कन्हैया कुमार और आजादी के नारों का सच!
राष्ट्रवाद के लिए अब तक जो शब्द थे उनमें 'राजनीति' का शायद ही इस्तेमाल हुआ हो। मतलब ये राष्ट्रवाद जरूरी नहीं मजहबी हो, जरूरी नहीं कि विचारधारा से ग्रसित हो, जरूरी नहीं किसी दल विशेष के साथ उसे चस्पा कर दिया गया हो। हां ये जरूर हो सकता है कि सुविधा के मुताबिक लोग इसका स्टीकर लोग खुद के साथ नत्थी करने लगे हों। ऐसा ही कुछ कन्हैया कुमार के साथ है। कन्हैया ने भी राष्ट्रवादी नारों में "आजादी के नारे" के चस्पा कर दिये। लेकिन कन्हैया की आजादी के पीछे का सच अब दुनिया को समझ आने लगा है।
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हम
लेके
रहेंगे
आजादी,
तुम
कुछ
भी
कर
लो...आजादी
पूंजीवाद
से
आजादी,
सामंतवाद
से
आजादी...
जातिवाद
से
आजादी,
भेदभाव
से
आजादी
छुआछूत
से
आजादी,
भ्रष्टाचार
से
आजादी...
हम
ले
के
रहेंगे
आजादी,
हौले
बोलो...आजादी...
धीरे
बोले...आजादी...
भ्रष्टाचार के खिलाफ जोरदार नारे लगाने वाले कन्हैया कुमार की मंशा पर अब सवाल खड़े होने लगे हैं। और इन सवालों की वजह के कारण भी महज एक नहीं बल्कि ढेर सारे हैं। ये सवाल भी हमारे नहीं बल्कि आम जनता के हैं। उन परिवारों के हैं, जिन्होंने वतन की रखवाली का वादा करने वाले अपनों को खोया है। जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने भारतीय सेना के चरित्र पर ही सवालिया निशान लगा दिया, जिसके बाद एक बड़ा विवाद पैदा हो गया। एक ओर विरोध करने के लिए सियासत सक्रिय हो गई तो दूसरी ओर आम आदमी भी कन्हैया से अदावत मानने लगा।
कन्हैया का लालू के पैर छूना
बिहार पहुंचने के बाद जब कन्हैया ने लालू प्रसाद यादव के पैर छूए तो कई सवालों ने उसी वक्त जन्म दिया। जेएनयू कैम्पस में कन्हैया भ्रष्टाचार से आजादी की बात करते हैं, और बिहार पहुंचते ही चारा घोटाले में दोषी पाये गये लालू यादव के पैर छूते हैं।
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चारा घोटाला जैसा बड़ा घोटाला करने वाले लालू के साथ मिलकर कन्हैया किस आजादी की बात करेंगे, इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं। हालांकि इसके बाद लोगों को साफ लगने लगा है कि मुंबई से पुणे फ्लाईट में यात्रा के दौरान कन्हैया का गला दबाने का प्रयास एक राजनीतिक स्टंट था।
ज्योति
दुबे
इंडियन
आर्मी
से
रिटायर्ड
सूबेदार
मेजर
की
पत्नी
कहती
हैं-
सच कहें तो कन्हैया ने जो बयान दिया था वो अंदर तक झकझोर देने वाला था। उसे क्या पता एक सैनिक का परिवार क्या क्या कष्ट सहता है। हमेशा इस बात का डर लगा रहता है कि वो बेटा, पति, भाई जो भारत माता की रक्षा के लिए सीमाओं पर डटा हुआ है वो लौटेगा भी या नहीं...कन्हैया के इस बयान के बाद कहीं न कहीं सेना के जवानों में ये भावना विकसित होने का खतरा रहता है कि इतना कुछ देश की खातिर करने के बावजूद कन्हैया सरीखे लोग उन पर आरोप मढ़ रहे हैं। निंदनीय है।
अपवाद के आधार पर पूरी सेना पर इस तरीके की तोहमतें लगाना वाकई निकृष्ट मानसिकता की ओर इशारा करता है। राष्ट्र के प्रति खुद को जिम्मेवार बताने वाले कन्हैया को जब असल में राष्ट्र के प्रति जिम्मेवारी का एहसास हो जाएगा तो शायद वह चुल्लू भर पानी मांगे..उसमें डूब मरने के लिए।
श्वेता
तिवारी
आम
नागरिक
सियासत
की
खातिर
बेमेल
पॉलिटिक्स
जी हां वक्त-वक्त पर किरदार पलटने वाले कन्हैया कुमार जब जेल वापसी के बाद पहली बार अपने गृहराज्य बिहार लौटे तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनका जोरदार स्वागत किया। लेकिन स्वागत सियासी था। क्योंकि उसमें कहीं न कहीं 2019 में नीतीश के ख्वाब की सुगबुगाहट थी। लेकिन भ्रष्टाचार से जीत का मुंहबोला शोर मचाने वाले कन्हैया कुमार की हकीकत तब सामने आ गई जब उन्होंने सियासी प्रसाद का सियासत की खातिर चरण वंदन किया।
हालांकि इससे पहले कन्हैया राजनीति में अवसर तलाशते हुए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से भेंट कर चुके हैं। पर, सवाल ये भी है कि आखिर भ्रष्टाचार की मुखालिफत करने वाले कन्हैया कुमार चारा घोटाले के आरोपी रहे आरजे़डी सुप्रीमों लालू यादव के साथ किन संभावनाओं की खोज में डटे हुए। आखिर लालू यादव के चरण वंदन के पीछे क्या कारण है।