क्यों पैदा होते हैं चार पांव-एक सिर-चार हाथ वाले बच्चे?
अगर मां के गर्भ में ऐसा बच्चा पल रहा है तो इसके बारे में पता लग सकता है और अगर माता पिता चाहें तो गर्भपात करवा सकते हैं.
डॉक्टर बताते हैं कि चार या पांच महीने के गर्भाधारण में सोनोग्राफ़ी करवाने पर ये पता चल जाता है कि बच्चे की स्थिति क्या है.
डॉक्टर धर्मेंद्र ये भी बताते हैं कि ऐसे मामलों में एक और तरीक़ा अपनाया जाता है.
वो कहते हैं, "यदि गर्भवती महिला के गर्भ में एक से अधिक बच्चे हैं और एक सही से विकसित हो रहा है
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में एक बच्चा चार पैर और दो लिंग के साथ पैदा हुआ लेकिन पैदा होने के दो दिन बाद ही उसकी मौत हो गई.
ये मामला गोरखपुर के सहजनवा गांव का हैं, जहां के सरकारी अस्पताल में 15 सितंबर को इस बच्चे का जन्म हुआ था.
बीबीसी से बात करने पर इस परिवार के पड़ोस में रहने वाली एक महिला ने बताया कि बच्चा पैदा होने के दो दिन बाद ही गुज़र गया.
वो कहती हैं "बच्चे के चार पैर के साथ दो लिंग थे जिसके कारण बच्चा टॉयलेट ही नहीं कर पा रहा था. इसके अलावा शरीर में मल त्यागने की जगह भी नहीं थी."
वो कहती हैं जब भी सोनोग्राफ़ी रिपोर्ट की बात हुई यही बताया गया कि सब नॉर्मल है.
बीमारी या अजूबा?
भारत में इस तरह के बच्चों को अलग-अलग नज़रिए से देखा जाता है. कोई इन्हें शुभ मानता है तो कोई अशुभ, तो कोई अनोखा. लेकिन क्या सच में इस तरह के बच्चों का जन्म कोई अजूबा है या कोई बीमारी?
मैक्स हॉस्पिटल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर कपिल विद्यार्थी कहते हैं कि ऐसे बच्चों का जन्म कोई आश्चर्य की बात नहीं है.
दरअसल, ये पूरा मामला जुड़वा बच्चे से जुड़ा है. मां के गर्भ में अंडा बनने के बाद कई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, जिसकी वजह से गर्भ में जुड़वा बच्चे पूरी तरह विकसित नहीं हो पाते हैं.
डॉक्टर विद्यार्थी अपनी बात को कुछ इस तरह समझाते हैं.
वो बीमारी जिसमें जागते हुए नींद के दौरे पड़ते हैं
इन आठ तरीकों से बढ़ा सकते हैं दिमाग़ की क्षमता
"ऐसे मामलों में अंडे का जितना भाग जुड़ा होता है उतना विकसित न होकर बाकी भाग विकसित हो जाता है. और शरीर के अंग बन जाते हैं. मतलब, अगर कोई अंडा पूरी तरह दो भागों में विभाजित न हो तो जब बच्चा पैदा होगा उसके शरीर के अंग जुड़े हुए हो सकते हैं."
वे कहते हैं, "अगर मां के गर्भ में अंडा पूरी तरह दो भागों में विभाजित हो जाता है तो बच्चे जुड़वा होंगे. और अगर अंडे पूरी तरह विभाजित नहीं हुए तो दो तरह के जुड़वा बच्चे पैदा हो सकते हैं."
दो तरह के जुड़वा बच्चे
मैक्स हॉस्पिटल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर पी धर्मेंद्र बताते हैं कि गोरखपुर में पैदा हुआ बच्चा 'पैरासिटिक ट्विन' का एक उदाहरण है.
