कश्मीर को क्यों है जीएसटी अपनाने पर एतराज़?
- 1 जुलाई के बाद से पूरा देश जीएसटी के दायरे में आ गया है.
- लेकिन जम्मू-कश्मीर सरकार ने अब तक इसे स्वीकार नहीं किया है
- घाटी में मौजूद व्यापारिक संस्थाएं इसका विरोध कर रही हैं.
- उन्हें लग रहा है कि 'जीएसटी अपनाकर वह अपनी स्वायत्तता खो देंगे.
बीती 1 जुलाई के बाद से पूरा देश जीएसटी यानी गुड्स एंड सर्विसेज़ टेक्स के दायरे में आ गया है.
लेकिन जम्मू-कश्मीर सरकार ने अब तक इसे स्वीकार नहीं किया है. घाटी में मौजूद राजनीतिक दल और व्यापारिक संस्थाएं इसका विरोध कर रही हैं.
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प्रमुख राजनीतिक दल नेशनल कॉन्फ्रेंस समेत सभी व्यापारिक संस्थाएं जीएसटी का विरोध इसलिए कर रही हैं क्योंकि उन्हें लग रहा है कि 'जीएसटी - एक देश-एक कर' अपनाकर वह अपनी स्वायत्तता खो देंगे.
इस राज्य को ये दर्जा संविधान की धारा 370 के तहत मिला हुआ है.
यहां ये बताना ज़रूरी है कि संसद ने संविधान एक्ट 2016 से भारत के संविधान को बदलकर संसद और राज्य की विधानसभाओं को देश में वस्तुओं और सेवाओं पर कर लगाने के लिए ज़रूरी शक्तियां दे दी हैं.
संवैधानिक स्थिति
हालांकि, संवैधानिक संशोधनों के मामले में जम्मू-कश्मीर को एक ख़ास दर्जा हासिल है. संविधान में संशोधन करने की शक्ति अनुच्छेद 368 में है जो जम्मू-कश्मीर पर थोड़े बदले हुए रूप में लागू होती है.
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जम्मू-कश्मीर में कोई भी संशोधन तब तक लागू नहीं हो सकता जब तक वह संविधान की धारा 370 के तहत राष्ट्रपति द्वारा जारी किया गया आदेश न हो.
जम्मू-कश्मीर में ये आम धारणा है कि जीएसटी अपनाने के साथ-साथ राजनीतिक और आर्थिक स्वायत्तता को भी खोना होगा. लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक, ये राज्य ज़्यादा दिनों तक जीएसटी की परिधि से बाहर नहीं रह सकता.
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उन्हें लगता है कि जम्मू-कश्मीर उपभोक्ता राज्य है और आयात पर निर्भर है, ऐसे में जीएसटी के आने से राज्य में चीज़ों के दाम बढ़ेंगे. इससे उपभोक्ताओं समेत व्यापारियों को भी नुकसान होगा.
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि जीएसटी को वर्तमान रूप में अपनाना आख़िरकार प्रदेश की स्वायत्तता को खत्म़ कर देना होगा. इसलिए जीएसटी को कुछ संशोधनों के साथ स्वीकार करना चाहिए.
विशेषज्ञ कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर किसी दूसरे प्रदेश की तरह इंट्रा-स्टेट माल की बिक्री पर जम्मू-कश्मीर जनरल सेल्स टैक्स और जम्मू-कश्मीर वैल्यू ऐडेड टैक्स लगा रहा है. लेकिन सर्विस टैक्स के लिहाज से इस राज्य की स्थिति अन्य राज्यों से भिन्न है. अन्य राज्यों में सर्विस टैक्स एक केंद्रीय क़ानून जैसे सर्विस टैक्स एक्ट के आधार पर लगाया जाता है, लेकिन ये क़ानून जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता.
ऐसे में राज्य के संविधान की धारा 5 के तहत सामान्य सेल्स टैक्स ऐक्ट के प्रावधानों के तहत सर्विस टैक्स यूज़ होता है.
उनका मानना है कि इसका कारण ये है कि अगर जीएसटी को इसके वर्तमान रूप में पेश कर दिया गया तो राज्य सरकार सर्विस टैक्स लगाने की अपनी शक्ति केंद्र को दे देगी. यही बात जम्मू-कश्मीर को अन्य राज्यों से अलग करती है क्योंकि अन्य राज्यों में ये ताकत केंद्र के पास है जबकि इस राज्य में ये ताकत राज्य के पास है.