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जानिए कौन हैं दलाई लामा और 62 में चीन के साथ हुई जंग के साथ उनका क्‍या है कनेक्‍शन

एक अप्रैल को असम से शुरू होगा तिब्‍बती धर्म गुरु दलाई लामा का भारत के नार्थ ईस्‍ट राज्‍यों का दौरा। पांच से सात अप्रैल तक होंगे अरुणाचल प्रदेश के तवांग का दौरा। चीन की ओर से भारत को दी गई है चेतावनी।

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नई दिल्‍ली। अगले कुछ दिनों में जहां देश में मौसम का पारा चढ़ेगा तो वहीं दो देशों के बीच भी तापमान बढ़ने वाला है। एक अप्रैल से सात अप्रैल तक जब तिब्‍बती धर्मगुरु दलाई लामा भारत के नॉर्थ ईस्‍ट राज्‍यों का दौरा करेंगे तो चीन और भारत के बीच रिश्‍तों का पारा बढ़ेगा। चीन जिसकी आंखों में दलाई लामा हमेशा से खटकते हैं और जब दलाई लामा भारत के उस हिस्‍से में जाएंगे जिसे चीन अपना हिस्‍सा कहता है, तो ब्‍लड प्रेशर बढ़ना लाजिमी है। आप यह जानकर भी हैरान हो जाएंगे कि शांति का नोबेल पुरस्‍कार जीतने वाले दलाई लामा 62 में चीन और भारत के बीच हुई जंग की वजह में से ही एक वजह थे। आइए आज हम आपको बताते हैं कि दलाई लामा कौन हैं और क्‍यों वह हमेशा चीन के गले में फांस की तरह से चुभते आए हैं।

कौन हैं दलाई लामा

कौन हैं दलाई लामा

दलाई लामा एक संन्‍यासी होते हैं और वर्तमान में 14वें दलाई लामा हैं जो तिब्‍बतियों के धर्मगुरु हैं। कहते हैं कि दलाई लामा एक अवलौकितेश्‍वर या तिब्‍बत में जिसे चेनेरेजिंग कहते हैं, वह स्‍वरूप हैं। उन्‍हें बोधिसत्‍व और तिब्‍बत का संरक्षक माना जाता है। बौद्ध धर्म में बोद्धिसत्‍व वे होते हैं जो मानवता की सेवा के लिए फिर से जन्‍म लेने का निश्‍चय लेते हैं।

वर्तमान दलाई लामा

वर्तमान दलाई लामा

असम और अरुणाचल प्रदेश के दौरे पर जो दलाई लामा जा रहे हैं वे 14वें लामा हैं। दलाई लामा का जन्‍म नार्थ तिब्‍बत के आमदो स्थित एक गांव जिसे तकछेर कहते हैं, वहां पर छह जुलाई 1935 को हुआ था। दलाई लामा का असली नाम ल्‍हामो दोंडुब है। इस बच्‍चे की उम्र जब सिर्फ दो वर्ष थी तो इसे 13वें दलाई लामा थुबतेन ग्‍यात्‍सो का अवतार माना गया और 14वां दलाई लामा घोषित किया गया।

संस्‍कृत की भी शिक्षा

संस्‍कृत की भी शिक्षा

छह वर्ष की उम्र से दलाई लामा को मठ की शिक्षा दी जाने लगी। उनकी शुरुआती शिक्षा में पांच बड़े और पांच छोटे विषय थे। जो बड़े विषय थे उनमें तर्क विज्ञान, तिब्‍बत की कला और संस्‍कृति, संस्‍कृत, मेडिसिन और बौद्ध धर्म के दर्शन की शिक्षा शामिल थी। दर्शन की शिक्षा को भी पांच हिस्‍सों में बांटा गया था। इसके अलावा उन्‍हें काव्‍य, संगीत, ड्रामा, ज्‍योतिष और ऐसे विषयों की शिक्षा भी दी गई थी। वर्ष 1959 में जब दलाई लामा 23 वर्ष के थे तो उन्‍होंने ल्‍हासा में अपने
फाइनल एग्‍जाम दिए और इस एग्‍जाम को उन्‍होंने ऑनर्स के साथ पास किया।

