तीन वर्ष ग्रेजुएशन की डिग्री मतलब यूएस यूनिवर्सिटी में नो एडमिशन
अमेरिका के कॉलेज में नहीं मिलता दाखिला
भारत की अलग-अलग यूनिवर्सिटीज में पढ़ने वाले अधिकतर छात्रों की ख्वाहिश होती है कि वह अमेरिका के किसी कॉलेज से अपनी पढ़ाई करें। यहीं पर एक ऐसी मुसीबत है जिसे आप दिल्ली यूनिवर्सिटी में जारी विवाद की वजह कह सकते हैं।
अमेरिका की ज्यादातर यूनिवर्सिटीज में चार वर्षीय अंडर ग्रेजुएट प्रोग्राम लागू है। इसकी वजह से जब कभी भी तीन वर्ष के ग्रेजुएट प्रोग्राम की डिग्री लेकर भारतीय छात्र वहां पर आगे की पढ़ाई के लिए जाते हैं, तो उनकी डिग्रियों की कोई अहमियत नहीं होती।
ऐसे में अमेरिका की यूनिवर्सिटीज भारतीय छात्रों को अपने यहां एडमिशन देने तक से कतराती हैं।
अमेरिका की कई यूनिवर्सिटीज भारत के तीन वर्षीय अंडर-ग्रेजुएट प्रोग्राम के बाद छात्रों को मिली डिग्रियों की वजह से छात्रों को अयोग्य करार देती हैं।
भारत की शिक्षा व्यवस्था ब्रिटिश प्रणाली पर आधारित है। न सिर्फ भारत बल्कि ब्रिटेन के तीन वर्षीय ग्रेजुएट प्रोग्राम को अमेरिका में कोई अहमियत नहीं दी जाती है।
अमेरिका का अंडरग्रेजुएट एजुकेशन सिस्टम
अमेरिका का अंडरग्रेजुएट सिस्टम दो हिस्सों में बंटा हुआ हैं।
1-दो वर्षीय प्रोग्राम-इस ग्रेजुएट प्रोग्राम के तहत अमेरिका के 1,000 कॉलेजों में दो वर्ष के बाद छात्रों को ग्रेजुएशन की डिग्री दी जाती है। इस कार्यक्रम को सरल शब्दों में इंटरमीडिएट भी कहा जा सकता है। इस प्रोग्राम के तहत छात्रों को जूनियर या फिर कम्यूनिटी कॉलेजों की ओर से डिग्री दी जाती है।
2-चार वर्षीय प्रोग्राम-2,000 अमेरिकी कॉलेजों में छात्रों को चार वर्ष के बाद ग्रेजुएशन या फिर बैचलर की डिग्री दी जाती है। इसे ही कॉलेज डिग्री भी कहा जाता है। चार वर्ष के दौरान छात्रों को 120 से 128 सेमेस्टर अटेंड करने पड़ते हैं।