क्लाइमेट कॉन्फ्रेंस में पीएम मोदी ने रखा भारत का प्लान
पेरिस। सीओपी 21 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया में बढ़ रही ग्लोबल वॉर्मिंग की चिंता पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से आपदाएं बढ़ रही हैं।
मेरे मंत्रीमंडल के सहयोगी श्री प्रकाश जावड़ेकरजी, श्री पीयूष गोयल जी, सम्मानित अतिथिगण। मुझे भारतीय पैविलियन का अद्घाटन करते हुए प्रसन्नता हो रही है। पेरिस में ऐतिहासिक सम्मेलन का यह पहला दिन है।
हम यहां पेरिस और फ्रांस के साथ उनके संकल्प और साहस की प्रशंसा में एकजुट खड़े हैं। पूरा विश्व, 196 देश, इस विश्व के भविष्य को संवारने तथा हमारे ग्रह की सेहत के लिए एक साथ आए हैं। यह सम्मेलन भारत के भविष्य के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है।
यह पैविलियन हमारी विरासत, हमारी प्रगति, हमारी परंपराएं, हमारी टेक्नोलाजी, हमारी आकांक्षाएं और हमारी उपलब्धियों की खिड़की है। भारत की नई आर्थिक गति अंतर्राष्ट्रीय आकर्षण का विषय और वैश्विक अवसर का स्रोत है। हमारी प्रगति केवल मानवता के छठे हिस्से की जिंदगी नहीं बदलेगी। इसका अर्थ और अधिक सफल तथा समृद्ध विश्व भी है।
किसानों के लिये खतरा है ग्लोबल वॉर्मिंग
इसी तरह विश्व की पसंद का हमारे विकास पर प्रभाव पड़ेगा। जलवायु परिवर्तन प्रमुख वैश्विक चुनौती है। लेकिन यह जलवायु परिवर्तन हमारा बनाया हुआ नहीं है। यह ग्लोबल वार्मिंग का परिणाम है, जो फोसिल इंधन से ऊर्जा प्राप्त कर औद्योगिक युग की समृद्धि और प्रगति से आई है। लेकिन हम आज भारत में इसके परिणामों का सामना कर रहे हैं। हम इसे अपने किसानों के लिए खतरे के रूप , मौसम के तौर-तरीकों में बदलाव के रूप में और प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता के रूप में देखते हैं।
हम उभरते समुद्र को लेकर चिंतित हैं। इससे हमारी 7500 किलोमीटर की तटीय रेखा और 1300 द्वीपों को खतरा पैदा होगा। हीमनदों के खिसकने से हमें चिंता है। इन हीम नदों से हमारी नदियो को भोजन मिलता है और इनसे हमारी सभ्यता फलती है।
विश्व जरूरतानुसार कार्य करे
हम चाहते हैं कि विश्व आवश्यकता के साथ काम करे। हम एक व्यापक, समान, टिकाऊ समझौता चाहते हैं, जो हमें मानवता और प्रकृति के बीच तथा हमें जो विरासत में मिला है और हम जो पीछे छोड़ जाएंगे उनके बीच संतुलन बनाने की ओर ले जाये।
इसके लिए एक साझेदारी करनी होगी जिसमें अपनी पसंद वाले और टेक्नोलॉजी क्षमता संपन्न अपना कार्बन उत्सर्जन कम करने में समायोजन करेंगे। उनकी प्रतिबद्धता की सीमा और उनके कार्यों की शक्ति उनके कार्बन स्पेस के अनुरूप होनी चाहिए। और उन्हें विकासशील देशों को आगे बढ़ने देने के लिए हमारे कार्बन स्पेस को छोड़ना होगा।
उन्हें संसाधनों तथा टेक्नोलॉजी को उनके साथ साझा करना चाहिए जो आवश्यकता और आशा के बीच रह रहे हैं ताकि हम स्वच्छ ऊर्जा के लिए सार्वभौमिक आकांक्षाओं को पूरा कर सकें।
कार्बन की हलकी छाप छोड़ने के प्रयास
इसका अर्थ यह भी होगा की विकासशील विश्व प्रगति की अपनी राह पर कार्बन की हल्की छाप छोड़ने का प्रयास करेंगे। हम विश्व की दृढ़ता का मेल उन प्रयासों के साथ चाहते हैं जो हमारी सफलता के लायक परिस्थितियां बनाए। क्योंकि हमारी चुनौतियां विशाल हैं, हमारे प्रयास तत्काल होने चाहिए।
अगले कुछ दिनों में इन विषयों पर चर्चा होगी। मैं भारतीय पैविलियन में कुछ और कहने के लिए आया हूं। और मैं केवल विश्व के लिए नहीं बोलता बल्कि अपने लोगों के लिए भी बोलता हूं। भारत की प्रगति हमारी नीयती और हमारे लोगों का अधिकार है । लेकिन हम एक राष्ट्र हैं जिसे जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने में आगे आना होगा।
हमें अपने लोगों को स्वच्छ हवा, स्वच्छ नदियां, लचीला खेत, स्वस्थ निवास तथा जीवन संपन्न वन देना हमारा दायित्व है। यह हमारे संकल्प से आता है कि हमारा उद्देश्य केवल ऊंची आय ही नहीं बल्कि गुणवत्ता संपन्न जीवन होना चाहिए। यह विश्व के प्रति हमारे संकल्प से आता है।