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स्तब्ध करने वाला विश्व सांस्कृतिक उत्सव!

By दर्शक हाथी, इंटरनेशनल डायरेक्टर, ऑर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन
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सबसे पहले तो मैं इसी बात में उलझन मे हॅू कि हमने इस उत्सव को करने की प्रक्रिया में कहां गलत हुये। हम पर्यावरण के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील रहे हैं- 'मेरी दिल्ली मेरी यमुना के साथ साथ 3 राज्यों में 16 नदियों को पुर्नजीवन दिया। हम ही यमुना को हानि क्यों पहुचायेंगें?'

World Cultural Festival

एनजीटी भी इस बात को स्वीकार करती है कि हमने सभी विभागों से संपर्क किया और उनकी सहमति प्राप्त की। उलझन में डालने वाली बात यह है कि हमें नियमों को मानने का अर्थदंड देना होगा। यह ऐसा ही है जैसे एक ड्राइवर को हरी बत्ती में गाड़ी चलाने का चालान किया जायेगा। यदि यह क्षेत्र पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील थी, तो अधिकारियों को इसकी सहमति ही नहीं देनी चाहिये थी और हम कोई और स्थान का चुनाव करते। यही बात तो उलझन वाली है कि इस ऐसी किसी बात का कहीं भी उल्लेख नही था।

दलदल और कीचड़ चुनी

किसी ने कहा कि हमने स्थान के चुनाव में प्रभाव का प्रयोग किया। यह विचार ऐसा है कि हमने दलदल और कीचड़ से भरे स्थान को प्राप्त करने के लिये प्रभाव का प्रयोग किया। हम ऐसे किसी स्थान के लिये अपने प्रभाव का प्रयोग ही क्यों करेंगे, जिस में हमे इतनी मेहनत करनी पड़ेगी? मैं श्री श्री से गत 20 वर्षों से परिचित हूं, वे हमेशा यह समझाते रहे हैं कि अपने किसी काम के लिये किसी का गलत उपयोग ना हो, इस का ध्यान रखा जाये। ना ही उन्होंने कभी ऐसा किया।

स्थाई निर्माण के विरुद्ध आवाज़ क्यों नहीं उठी?

इस से भी उलझन वाली बात यह है कि जो लोग इस अस्थायी निर्माण के विरुद्ध आवाज उठा रहे हैं, उन्होंने कभी उस मैदान पर बने थोड़ी ही दूर पर बने, स्थायी निर्माण के विरुद्ध कभी आवाज नहीं उठायी। क्या वे वास्तव में यमुना के प्रति चिंतित हैं या वे श्री श्री को निशाना बना रहे हैं?

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कुछ बुद्धिमान लोगों ने हमे उत्सव से दस दिन पहले स्थान बदलने के लिये कहा, मानों यह कोई भैंस बांधने जैसा है और उसे कहीं भी ले जाया जा सकता है। हम जानते हैं कि वे बुद्धिमान हैं - वे टी वी पर आते हैं, लेकिन उन्होंनें अपनी जीवन कोई आयोजन भी नहीं किया होगा और ना ही वे इस के स्तर से परिचित थे। उनका तर्क चक्कर में डालने वाला था।

यह मंच इतना विशाल था कि इस 35000 कलाकार और 3,000 गणमान्य व्यक्ति उपस्थित होने वाले थे। इस प्रकार के निर्माण कर्ता इंजीनियर ने कहा कि यह 40 फीट ऊंचा निर्माण बिना आधार के बनाना सुरक्षित नहीं होगा। यह एक तैरता हुआ मंच था और अपने आप में स्थापत्यकला का एकदम अनूठा उदाहरण।

वर्षा ने भी उन कलाकारों के उत्साह पर कोई प्रभाव नहीं डाला, जिन्होंने अपना उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। घंटों उस स्थिति में वे मुस्कुराते हुये बैठे रहे और उनके चेहरे पर किसी प्रकार की उग्रता नहीं थी।

