योगी-मोदी-राम मंदिर बनेगा 2019 में भाजपा की जीत का मंत्र!
क्या राम मंदिर का मुद्दा एक बार फिर से 2019 के चुनाव में बनेगा बड़ा मुद्दा, मामले में बड़े भाजपा नेताओं के खिलाफ मुकदमा पार्टी को दे सकता है राजनीतिक लाभ
लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह से भाजपा के 15 शीर्ष नेताओं के खिलाफ बाबरी विध्वंस मामले में आपराधिक षड्यंत्र का मुकदमा चलाने के निर्देश दिया है उसके बाद देश की सियासत एक बार फिर से राम मंदिर को लेकर गर्मा गई है। कोर्ट ने अगले दो वर्ष के भीतर बाबरी विध्वंस के मामले में अपना निर्णय सुनाने का निर्देश दिया है, जिसमें भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती जैसे नेता भी शामिल हैं।
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3000 लोगों ने गंवाई थी जान
बाबरी मामले की सुनवाई अब हर रोज चलेगी औऱ 245 साल से चल रहे इस मामले का अंत होगा, जिसमे मुगल काल की बाबरी मस्जिद को कुछ हिंदु संगठन के लोगों ने गिरा दिया था। इसके बाद देशभर में दंगे भड़क गए और तकरीबन 3000 लोगों की जान चली गई थी। इस विवाद के बाद भी भाजपा का उदय देश की राजनीति में हुआ और पार्टी राम मंदिर के मुद्दे को लेकर केंद्र में सत्ता के शीर्ष पर पहुंची।
2019 में हो सकता है निर्णायक मुद्दा
बाबरी मामले की सुनवाई मई माह के मध्य में शुरु होगी और इसका फैसला 2019 तक आ जाना है, यह वह समय होगा जब देश के लोग 2019 के चुनाव के लिए तैयार होंगे और इस बात का फैसला होगा कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक बार फिर से देश की सत्ता सौंपनी है या नहीं। लेकिन इस बाबत विश्व हिंदू परिषद के सचिव चंपत राय का कहना है कि यह राजनीतिक लोगों को सोचने दीजिए कि इस ट्रायल का असर चुनाव पर पड़ेगा कि नहीं।
हर चुनाव में मुद्दा रहा राम मंदिर
वर्ष 1991 के बाद राम मंदिर का मुद्दा तकरीबन हर चुनाव में भाजपा का एजेंडा रहा, पार्टी ने अपनी स्थिति को हमेशा इस मुद्दे पर साफ किया कि मंदिर का निर्माण होना चाहिए या तो संवैधानिक तरीके से कोर्ट के फैसले के बाद या फिर आपसी सहमति से। इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है ताकि बीच का रास्ता निकाला जा सके। सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा के बीच यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है।
राम मंदिर से ही अस्तित्व में आई भाजपा
केंद्र में पूर्ण बहुमत की भाजपा सरकार है और हाल ही में उत्तर प्रदेश में भी भाजपा ने पूर्ण बहुमत से कहीं बड़ी सरकार बनाई है लेकिन अभी भी पार्टी इस बात पर चुप्पी साधे हुए है कि क्या वह संसद में अध्यादेश लाकर राम मंदिर के निर्माण की पहले शुरु करेगी। राम मंदिर के निर्माण की मांग सबसे पहली बार भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठख 1987 में उठी थी। उस वक्त भाजपा राष्ट्रीय राजनीति में बहुत छोटा हिस्सा थी और देश की राजनीति में कांग्रेस का दबदबा था।
आडवाणी ने दी थी राम मंदिर मुद्दे को धार
इसके बाद जब लाल कृष्ण आडवाणी ने 1990 में रथ यात्रा शुरु की तो राम मंदिर के मुद्दे को अलग ही धार मिली और इस रथयात्रा ने भाजपा के भाग्य को बदलकर रख दिया। रथयात्रा को भाजपा को जबरदस्त लाभ हुआ। 2014 के लोकसभा चुनाव में भी इस मुद्दे ने भाजपा को जबरदस्त लाभ दिया और पार्टी को 80 में से 73 सीटों पर जीत हासिल हुई। लेकिन जिस तरह से आडवाणी, जोशी और उमा भारती के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र का मामला एक बार फिर से शुरु हो गया है, वह इस मुद्दे को आगामी चुनाव में भुनाना भी चाहेगी। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश में हिंदुवादी नेता योगी आदित्यनाथ भी इस मुद्दे को आगे जीवित रखना चाहेंगे।
मोदी-योगी-राम मंदिर जीत का मंत्र
योगी आदित्यनाथ, प्रधानमंत्री मोदी और राम मंदिर एक साथ ऐसा मिश्रण है जो भाजपा के लिए 2019 में एक बार फिर से जीत का मंत्र साबित हो सकता है। ऐसे में उत्तर प्रदेश इसमें अहम भूमिका निभा सकता है, जहां से सबसे अधिक सांसद चुनकर संसद में पहुंचते हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मोदी सरकार ने इस मुद्दे पर कुछ भी कहने से इनकार किया है, हालांकि उमा भारती के इस्तीफे से भी पार्टी ने साफ इनकार किया है। ऐसे में अगर कोर्ट ने भाजपा के नेताओं को छूट मिलती है तो इसका लाभ पार्टी पूरी तरह से लेना चाहेगी। वहीं अगर भाजपा के नेता दोषी पाए गए तो ये नेता हिंदूवादी छवि के नए नेता बनकर उभरेंगे, बहरहाल कोर्ट का फैसला जो भी आए इसका लाभ दोनों ही तरह से भाजपा को ही होगा।