पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने के लिये मतदान करने निकले कश्मीर के लोग
श्रीनगर।
लश्कर-ए-तैयबा
के
संस्थापक
हाफिज़
सईद
और
जेकेएलएफ
के
नेता
यासीन
मलिक
के
बीच
फोन
पर
हुई
बातचीत
हाल
ही
में
जब
खुफिया
विभाग
ने
ट्रेस
की
तो
पता
चला
कि
पाकिस्तान
अलगाववादियों
को
भारी
भरकम
पैसा
देकर
चुनाव
में
खलल
डालना
चाहता
है।
पाकिस्तान
चाहता
है
कि
अलगाववादी
संगठन
से
जुड़े
लोग
कश्मीर
के
युवाओं
का
माइंडसेट
ऐसा
बना
दें,
कि
वो
वोट
न
डालें।
लेकिन
आज
जिस
तरह
से
घाटी
के
पहले
चरण
में
मतदान
ने
गति
पकड़ी
उससे
यह
साफ
है
कि
घाटी
की
जनता
पाक
के
मनसूबों
को
पूरा
होना
नहीं
देना
चाहती
है।
घाटी में आज सुबह से जो सकारात्मक लहर चल रही है, उसे साफ है कि यासीन मलिक जैसे नेताओं का करियर जल्द ही खत्म हो जायेगा, जिन्हें पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी अाईएसआई लाखों रुपए महीना बतौर वेतन देता है। यही नहीं हुर्रियत कांफ्रेंस भी अब डूबने की कगार पर पहुंच सकती है, क्योंकि भारत के स्वर्ग में रह रहे लोग अब यहां नर्क से छुट्टी चाहते हैं।
हुर्रियत ने की थी अपील
'90 के दशक से हम चुनावों का बायकॉट करते आ रहे हैं, लेकिन हमें क्या मिला, 'गांदरबल के एक मतदाता ने मीडिया की ओर से पूछे एक सवाल का जवाब कुछ इस अंदाज में दिया। यह सवाल था हुर्रियत कांफ्रेंस के सैयद अली शाह गिलानी की उस अपील से जुड़ी सवाल का जिसमें उन्होंने घाटी के लोगों से चुनावों को बहिष्कार करने को कहा था।
घाटी
में
नई
शुरुआत
जिस तरह से कड़कड़ाती ठंड के बाद भी लोग मतदान के लिए निकले हैं, वह वाकई कहीं न कहीं घाटी में एक नई सुबह या एक नई शुरुआत की ओर इशारा करता है। ठंड की वजह से कश्मीर में चुनाव सुबह 8 बजे शुरू हुआ। ठंड इतनी थी कि शायद लोग घरों से भी निकलने में हिचकते लेकिन इसके बाद भी लोग निकले और सुबह से ही पोलिंग बूथ पर लंबी कतारे देखी गईं।
गांदरबल, कंगन, बांदीपोर, सोनवारी यह घाटी के कुछ ऐसे इलाके हैं, जहां से अक्सर सेना और आतंकियों के बीच मुठभेड़ की खबरें आती रहती हैं। जिस समय मतदान हो रहा था, उस समय भी यहां पर एक कम तीव्रता का ब्लास्ट कर लोगों के मनोबल को कमजोर करने की कोशिश की गई। लेकिन इसके बाद भी यहां पर सुबह 10 बजे तक 24 फीसदी मतदान दर्ज हुआ है।
पिछला भूलकर आगे बढ़ें
हालांकि अगर हम वर्ष 2008 में हुए मतदान की बात करे तो उस समय यहां पर मतदान प्रतिशत 70 तक पहुंच गया था। श्रीनगर के राजबाग इलाके में गेस्ट हाउस चला रहे जावेद खान की मानें तो 2008 के बारे में बात न करें, इस समय जो हालात हैं, उनके बारे में बात करें तो बेहतर रहेगा। जावेद को जब हमने फोन किया तो वह बाढ़ के बाद चौपट हुए अपने धंधे से काफी परेशान नजर आए।
जावेद खान ने बताया श्रीनगर में तो अभी वोट डाले जाने में समय है लेकिन इस बात की पूरी उम्मीद है कि इस बार के चुनाव कुछ बेहतर नतीजे लेकर आएंगे। जावेद को हमने याद दिलाया कि वोटिंग तो 2008 में भी काफी अच्छी हुई थी, तो उन्होंने कहा फिलहाल तो हर कश्मीरी बस आने वाले कल का सपना देख रहा है।
काम से पहले वोटिंग
रोजाना कारगिल से लेकर श्रीनगर तक टैक्सी चलाने का काम करने वाले 24 वर्ष के मोहम्मद अली ने अपने काम की जगह वोट डालना बेहतर समझा। अली को उनके काम की वजह से एक दिन में करीब 1,000 रुपए से लेकर 3,500 रुपए तक की आय होती है। अली की मानें तो वोटिंग ज्यादा जरूरी है। वह इस बात को लेकर भी काफी खुश हैं कि इन चुनावों में उनकी चारों बहनों को भी वोट डालने का मौका मिलेगा।