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लिंगायतों को हिन्दू धर्म से अलग कौन करना चाहता है?

लिंगायतों के लिए अलग धार्मिक पहचान की मांग उठने से बीजेपी को कर्नाटक में उठाना पड़ सकता है नुक़सान.

By इमरान कुरैशी - बेंगलुरु से, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए
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कर्नाटक के सीमावर्ती ज़िले बीदर में पिछले हफ़्ते बड़ी तादाद में लोगों की भीड़ जुटी थी. बीदर एक तरफ़ महाराष्ट्र से लगा हुआ है तो दूसरी तरफ तेलंगाना से.

कहा जा रहा है कि इस जनसभा में 75,000 लोग आए थे और वे अपने समुदाय के लिए अलग धार्मिक पहचान की मांग लेकर आए थे.

लिंगायत समाज को कर्नाटक की अगड़ी जातियों में गिना जाता है. कर्नाटक की आबादी का 18 फीसदी लिंगायत हैं. पास के राज्यों जैसे महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी लिंगायतों की अच्छी ख़ासी आबादी है.

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भी लिंगायतों की मांग का खुलकर समर्थन किया है.

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अलग धर्म की मान्यता

इतना ही नहीं सिद्धारमैया सरकार के पांच मंत्री अब इस मसले पर स्वामी जी (लिंगायतों का पुरोहित वर्ग) की सलाह लेने जा रहे हैं और इसके बाद वे मुख्यमंत्री को एक रिपोर्ट भी पेश करेंगे.

इसके पीछे विचार ये है कि लिंगायतों को अलग धर्म की मान्यता देने के लिए राज्य सरकार केंद्र सरकार को लिखेगी.

10 महीने बाद राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाला है. ये साफ़ है कि कांग्रेस मुख्यमंत्री पद के बीजेपी उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा के जनाधार को कमज़ोर करने के मक़सद ये सब कर रही है

जाति व्यवस्था के ख़िलाफ़

सवाल ये उठता है कि लिंगायत कौन होते हैं और ऐसी क्या बात है जो जिसकी वजह से इस समुदाय की राजनीतिक तौर पर इतनी अहमियत है.