आसान शब्दों में समझाते हुए डॉक्टर धर्मेंद्र कहते हैं, "जुड़वा बच्चे होने तो थे पर वो किसी कारण से पूरी तरह विकसित नहीं हो पाए और उनके शरीर का कुछ ही हिस्सा विकसित हो पाया. इस कारण पूरी तरह से विकसित न होने पर एक ही बच्चे के अतिरिक्त अंग बन गए."
इसी तरह कंजॉइन्ड ट्विन भी होते हैं, ऐसे बच्चे जो विकसित तो होते हैं लेकिन उनके शरीर का कुछ हिस्सा या कोई एक हिस्सा जुड़ा हुआ होता है.
दोनों ही तरह के मामलों में बच्चों का ऑपरेशन करके अलग किया जा सकता है.
डॉक्टर धर्मेंद्र का कहना है कि यदि बच्चे के शरीर का निचला हिस्सा जुड़ा हुआ है तो उसे ऑपरेशन से अलग किया जा सकता है.
अगर रीढ़ की हड्डी वाला हिस्सा जुड़ा हुआ हो तो उसे अलग करना थोड़ा मुश्किल होता है क्योंकि हो सकता है ऐसा करने पर बच्चे का लिंग काम न करे.
सिर से जुड़े बच्चों के माता-पिता का संघर्ष
नवजात बच्चों के लिए महफ़ूज़ नहीं है भारत
क्या हो सकता है इलाज?
अगर मां के गर्भ में ऐसा बच्चा पल रहा है तो इसके बारे में पता लग सकता है और अगर माता पिता चाहें तो गर्भपात करवा सकते हैं.
डॉक्टर बताते हैं कि चार या पांच महीने के गर्भाधारण में सोनोग्राफ़ी करवाने पर ये पता चल जाता है कि बच्चे की स्थिति क्या है.
डॉक्टर धर्मेंद्र ये भी बताते हैं कि ऐसे मामलों में एक और तरीक़ा अपनाया जाता है.
वो कहते हैं, "यदि गर्भवती महिला के गर्भ में एक से अधिक बच्चे हैं और एक सही से विकसित हो रहा है और बाकी नहीं तो उन्हें इंजेक्ट कर ख़त्म किया जा सकता है. ताकि जो बच्चा सही से विकसित हो रहा है उसे मां द्वारा मिलने वाला पोषण पूरा मिले. अगर ऐसा नहीं किया जाता तो मां का पोषण उन सभी बच्चों में विभाजित होता है और एक भी बच्चा सही से विकसित नहीं हो पाता."
जुड़वा बच्चे पैदा होने का कारण
बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर पी धर्मेंद्र का मानना है कि आईवीएफ़ (इन विट्रो फ़र्टिलाइजेशन) के कारण जुड़वा बच्चों के मामले अधिक सामने आए हैं.
वे कहते हैं, "आईवीएफ़ का इस्तेमाल करने पर महिला के शरीर में एक से अधिक अंडे पहुंच जाते हैं, जिसके कारण बच्चों के जुड़वा होने के मामले बढ़े हैं यानि जितने अंडे उतने बच्चे होने की संभावना बन जाती है.''
आईवीएफ़, ऐसी तकनीक है जिसके ज़रिए अण्डाणु और शुक्राण को प्रयोगशाला में एक परखनली के भीतर मिलाया जाता है. इसके बाद इससे बने भ्रूण को मां के गर्भ में आरोपित कर दिया जाता है.
हालांकि डॉक्टर धर्मेंद्र का कहना है कि ये मामले आईवीएफ़ के कारण अधिक तो होते हैं लेकिन ये उन महिलाओं में भी हो सकते हैं जो प्राकृतिक तरीक़े से गर्भधारण कर रही हैं.
ये भी पढ़ें...
स्मार्टफ़ोन गर्म हो रहा हो ऐसे ठंडा करें, पांच टिप्स
बुढ़ापे में हो सकता है एसप्रिन खाने से खतरा
आपके दिल की उम्र आपसे ज़्यादा तो नहीं