तिब्‍बत के राष्‍ट्राध्‍यक्ष

तिब्‍बत के राष्‍ट्राध्‍यक्ष

14वें दलाई लामा के रूप में वह 29 मई 2011 तक तिब्‍बत के राष्‍ट्राध्‍यक्ष रहे थे। इस दिन उन्‍होंने अपनी सारी शक्तियां तिब्‍बत की सरकार को दे दी थीं और आज वह सिर्फ तिब्‍बती धर्मगुरु हैं। वर्ष 1949 में चीन ने तिब्‍बत पर हमला किया और इस हमले के एक वर्ष बाद यानी वर्ष 1950 में दलाई लामा से तिब्‍बत की राजनीतिक विरासत को संभालने के लिए अनुरोध किया गया।

शुरू हुआ तिब्‍बत के लिए संघर्ष

शुरू हुआ तिब्‍बत के लिए संघर्ष

चीन तिब्‍बत को अपना हिस्‍सा मानता है। वर्ष 1954 में दलाई लामा चीन के माओ जेडॉन्‍ग और दूसरे चीनी नेताओं के साथ शांति वार्ता के लिए बीजिंग गए। इस ग्रुप में चीन के प्रभावी नेता डेंग जियोपिंग और चाउ एन लाइ भी शामिल थे। वर्ष 1959 में चीन की सेना ने ल्‍हासा में तिब्‍बत के लिए जारी संघर्ष को कुचल दिया। तब से ही दलाई लामा हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में निर्वासित जिंदगी बिता रहे हैं। धर्मशाला आज तिब्‍बती की राजनीति का सक्रिय केंद्र बन गया है।

संयुक्‍त राष्‍ट्रसंघ में आया प्रस्‍ताव

संयुक्‍त राष्‍ट्रसंघ में आया प्रस्‍ताव

जब चीन ने तिब्‍बत पर हमला कर दिया तो उसके बाद दलाई लामा ने संयुक्‍त राष्‍ट्रसंघ में गुहार लगाई। उनकी अपील पर संयुक्‍त राष्‍ट्रसंघ की ओर से तिब्‍बत पर वर्ष 1959, 1969 और 1965 में तीन प्रस्‍ताव पास किए गए। वर्ष 1963 में दलाई लामा ने तिब्‍बत का नया संविधान पेश किया। इस संविधान के बाद तिब्‍बत‍ के सुधार और उसकी लोकतांत्रिक व्यवस्‍था को मजबूत बनाने के लिए यहां पर कई बदलाव किए गए जिसमें तिब्‍बत के लोगों के लिए अभिव्‍यक्ति की आजादी का नियम भी आया।

अमेरिका में दिए समस्‍या के सुझाव

अमेरिका में दिए समस्‍या के सुझाव

दलाई लामा ने 21 सितंबर 1987 को अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित किया और यहां पर उन्‍होंने तिब्‍बत में शांति के लिए पांच बिंदुओं वाला एक शांति प्रस्‍ताव रखा।

  • पूरे तिब्बत को एक शांति क्षेत्र में बदला जाए।
  • चीन की जनसंख्‍या स्‍थानातंरण की पॉलिसी को अब छोड़ दिया जाए क्‍योंकि यह तिब्‍बतियों के अस्तित्‍व के लिए खतरा है।
  • तिब्‍बत के नागरिकों के मौलिक अधिकारों और लोकतांत्रिक आजादी के लिए सम्‍मान की भावना लाई जाए।
  • चीन अपने परमाणु हथियारों के निर्माण के दौरान तिब्‍बत को कूड़ेदान की तरह प्रयोग करना बंद करे।
  • तिब्‍बत के भविष्‍य और चीन के नागारिकों के साथ उनके बेहतर संबंधों के लिए आपसी बातचीत शुरू हो।
यूरोपियन यूनियन की संसद में आया शांति प्रस्‍ताव

