हेडली के बारे में जानते हुए भी अमेरिका क्यों रहा खामोश
मुंबई। मुंबई कोर्ट में डेविड हेडली इन दिनों 26/11 मुंबई हमलों में अपना बयान दर्ज करा रहा है। हेडली जो कुछ भी बता रहा है, वह भारत की नेशनल इनवेस्टिगेटिंग एजेंसी और अमेरिका की एफबीआई को पहले से ही मालूम है।
एक सवाल जो आपके और हमारे दिमाग में आता है, वह है इस पूरे मसले पर अमेरिका की चुप्पी। अमेरिका डेविड कोलमैन हेडली के बारे में सबकुछ जानता था लेकिन फिर भी उसने भारत को उसके बारे में कुछ नहीं बताया।
क्यों हेडली के खुलासे के बाद भी लाचार है भारत
भारतीय सरकार को जब मालूम था कि उसने अमेरिका की सरकार के साथ एक समझौते पर साइन कर लिए हैं तो फिर वह यह भरोसा क्यों दिलाती रही कि हेडली को भारत लाया जाएगा।
भारत की सरकार ने 35 वालों एक समझौते को अमेरिका के साथ साइन किया था। डेविड हेडली का नाम अमेरिका के लिए नया नहीं है। हेडली एक अमेरिकी एजेंट था जिस पर हर पल निगाह रखी गई थी।
दूसरे दिन हेडली के पाक पर किए गए खुलासे
रॉ के पूर्व अधिकारी वी बालचंद्रन की ओर से बताया गया है कि इस बात में फिर कोई शक नहीं होना चाहिए कि आखिर क्यों उसे भारत को नहीं सौंपा गया और वर्ष 2009 में अमेरिका ने हेडली को गिरफ्तारी कर लिया।
वह बताते हैं कि इंटेलीजेंस आईडेंटिटीज प्रोटेक्शन एक्ट के तहत अमेरिका किसी भी व्यक्ति की पहचान को उजागर नहीं करता है। इस एक्ट में विदेशी सरकार भी शामिल होती हैं।
आई लुईस उर्फ स्कूटर लिबी अमेरिका के उपराष्ट्रपति रिचर्ड चेनी को इस कानून के तहत वर्ष 2007 के सजा दी गई थी। लिबी ने सीआईए के एक अंडरकवर एजेंट की पहचान को सार्वजनिक कर दिया था।
अमेरिका ने हालांकि 26/11 पर एडवांस इंफॉर्मेशन भेजी थी और उस समय गृहमंत्री रहे पी चिदंबरम ने इस बात को स्वीकार किया था।
हेडली के बारे में अमेरिका ने कोई जानकारी नहीं दी। बालचंद्रन के मुताबिक किसी भी देश को ए जेंट या ऐसी इंटेलीजेंस साझा नहीं की जाती हैं। अमेरिका ने जब हेडली को गिरफ्तार किया तो भारत की सरकार की ओर से भरोसा दिलाया गया कि उसके प्रत्यपर्ण की कोशिशें की जाएंगी।
यह भरोसा सिर्फ एक झूठ से ज्यादा कुछ नहीं था क्योंकि अगर अमेरिकी सरकार के साथ हुए समझौते 'प्ली बार्गेन' डील को पढ़ा जाए तो साफ हो जाएगा कि सरकार के साथ ही सभी लोग झूठ बोल रहे थे।
18 मार्च 2010 को हेडली ने एक 'प्ली बार्गेन एग्रीमेंट' साइन किया था। उस समय इलिनियॉस नॉर्दन डिस्ट्रिक्ट में उसका एटॉर्नी भी मौजूद था। इस डील में साफ था कि हेडली को मौत की सजा नहीं दी जाएगी और न ही उसे डेनमार्क, भारत या फिर पाकिस्तान को प्रत्यर्पित किया जाएगा।
हेडली को अमेरिका ने 35 वर्ष की सजा सुनाई है। इसके अलावा उस पर अगले पांच वर्षों तक नजर रखी जाएगी।