बिहार में बैटरी से चलने वाला गांव जहां है एक अनोखा पीसीओ
पटना। बैटरी से चलने वाले खिलौने, कार, बाइक, आदि देखे होंगे लेकिन क्या आपने कभी बैटरी से चलने वाला गांव देखा है? चौंकिये मत ऐसा भी एक गांव है, वो भी आपके बिहार में। बिहार के कोसी इलाके के कछार पर बसे सलखुआ थानाक्षेत्र में पिपरा बगेबा गांव बैटरी से ही चलता है। वैसे अब तक आप समझ गये होंगे, कि हम आगे क्या कहने जा रहे हैं। हम करीब 5 हजार लोगों की आबादी वाले एक ऐसे गांव की तस्वीर पेश करने जा रहे हैं, जहां बिजली का नाम-ओ-निशान नहीं।
तब गांवों में नहीं झाड़ पायेंगे स्मार्टफोन का भौकाल!
इस गांव में मोबाइल फोन नहीं
1,017,968,757 मोबाइल फोन के साथ भारत मोबाइल फोन के इस्तेमाल में भारत विश्व में दूसरे स्थान पर है, लेकिन इसी भारत के पिपरा बगेवा गांव में एक भी मोबाइल फोन नहीं। सरकार मोबाइल फ्री में भी दे, तो भी कोई फायदा नहीं, क्योंकि उसे चार्ज करने के लिये बिजली नहीं। इस गांव के ज्यादातर लोग तो यह जानते भी नहीं कि मोबाइल फोन किस बला का नाम है।
मोबाइल फोन का पीसीओ
पूरे गांव में दो-चार लोगों के पास मोबाइल है, भी तो उन्होंने उसका पीसीओ खोल रखा है। यह पीसीओ भी एकदम अलग है। अगर आपको फोन पर बात करनी है, तो सुबह जाकर अपना नाम लिखवा दीजिये। पीसीओ पर एक लाउडस्पीकर लगा है। जिसकी बारी आती है, पीसीओ मालिक लाउड स्पीकर पर उसका नाम पुकारता है। तमाम लोग तो अपना नाम पुकाने जाने की आस में दिन भर लाइन लगाये बैठे रहते हैं। कई तो अपना काम करते वक्त भी अपने कान लाउडस्पीकर की तरफ लगाये रहते हैं, पता नहीं कब नाम पुकारा जाये।
जब किसी का फोन आता है
यहां
गांव
वालों
ने
अपने
रिश्तेदारों
को
इन्हीं
मोबाइल
पीसीओ
वालों
का
नंबर
दे
रखा
है।
जब
कभी
भी
कॉल
आती
है,
तो
पीसीओ
मालिक
उसी
लाउडस्पीकर
से
चिल्लाकर
पुकार
लगाता
है-
आपके
परिजन
जो
बाहर
रहते
हैं
उनका
फोन
आया
है
जल्द
से
जल्द
आकर
उनसे
बात
करने
की
कृपा
करें।
वो
फिर
आधे
घंटे
बाद
कॉल
करेंगे।
और सुनिये यहां इनकमिंग कॉल का भी पैसा देना पड़ता है। क्योंकि पीसीओ चलाने के लिये दुकानदार को दूर दराज़ से बैटरी चार्ज करके लाना पड़ता है। खास बात यह है कि यहां एक-एक मोबाइल के लिये 5 से 10 बैटरियां हैं। फोनधारक एक बार जाता है और सारी बैटरियां चार्ज करके ले आता है।
लक्ष्मी के घर पर लक्ष्मी बरसाता पीसीओ
इस गांव में 55 साल के लक्ष्मी रहते हैं। वो अपनी किराने की दुकान पर मोबाइल फोन का पीसीओ चलाते हैं। दुकान चले न चले, मोबाइल पीसीओ उन पर लक्ष्मी जरूर बरसाता है। जब भी बाहर से किसी का फोन आता है तो वो भी लाउडस्पीकर से आवाज लगाते हैं। एक बार फोन आने पर गांव के लोग लक्ष्मी को 10 रुपये देते हैं।
इमरजेंसी लाइट ही है इनकी जिंदगी
आप अपने घर पर बैटरी से चलने वाली इमरजेंसी लाइट खरीद कर लाते हैं, यह सोच कर कि जब लाइट जायेगी, तो उसे जला लेंगे, लेकिन इस गांव के लोगों की जिंदगी ही इमरजेंसी लाइट है। रात को इसी इमरजेंसी लाइट में बच्चे पढ़ते हैं, इसी की रौशनी में भोजन पकाया जाता है और इसी लाइट में डिनर होता है।
60 किलोमीटर दूर चार्जिंग प्वाइंट
इस गांव में हर घर में बैटरी से चलने वाले उपकरण मिलेंगे। जो रीचार्जेबल बैटरियां हैं, उनका चार्जिंग प्वाइंट 60 किलोमीटर दूर स्थित है। मोबाइल फोन हो या इमरजेंसी लाइट, या फिर लाउडस्पीकर की बैटरी, सभी को चार्ज करने के लिए गांव से 60 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। क्योंकि इस गांव में बिजली भी अब तक नहीं पहुंच पाई है।
पक्के मकान नहीं झोपड़ी में रहते हैं लोग
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके कार्यकर्ताओ तथा समर्थकों द्वारा बार-बार यह कहा जाता है कि जब से नीतीश कुमार ने सरकार की सत्ता संभाली है बिहार में बहार आ गया है। लेकिन कोसी तट पर बसे इस गांव को देख कर यह लगता है कि यहां पर अब तक नितीश की बहार पहुंच नहीं पाई है। गांव के करीब 6 से 7 हजार लोग आज भी झोंपड़ी नुमा घर में रहने पर मजबूर हैं।
हर साल बाढ़ का कहर
हर साल जब भारी बारिश होती है और नेपाल से पानी छोड़ा जाता है, तो कोसी का जल स्तर बढ़ जाता है। और बाढ़ से पूरा गांव प्रभावित होता है। सरकार के द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं का कोई भी मुआवजा आज तक इन लोगों को नहीं मिला है।
वनइंडिया की अपील
हम अपने पाठकों और इस गांव के लोगों की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से हमारी अपील है कि इस गांव में जल्द से जल्द बिजली पहुंचायें। नहीं तो डिजिटल इंडिया का ढिंढोरा पीटने, सौर ऊर्जा की क्रांति लाने और बिहार में बहार के नारे लगाने का कोई फायदा नहीं।