कौन थे गलबाभाई नानजीभाई पटेल जिनके सम्मान में मोदी ने सिर झुकाया
पीएम मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत में ही कहा कि वो यहां गलबाभाई के प्रयासों को नमन करने आए हैं।
डीसा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज गुजरात के डीसा में अपने भाषण में गलबाभाई नानजीभाई पटेल का जिक्र किया। ये नाम गुजरात के लोगों के लिए बहुत नया नहीं है लेकिन देश के दूसरे हिस्सों में शायद ही बहुत ज्यादा लोग इस नाम से वाकिफ हों।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बनासकाठा में दुग्ध सहकारी डेयरी संयंत्र के साथ-साथ कई और लोक कल्याणकारी परियोजनाओं को शुरू किया।
बनासकांठा के दीसा में बोलते हुए पीएम मोदी ने कहा कि यहां प्रधानमंत्री के तौर पर नहीं बल्कि यहां की मिट्टी के बेटे के रूप में आया हूं।
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पीएम ने कहा कि वो गलबाभाई को नमन करते हैं, जिन्होंने इस क्षेत्र को दूध उत्पादन में एक नई दिशा दी। पीएम ने जिन गलबाभाई का नाम लिया, उन्होंने 60 के दशक में बनासकांठा में दूध उत्पादन के क्षेत्र में क्रान्तिकारी कदम उठाए थे।
उत्तर गुजरात में गलबा काका के नाम से मशहूर गलबाभाई 1918 में पैदा हुए थे। 60 के दशक में उन्होंने बनासकांठा इलाके में बनास डेयरी की शुरुआत की। बनास डेयरी के उत्पादों को ही आजकल हम अमूल के नाम से भी जानते हैं।
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छोटी सी शुरुआत ने दिलाई विश्व में पहचान
आज अमूल दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में एक बेहद बड़ा नाम है। लेकिन 1969 में गलबाभाई ने बनास डेयरी के नाम से छोटी सी शुरुआत की थी।
गलबाभाई की इस शुरुआत ने क्षेत्र में पशु-पालन और दूध उत्पादन में नए रास्ते खोल दिए। क्षेत्र के लोगों ने पशुपालन को अपनाया और पूरे उत्तर गुजरात में इस पहल ने खुशहाली के रास्ते खोल दिए।
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1969 में छोटे स्तर पर शुरू की गई बनास डेयरी आज दूध प्रोडक्शन में एशिया का नंबर एक पर है। बनास डेयरी के उत्पाद बनास, सागर और अमूल के नाम से बाजार में हैं।
खास बात ये है कि 1969 में बनास डेयरी की नींव डालने के महज चार साल बाद 1973 में गलबाभाई दुनिया छोड़ गए, लेकिन उनकी दूरदर्शिता ने चार साल में ही एक ऐसी बुनियाद रख दी थी, कि दुनिया आज उन्हें श्वेत क्रान्ति का जनक कहती है।
रेगिस्तान का इलाका होने के कारण बनासकाठा में कभी बेहद गरीबी थी, लेकिन बनास डेयरी के क्षेत्र में आने के बाद क्षेत्र में जो खुशहाली आई, उसके लिए पूरा क्षेत्र गलबाभाई को याद करता है।
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