इतना अनुशासित कार्यक्रम कैसे

यह भी एक उलझन ही है कि इतना विशाल जनसमूह था और कुछ छोटी चोरियों के अलावा किसी भी प्रकार का अपराध उस स्थान पर नहीं हुआ जो अपराधियों के लिये सैरगाह रहा है। पुलिस भी उलझन में है कि इतनी बड़ी खुद ही अनुशासित थी और उन्हें इस मामले में ज्यादा कुछ नहीं करना पड़ा।

पहले दिन की वर्षा और आने वाले दिनों के लिये वर्षा की भविष्यवाणी से हम थोड़ा चिंतित थे कि शायद लोग कम आयें। लेकिन आने वालों की संख्या हर दिन पहले दिन से ज्यादा ही रही। इस से भी अधिक उलझन की बात तो यह रही कि ट्रैफिक प्रंबधन अद्भुत था और यह शनि वार तथा रविवार होते हुये भी सुगमता से संचालित होता रहा, जबकि शुक्रवार को तो फिर वर्षा और प्रधानमंत्री की सुरक्षा के कारण कुछ रुका।

छत्तीसगढ़ और अमेरिका एक मंच पर

छत्तीसगढ़ का आदिवासी नृत्य और दक्षिणी अमेरिका का टेंगों नृत्य एक ही मंच पर होना भी उलझन में डालने वाला था। सभी व्यक्ति विश्वभर की विविधता का उत्सव एक ही मंच पर एक साथ मनाने को उत्साहित थे।

सबसे ज्यादा तो उलझन में डालने वाली बात यह थी कि कुछ राजनीतिक दल इस आयोजन से दूर कैसे रहे, जो कि लोगों को एकता में बांधने वाला था। हमने तो कांग्रेस और अन्य दलों को भी निमंत्रण दिया था लेकिन वे नहीं आये। जब विश्व भर से नेता अपने संदेश देने के लिये आतुर थे और वहां पंहुच रहे थे, ये दल क्यों अनुपस्थित थे? और सबसे ज्यादा रुचिकर बात यह थी कि दूसरे देशों के सत्ताधारी और विपक्षी दल दोनों ही आये थे - इंग्लैंड के कंजरवेटिव और लेबर दल के सांसद दोनों की वहां पर उपस्थित थे, अमेरिका के डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन के सदस्य चुनाव का दिन होने के बावजूद भी वहां आयें।

कहां थे हमारे विपक्षी दल

जर्मन के सत्ताधारी और विपक्षी दल के प्रतिनिधि वहां थे, श्रीलंका के मंत्री अपने विपक्षी सदस्यों के साथ वहां थे। नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री और वर्तमान के उप प्रधानमंत्री उपस्थित थे और संबोधित भी किया। युरोप के देश के एक निवर्तमान प्रधानमंत्री ने आश्चर्य व्यक्त किया "कौन होगा जो विश्व शांति के लिये अपना संदेश देने इस सुंदर अवसर पर विश्वभर को अपना शांति संदेश नहीं देगा?" और हमारे विपक्षी दलों ने ऐसा किया। इस स्थान पर हो कर इन लोगों को इस तरह से पूर्वाग्रह से ग्रस्त और पक्षपाती होना शोभा नहीं देता है।

यह उनके बारे में गलत संदेश ही देता है। क्या वे यह संदेश देना चाहते थे कि वे शांति और मानवता की एकता से जुड़े हुये नहीं हैं? 2500 से अधिक धार्मिक नेताओं का एक मंच पर उपस्थित होना और एक ही आवाज में बोलना भी उलझन में डालने वाला था।

क्यों दिल्ली क्यों नहीं?