यूरोपियन यूनियन की संसद में आया शांति प्रस्‍ताव

15 जून 1988 को दलाई लामा ने यूरोपियन यूनियन की संसद को भी संबोधित किया। यहां पर भी उन्‍होंने शांति योजना के लिए एक प्रस्‍ताव रखा जिसे स्ट्रासबर्ग प्रस्ताव के तौर पर जानते हैं। उन्‍होंने कहा कि तिब्‍बत के तीनों प्रांतों में स्‍वशासित लोकतंत्र सत्ता हो जिसके लिए चीन और तिब्‍बत को आपस में बात करनी होगी। जो नई सत्‍ता होगी वह चीन और चीन की सरकार के तिब्‍बत पर बनाई गई विदेश नीति और उसकी सुरक्षा के लिए जिम्‍मेदार होगी।

शांति का नोबेल पुरस्‍कार

शांति का नोबेल पुरस्‍कार

दलाई लामा को वर्ष 1989 में शांति के नोबेल पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया था। अब तक दलाई लामा 62 से भी ज्‍यादा देशों की यात्रा कर चुके हैं और कई देशों के राष्‍ट्राध्‍यक्षों से भी मुलाकात कर चुके हैं। उन्‍हें वर्ष 1959 से लेक‍र अब तक 84 से भी ज्‍यादा सम्‍मान से नवाजा जा चुका है। उन्‍होंने 72 से भी ज्‍यादा किताबें लिखी हैं।

चीन के साथ 62 की लड़ाई और दलाई लामा

चीन के साथ 62 की लड़ाई और दलाई लामा

मार्च 1959 में जब दलाई लामा भारत आए तो उनका जोरादार स्‍वागत हुआ और इस स्‍वागत से चीन के शीर्ष नेता माओ जेडॉन्‍ग को काफी नाराजगी थी। जब माओ ने बयान दिया कि ल्‍हासा में विद्रोह की वजह भारत है तो चीन और भारत के बीच तनाव एक नए स्‍तर पर पहुंच गया।

भारत ने दिया तिब्‍बत मुद्दे में हस्‍तक्षेप का प्रस्‍ताव

भारत ने दिया तिब्‍बत मुद्दे में हस्‍तक्षेप का प्रस्‍ताव

जब चीन ने वर्ष 1959 में इस बात का ऐलान किया था कि वह तिब्‍बत पर कब्‍जा करेगा तो भारत की ओर से एक चिट्ठी भेजी गई थी। भारत ने चीन को तिब्‍बत मुद्दे में हस्‍तक्षेप का प्रस्‍ताव दिया था। चीन उस समय मानता था कि तिब्‍बत में उसके शासन के लिए भारत सबसे बड़ा खतरा बन गया है। वर्ष 1962 में चीन और भारत के बीच युद्ध की यह एक अहम वजह थी।

अरुणाचल से दलाई लामा का रिश्‍ता

अरुणाचल से दलाई लामा का रिश्‍ता

मार्च 1959 में जब दलाई लामा जब चीनी सेना से बचकर भारत में दाखिल हुए तो वह सबसे पहले अरुणाचल प्रदेश के तवांग पहुंचे। यहां से वह 18 अप्रैल को असम के तेजपुर पहुंचे। वर्ष 2003 में दलाई लामा ने बयान दिया और कहा कि तवांग असल में तिब्‍बत का हिस्‍सा है। वर्ष 2008 में उन्‍होंने अपनी स्थिति बदल ली। मैकमोहन रेखा पहचानते हुए उन्‍होंने तवांग को भारत का हिस्‍सा बताया।

दलाई लामा को अलगाववादी मानता है चीन

दलाई लामा को अलगाववादी मानता है चीन

चीन दलाई लामा को एक अलगाववादी नेता मानते हुए उन्‍हें देश के लिए खतरा बताता है। वह हमेशा दूसरे देशों पर 'वन चाइना पॉलिसी' के तहत दलाई लामा का स्‍वागत न करने का दबाव डालता है। आज भी हजारों की संख्‍या में तिब्‍बती सीमा पार कर भारत में दाखिल होते हैं और उनका मकसद सिर्फ दलाई लामा को देखना होता है। दलाई लामा ने आखिरी बार वर्ष 2009 में तवांग का दौरा किया था। उस समय नेपाल और भूटान से करीब 30,000 अनुयायी उन्‍हें सुनने के लिए पहुंचे थे।

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English summary
Dalai Lama will be visiting Assam and Arunachal Pradesh in the first week of April. Temperature between India and China is set to rise.
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