क्या वाकई सपा में 'आल इज वेल?'
लखनऊ। बात सियासत की हो और पार्टियों में आपस में ही उठा-पटक न हो, भला ये कैसे संभव है। आखिर कैसे बिना इस दांव के दूसरी पार्टियां अंतर्कलह का नगाड़ा पीटेंगी। कैसे अन्य राजनीतिक दल इस खुशी में नाच पाएंगे कि ये तो आपस में ही उलझे हैं। चाचा शिवपाल के साथ सूबे के मुखिया की तनातनी को अभी कोई ज्यादा वक्त नहीं गुजरा है।
किससे नाराज हैं अखिलेश यादव के लविंग अंकल अमर सिंह, क्यों दी इस्तीफे की धमकी?
दूसरी ओर अमर सिंह इस्तीफे से धमकी देकर सपा खेमे को असहज करने में जुट गए हैं। सवाल ये है कि समाजवादी पार्टी में बारी-बारी से जिस तरह विवाद खड़े हो रहे हैं, उसका क्या प्रभाव पड़ेगा। जबकि सीएम अखिलेश यादव आल इज वेल बताते रहे हैं। क्या वाकई सपा में आल इज वेल चल रहा है।
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मुलायमवादी अमर के समाजवादी पार्टी पर निशाने
जी हां मुलायमवादी...दरअसल सपा सुप्रीमो के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त करते हुए अमर ने कहा कि मैं मुलायमवादी हूं। उनकी इज्जत करता हूं इसी वजह से पार्टी में आया हूं। वहीं दूसरी ओर सपा पर आरोप मढ़ते हुए अमर ने कहा कि उन्हें राज्यसभा में मूक-बधिर बना दिया गया है। सदन में जीएसटी पर बहस में नरेश अग्रवाल और सुरेंद्र नागर जैसे बोलते रहे। मेरे, रेवतीरमण सिंह, बेनी प्रसाद वर्मा जैस नेताओं को पीछे चुपचाप बैठना पड़ा।
आजम बनाम अमर तो सपा बनाम आजम
समाजवादी पार्टी में मंत्री और विवादित बयानों के लिए चर्चित आजम खान और राज्यसभा सांसद अमर सिंह की आपसी जंग भी सर्वविदित रही है। दोनों ही एकदूसरे को फूंटी आंख भी नहीं सुहाते रहे हैं। लेकिन नेता जी का फैसला है तो मानना तो पड़ेगा ही....जैसी टिप्पणी करके पार्टी में सबकुछ ओके दिखाने का प्रयास किया जाता रहा। बहरहाल माना जा रहा है कि पार्टी में उठ रहीं इस तरह की अनियमितताएं जनता की नजरों में पार्टी की छवि को धूमिल कर रही हैं। जहां आजम खान बुलंदशहर मामले पर राजनीतिक साजिश करार देकर पार्टी की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं, वहीं अमर सिंह इस्तीफे की धमकी देकर आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारियों में खलल पैदा कर रहे हैं।
कितनी मजबूत कितनी कमजोर है सपा
हाल ही में हुए मीडिया सर्वेक्षणों में भले ही समाजवादी पार्टी को बेहद मजबूत दिखाया गया हो। लेकिन इस तरह के छोटे छोटे विवादों के साथ पार्टी पर नकारात्मक असर जरूर पड़ रहा है। रही बात सपा की मजबूती की तो उसकी प्रमुख वजह हैं युवा सीएम अखिलेश यादव और उनके द्वारा लगातार योजनाओं के पुलिंदे जनता के मन में बांधना। लेकिन भाजपा भी मजबूत स्थिति की ओर तेजी से बढ़ रही है। फिर वो सेंधमारी के जरिए हो या फिर विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए। देखना दिलचस्प होगा कि किस तरह से सपा इन आंकड़ों को अपने पक्ष में रख पाती है या फिर नहीं।
गिले-शिकवे दूर करा रहे हैं मुलायम
जमीन पर कब्जे एवं अन्य मुद्दों पर परिवार में उभरे मतभेदों को सुलझाने के लिए खुद मुलायम को उतरना पड़ा। बीते कल सपा सुप्रीमो ने अखिलेश यादव, रामगोपाल यादव और शिवपाल के साथ बातचीत कर सारे गिले शिकवे दूर कराए। लेकिन असल मायने में ये शिकवे कब तक नहीं उभर कर आते ये देखने वाली बात होगी। क्योंकि सूबे में विधानसभा चुनावों को देखते हुए फिर से सपा के भीतर ही मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर आपसी टकराव लगभग तय माना जा रहा है।
विश्लेषकों की राय
राजनीति के जानकारों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में यादव मतदाता सपा का निश्चित वोटबैंक है। जिसकी पलायन की संभावनाएं नहीं हैं। ऐसे में तकरीबन पिछड़े वर्ग के 39 फीसदी में से 13 फीसदी यादव मतदाता , और 19 फीसदी अल्पसंख्यक मतदाताओं में लगभग 10 फीसदी सपा के साथ फिर से हो सकता है। लेकिन सपा ये अच्छी तरह से जानती है कि प्रदेश का मुसलमान आजम से ज्यादा खुश नहीं है। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम इन मुस्लिम वोटरों में सेंध लगाने के मकसद में यूपी चुनावों में खुद की हाजिरी लगाने आ रही है। ऐसे में आपसी तमाम मतभेदों को दूर रखकर पार्टी को सधी हुई तैयारी करनी होगी। साथ ही आजम को अपनी जुबान पर लगाम लगानी होगी।