हमारे शुभचिंतकों ने हमें परामर्श दिया कि हमें यह उत्सव दिल्ली में नहीं रखना चाहिये- "आपके मंतव्यों को गलत सिद्ध किया जायेगा और निचले स्तर की राजनीति तक आपको खींचा जायेगा।" हमने इस पर ध्यान नहीं दिया क्यों कि हमें अन्य कई लाभ थे। दिल्ली में हमें यात्रा और ठहराव की जोी सुविधा प्राप्त होनी थी, वो कहीं ओर नहीं मिलने वाली थी।

मीडिया का एक समूह इससे भारत को प्राप्त होने वाले सौंदर्य और गर्व की उपेक्षा करके होने वाले कचरे पर ध्यान खींचकर नकारात्मकता फैलानी आरंभ कर दी। आर्ट ऑफ लिविंग को नीचा दिखाने के चक्कर में वे गंदगी की ढेर पर बैठ कर गंदगी ही नोचते हुये दिखाई दिये।

जब और देश इसी उत्सव उनके यहां करने के लिये हमें निमंत्रण दे रहे हैं और उनकी मीडिया और गणमान्य व्यक्ति इसकी प्रशंसा के गुण गा रहे हैं, हमारी मीडिया के यह समूह हमारे देश की छवि खराब करने में लगा है। इस से ज्यादा स्तब्ध करने वाला और क्या होगा।

एक प्रकाशन ने स्वर्गीय डां. बुतरस बुतरस घाली, जिनका देहांत फरवरी में हो गया था, का हमारी स्वागत समिति में होने के कारण 'स्वागत समिति में मृत व्यक्ति' संबोधित किया। हमारी यह समिति गत वर्ष ही बना दी गई थी और छपने वाली साम्रगी बहुत पहले ही छप कर तैयार हो गयी थी। डां बुतरस बुतरस घाली इस के सह अध्यक्ष थे और इस आयोजन को लेकर बहुत उत्साहित थे। लेकिन दुर्भाग्य से आयोजन के एक माह पूर्व ही उनका देहांत हो गया। लेकिन पूर्वाग्रह में अंधे इस प्रकाशन ने अपनी सारी समझ खोकर एक महान विश्व विख्यात व्यक्ति का अपमान किया।

आतंक की घुसपैठ की बात को ध्यान में रखते हुये, एक व्यक्ति हमारे कार्यालय आया और आयोजन स्थल के लिये 50 ऑल एक्सेस पासेस की मांग करने लगा। लेडी इन चार्ज ने जब जांच पड़ताल की तो पाया कि आई बी ने ऐसे किसी व्यक्ति को पासेस के लिये नहीं भेजा था। यह आगंतुक एक धोखेबाज था।

मीडिया और राजनीति का चक्रव्यूह

हम मीडिया और राजनैतिक दलों के चक्रव्यूह में फंस रहे थे, क्योंकि आतंक का साया और गंदा मौसम इस पर करेला नीम चढ़े का काम कर रहा था। लेकिन ज्ञान की शक्ति ने राह दिखाई और हजारों स्वयंसेवक जो इस आयोजन के लिये अनेक दिनों से अथक कार्य कर रहे थे। कुछ तो कई दिनों सेढंग से सो भी नहीं पाये थे, उनके चेहरे पर अमर मुस्कान, सुदृढ़ सकंल्प, उत्साह और प्रेरणादायी उमंग से कार्य कर रहे थे। आयोजन के अगले दिन श्री श्री ने उनको विश्राम करने के लिये कहा लेकिन वे आयोजन स्थल को साफ करने के लिये फिर आ गये। यह भी स्तब्ध करने वाला ही था कि जहां लाखांे लोग खाना पीना किये, वह इस तरह साफ हो जायेगा।

किसी का निर्माण करना किसी विध्वंस से अधिक प्रयास मांगता है, एक स्थान पर लोगों को एकत्रित करना ज्यादा बड़ा है ना कि उनको तितर बितर करना। इतनी चुनौतियों के बावजूद विश्व सांस्कृतिक उत्सव ने लाखों लोगों का दिल जीता और इसकी विजय हमारी अपेक्षाओं से परे है। यहां सब कुछ स्तब्ध करने वाला ही था।

Comments
English summary
First of all, I’m still baffled by where we went wrong in following all the procedure in holding the World Cultural Festival.
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