उल्टा पड़ गया है डोकलाम में चीन को अपना ही बिछाया जाल
आखिर क्यों डोकलाम विवाद को खड़ा करना चीन की बड़ी भूल, आसान नहीं होगा चीन के लिए युद्ध के मैदान में जाना
नई दिल्ली। डोकलाम मुद्दे पर जिस तरह से चीन लगातार भारत क गीदड़भभकी दे रहा है, वह अब चीन के लिए ही मुश्किल का सबब बनता दिख रहा है। दरअसल चीन अपनी इस गीदड़भभककी से दक्षिण चीन सागर में तमाम छोटे देशों को धमकी देता रहता है और उसकी इस गीदड़ भभकी से डरकर ये देश अपने रुख में बदलाव करते रहे हैं। लेकिन भारत के मामले में चीन को अपनी इस गीदड़भभकी की सही स्थिति का पहली बार अंदाजा हो रहा है। चीन को इस बात का कतई अंदाजा नहीं था कि उसकी गीदड़भभकी से ना सिर्फ भारत बल्कि भूटान भी बेअसर दिखेगा।
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उल्टा पड़ा चीन का दांव
चीन और भारत के बीच जून में डोकलाम मुद्दे को लेकर तनातनी शुरू हुई थी, भारत और चाइना पिपुल्स लिबरेशन ऑर्मी के बीच उस वक्त विवाद शुरू हुआ था जब पीएलए ने भूटान की जमीन पर सड़क निर्माण का कार्य शुरू किया था। इस जमीन पर एक तरफ जहां चीन दावा कर रहा है तो दूसरी तरफ भूटान का साफ कहना है कि यह उसका क्षेत्र है। वहीं भारत के लिए यह क्षेत्र आंतरिक सुरक्षा और कूटनीतिक मायनों से काफी अहम है। ऐसे में चीन की इस जगह पर सड़क निर्माण की पहल इस इलाके की शांति को जानबूझकर भंग करने वाला कदम माना जा रहा है। लेकिन चीन को शायद इस बात का कतई भी अंदाजा नहीं था कि उसे इस तरह के हालात का सामना करना पड़ेगा, उसे ना सिर्फ भारत बल्कि भूटान के तल्ख अंदाज को देखना पड़ेगा।
पहले ही तमाम मुश्किलों में घिरा चीन
केंद्र सरकार के पूर्व सचिव संजीव मिश्रा का कहना है कि इस विवाद में डोकलाम में चीन के पास जीत का कोई विकल्प नहीं दिखता है क्योंकि इस पूरे मुद्दे पर भारत ने सख्त और मजबूत रुख अख्तियार कर लिया है, लिहाजा डोकलाम का यह पूरा विवाद चीन के लिए पूरी तरह से गलत आंकलन साबित हुआ है। इसके पीछे की वह तमाम वजह बताते हैं, वह कहते हैं कि एक तरफ जहां चीन पहले से ही नॉर्थ कोरिया, ताइवान, दक्षिण चीन सागर जैसे मुद्दों से जूझ रहा है, वहीं दूसरी तरफ भारत से डोकलाम पर उलझने का चीन की गलत रणनीति और सोच को दर्शाता है।
चुनावी रणनीति के तहत अपनाया यह दांव
संजीव मिश्रा बताते हैं कि भारत के साथ हिमालय के एक छोटे से हिस्से में चीन के विवाद खड़ा करने की वजह बिल्कुल साफ है, वह यह कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग फिर से चुनाव की तैयारी कर रहे हैं और वह एक बार फिर से सत्ता में वापस लौटना चाहते हैं, लिहाजा अगर वह डोकलाम से पीएलए को वापस बुलाते हैं तो यह उनकी काफी किरकिरी करा सकता है। हालांकि चीन भारत से कतई युद्ध करने का जोखिम नहीं लेगा, लेकिन अगर चीन भारत के साथ युद्ध के मैदान में जाता है तो जिनपिंग को इससे कुछ खास हासिल नहीं होगा बल्कि इससे इतर उनकी वैश्विक छवि को काफी नुकसान पहुंचेगा।
आसान नहीं होगा युद्ध के मैदान में जाना
यही नहीं युद्ध के मैदान में जाने से चीन का ओबोर प्रोजेक्ट भी खटाई में पड़ जाएगा, इसकी बड़ी वजह है कि पहले की तरह युद्ध काल में भी व्यापारिक और आर्थिक रिश्ते बेहतर रहेंगे ऐसा अब बिल्कुल मुमकिन नहीं है। जिनपिंग ने अपनी राजनीतिक धमक को मजबूत करने क लिए काफी कुछ दांव पर लगाया है, लेकिन अगर आर्थिक क्षेत्र पर नजर डालें तो वह कुछ बड़े सुधार लाने में विफल रहे हैं। जिस तरह से उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान छेड़ा था उसने उन्हें विरोधियों के निशाने पर ला दिया है, ऐसे में अगर चीन भारत के साथ युद्ध करता है तो इससे ना सिर्फ भारत बल्कि चीन को भी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ेगा और दोनों ही देशों की आर्थिक विकास की दर पर भी दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।
कई देशों की लेनी पड़ सकती है दुश्मनी
वहीं अगर इस पूरे घटनाक्रम को भारत के परिपेक्ष्य से देखा जाए तो भारत बतौर लोकतांत्रिक देश होने की वजह से बेहतर स्थिति में है। एक तरफ जहां भारत इस पूरे विवाद में एक कुछ झटके खाकर फिर से बेहतर स्थिति में लौट सकता है, तो दूसरी तरफ चीन के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि उसे स्वायत्त देश की संप्रभुता पर जवाब देना होगा, लिहाजा जिनपिंग के लिए यह जोखिम लेना आसान नहीं होगा। चीन का भारत को गीदड़भभकी देना ना उसे इन तमाम वजहों से भारी पड़ सकता है बल्कि मुमकिन है कि अमेरिका, जापान और भारत इस मुद्दे पर उसके खिलाफ एकजुट हो जाएं।