियों के लिए न दिन देखती है न रात।
चुप्पी कांग्रेस की
सेतिया कहते हैं कि इस पूरे घटनाक्रम में कांग्रेस की चुप्पी पर भी सवाल खडा हुआ है। वह किस और थी। हमे याद है 1999 की विमान अपहरण घटना। कांग्रेस ने सर्वदलीय बैठक में विमान यात्रियों को बचाने के लिए हरसंभव प्रयास का समर्थन किया था।
वाजपेयी पर दबाव डालने के लिए उनके आवास पर प्रदर्शनकारी भेजे, जसवंत सिंह जब यात्रियों को लेकर दिल्ली पंहुचे तो दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित हवाई अड्डे पर स्वागत के लिए खडी थी। बाद में अचानक वाजपेई सरकार के उस कदम का विरोध कर दिया। यह मौका देख कर सियासत करने की हरकतें देश को आतंकवाद के खिलाफ एकजुट और मजबूत नहीं होने देंगी।