क्या है तीन तलाक, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट आज तीन तलाक के बारे में एक ऐतिहासिक फैसला दिया। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दिया जिसमें तीन तलाक पर सवाल उठाते हुए कहा था कि वो तीन तलाक की प्रथा को वैध नहीं मानते हैं और उसे जारी रखने के पक्ष में नहीं है। इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जे. एस. खेहर, जस्टिस कुरियन जोसफ, जस्टिस आर. एफ. नरीमन, जस्टिस यू. यू. ललित और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की संवैधानिक बेंच इस मामले में सुनवाई कर रही है।
ये है ट्रिपल तालक
ट्रिपल तालक, भारत में प्रचलित तलाक का एक रूप है, जिससे एक मुस्लिम व्यक्ति कानूनी तौर पर तीन बार तलाक बोलकर अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है। ये मौखिक या लिखित हो सकता है, या हाल के दिनों में टेलीफोन, एसएमएस, ईमेल या सोशल मीडिया जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से भी तलाक दिया जा रहा है।
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तलाक देते वक्त पत्नी की मौजूदगी जरूरी नहीं
आदमी को तलाक के लिए किसी भी कारण का हवाला देने की आवश्यकता नहीं है और तलाक देते वक्त पत्नी की मौजूदगी जरूरी नहीं है। इद्दत के वक्त के बाद, जिसके दौरान यह पता लगाया जाता है कि क्या पत्नी एक बच्चे के साथ गर्भवती है या नहीं, तो तलाक स्थिर हो सकता है।
होता है एक वेटिंग पीरियड
तलाक देने से पहले वेटिंग पीरियड होता है, जिसके दौरान सामंजस्य बिठाने की कोशिश होती है। हालांकि, एक ही बैठक में सभी तीन बार तलाक कहना आम हो गया है। एक तलाकशुदा औरत अपने तलाकशुदा पति से विवाह नहीं कर सकती जब तक कि वह पहले किसी और से शादी नहीं कर लेती। इसे निकाह हलाला कहते हैं।
महिलाएं भी दे सकती हैं तीन तलाक
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि महिलाएं भी तीन तलाक कह सकती हैं।