इतिहास के पन्नों से- नेताजी टाटा स्टील मजदूरों के भी नेता थे
नई दिल्ली(विवेक शुक्ला) जमशेदपुर में नेताजी सुभाष चंद्र बोस को टाटा स्टील लिमिटेड से जुड़े लोगों से लेकर दूसरे तमाम लोग स्वाधीनता सेनानी सी हटकर भी याद करते हैं। दरअसल देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जमेशदपुर से पुराना रिश्ता था। वे टाटा स्टील यूनियन के साल 1928 से 1937 तक प्रेसिडेंट रहे।
वे बहुत एक्टिव थे यूनियन की गतिविधियों में । वे मजदूरों के अधिकारों को लेकर बहुत संवेदनशील रहते थे। उनके मसले लगातार मैनेजमेंट से उठाते थे।टाटा स्टील की यूनियन का गठन 1920 में हुआ था।
भारतीय अफसर बहुत कम
उन्होंने कंपनी के चेयरमेंन एन.बी. सकतावाला को 12 नवंबर, 1928 को लिखे एक पत्र में कहा कि कंपनी के साथ एक बड़ी दिक्कत ये भी है कि इसमें भारतीय अफसर बहुत कम हैं। ज्यादातर अहम पदों पर पर ब्रिटिश नागरिक है।उन्होंने आगे लिखा कि वे चाहते हैं कि टाटा स्टील का भारतीयकरण हो। इससे ये और बुलंदियों पर जाएगी।
1928 में हड़ताल
नेता जी के पत्र के बाद टाटा स्टील ने अपना पहला भारतीय जनरल मैनेजर बनाया। उनके आहवान पर टाटा स्टील में 1928 में हड़ताल भी हुई। उसके बाद से ही टाटा स्टील में मजदूरों को बोनस मिलना शुरू हुआ। टाटा स्टील इस लिहाज से देश की पहली कंपनी बनी। जाहिर है,इसका श्रेय नेताजी को ही जाता है।
स्वाधीनता आंदोलन
पर 1928 में हुई हड़ताल के बाद नेताजी ने टाटा स्टील यूनियन से अपनी दूरियां बना लीं। वे स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े। ट्रेड यूनियन के इतिहास को जानने वाले जानते हैं कि नेताजी के प्रयासों के बाद आगे चलकर देश की दूसरी कंपनियों ने भी अपने मजदूरों को बोनस देना शुरू किया। कहने वाले कहते हैं कि नेताजी जमशेदपुर में स्थित टाटा स्टील कर्मचारी यूनियन के न केवल अध्यक्ष चुने गए थे, बल्कि आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में उनकी अच्छी साख थी।