  • बारहवीं सदी में समाज सुधारक बासवन्ना (उन्हें भगवान बासवेश्वरा भी कहा जाता है) ने हिंदू जाति व्यवस्था में दमन के ख़िलाफ़ आंदोलन छेड़ा. उन्होंने वेदों को ख़ारिज किया और वे मूर्तिपूजा के ख़िलाफ़ थे.
  • लिंगायत हिंदुओं के भगवान शिव की पूजा नहीं करते लेकिन अपने शरीर पर इष्टलिंग धारण करते हैं. ये अंडे के आकार की गेंदनुमा आकृति होती है जिसे वे धागे से अपने शरीर पर बांधते हैं. लिंगायत इस इष्टलिंग को आंतरिक चेतना का प्रतीक मानते हैं.
सिद्धारमैया, राहुल गांधी
MANJUNATH KIRAN/AFP/Getty Images
सिद्धारमैया, राहुल गांधी
  • आम मान्यता ये है कि वीरशैव और लिंगायत एक ही लोग होते हैं. लेकिन लिंगायत लोग ऐसा नहीं मानते. उनका मानना है कि वीरशैव लोगों का अस्तित्व समाज सुधारक बासवन्ना के उदय से भी पहले से था. वीरशैव भगवान शिव की पूजा करते हैं.
  • कुछ लोगों का कहना है कि लिंगायत भगवान शिव की पूजा नहीं करते लेकिन भीमन्ना खांद्रे जैसे लोग ज़ोर देकर कहते हैं, "ये कुछ ऐसा ही जैसे इंडिया भारत है और भारत इंडिया है. वीरशैव और लिंगायतों में कोई अंतर नहीं है." भीमन्ना ऑल इंडिया वीरशैव महासभा के अध्यक्ष पद पर 10 साल से भी ज़्यादा अर्से तक रहे हैं.
डॉक्टर एमएम कलबुर्गी
AFP/Getty Images
डॉक्टर एमएम कलबुर्गी
  • इस विरोधाभास की वजहें भी हैं. बासवन्ना ने जो अपने प्रवचनों के सहारे जो समाजिक मूल्य दिए, अब वे बदल गए हैं. हिंदू धर्म की जिस जाति व्यवस्था का विरोध किया गया था, वो लिंगायत समाज में पैदा हो गया. मरहूम डॉक्टर एमएम कलबुर्गी लिंगायत थे और उन्होंने समाज में जाति व्यवस्था का विरोध करने के लिए पुरजोर अभियान चलाया था.
  • बासवन्ना का अनुयायी बनने के लिए जिन लोगों ने कन्वर्जन किया, वे बनजिगा लिंगायत कहे गए. वे पहले बनजिगा कहे जाते थे और ज़्यादातर कारोबार करते थे. लिंगायत समाज अंतरर्जातीय विवाहों को मान्यता नहीं देता, हालांकि बासवन्ना ने ठीक इसके उलट बात कही थी. लिंगायत समाज में स्वामी जी (पुरोहित वर्ग) की स्थिति वैसी ही हो गई जैसी बासवन्ना के समय ब्राह्मणों की थी.
येदियुरप्पा
RAVEENDRAN/AFP/Getty Images
येदियुरप्पा
  • सामाजिक रूप से लिंगायत उत्तरी कर्नाटक की प्रभावशाली जातियों में गिनी जाती है. राज्य के दक्षिणी हिस्से में भी लिंगायत लोग रहते हैं. सत्तर के दशक तक लिंगायत दूसरी खेतीहर जाति वोक्कालिगा लोगों के साथ सत्ता में बंटवारा करते रहे थे. वोक्कालिगा दक्षिणी कर्नाटक की एक प्रभावशाली जाति है.
  • देवराज उर्स ने लिंगायत और वोक्कालिगा लोगों के राजनीतिक वर्चस्व को तोड़ दिया. अन्य पिछड़ी जातियों, अल्पसंख्यकों और दलितों को एक प्लेटफॉर्म पर लाकर देवराज उर्स 1972 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने.
  • अस्सी के दशक की शुरुआत में लिंगायतों ने रामकृष्ण हेगड़े पर भरोसा जताया. जब लोगों को लगा कि जनता दल राज्य को स्थायी सरकार देने में नाकाम हो रही है तो लिंगायतों ने अपनी राजनीतिक वफादारी वीरेंद्र पाटिल की तरफ़ कर ली. पाटिल 1989 में कांग्रेस को सत्ता में लेकर आए. लेकिन वीरेंद्र पाटिल को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने एयरपोर्ट पर ही मुख्यमंत्री पद से हटा दिया और इसके बाद लिंगायतों ने कांग्रेस से मुहं मोड़ लिया. रामकृष्ण हेगड़े लिंगायतों के एक बार फिर से चेहते नेता बन गए.
  • हेगड़े से लिंगायतों का लगाव तब भी बना रहा जब वे जनता दल से अलग होकर जनता दल यूनाइटेड में आ गए. हेगड़े की वजह से ही लोकसभा चुनावों में लिंगायतों के वोट भारतीय जनता पार्टी को मिले और केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी.
  • रामकृष्ण हेगड़े के निधन के बाद लिंगायतों ने बीएस येदियुरप्पा को अपना नेता चुना और 2008 में वे सत्ता में आए. जब येदियुरप्पा को कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद से हटाया गया तो लिंगायतों ने 2013 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हार से अपना बदला लिया.
  • आगामी विधानसभा चुनावों में येदियुरप्पा को एक बार फिर से मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करने की यही वजह है कि लिंगायत समाज में उनका मजबूत जनाधार है. लेकिन लिंगायतों के लिए अलग धार्मिक पहचान की मांग उठने से राज्य में येदियुरप्पा के जनाधार को तोड़ने के लिए कांग्रेस को एक मौक़ा मिल गया है.

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English summary
Who wants to separate Lingayats from Hinduism
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