क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

इस लेख को पढ़कर दूर हो जाएंगी आधार पर आपकी गलतफहमियां

पहचान के सबूत की तरह आधार को सभी जानते हैं। बहुत से लोग मानते हैं कि वह आधार को पूरी तरह से समझते हैं, लेकिन अभी भी लोगों के मन में कई गलतफहमियां हो सकती हैं।

By श्रीकांत कारवा
Google Oneindia News

नई दिल्ली। कुछ मीडिया रिपोर्ट में आधार और इसके दुरुपयोग के बारे में चर्चा की जा रही है। लोगों के इस बारे में अलग-अलग विचार हो सकते हैं, लेकिन आधार के बारे में तथ्य एकदम साफ हैं। मैं एक आर्टिकल लिख रहा हूं जो कुछ सामान्य की दिक्कतों को ध्यान में रखते हुए आधार के बारे में बेसिक बातें आपको बताएगा।

पहचान के सबूत की तरह आधार को सभी जानते हैं। बहुत से लोग मानते हैं कि वह आधार को पूरी तरह से समझते हैं, लेकिन अभी भी लोगों के मन में कई गलतफहमियां हो सकती हैं। यूआईडीएआई भारत के नागरिकों को ऑनलाइन वेरिफिकेशन सेवा के साथ एक यूनीक आईडी मुहैया कराने का काम करता है। यूआईडीएआई का आधार के साथ लिंक किसी भी सर्विस डिलीवरी से कोई लेना-देना नहीं है।

आधार को समझने के दो तरीके हैं-

1- आधार को समझने का एक आसान तरीका

1- आधार को समझने का एक आसान तरीका

आधार एक शुद्ध आईडी यूटिलिटी है। यह उन प्रोग्राम की तरह नहीं है, जहां आईडी उस प्रोग्राम का सिर्फ एक हिस्सा होता है, जैसे पासपोर्ट, पैन, पहचान पत्र आदि। इसलिए सर्विस डिलीवरी की प्रक्रिया में आने वाली दिक्कतों को आईडी सिस्टम की दिक्कत माना जाता है।

आईडी सिस्टम वास्तविकता और इसकी लिमिटेशन (सीमाओं) के साथ काम करता है और सर्विस डिलीवरी ऑर्गेनाइजेशन (भले ही वह बैंक हो या पीडीएस हो) को इस वास्तविकता की पहचान करनी होती है और एक सुरक्षित तंत्र बनाते हुए इसका सर्वेत्तम संभव फायदा उठाना होता है। आधार को समझने के एक आसान तरीका यह है कि इसे एक नई तरह की यूटिलिटी की तरह देखना चाहिए, जैसे बिजली। जिस तरह से कभी-कभी बिजली चली जाती है (और आप मोमबत्ती जलाते हैं), ठीक उसी तरह से कभी-कभी आधार सेवाएं भी कुछ परिस्थितियों में काम नहीं करती हैं और सर्विस डिलीवरी ऑर्गेनाइजेशन को इस वास्तविकता का ध्यान रखना बहुत जरूरी है।

इस तरह आप दो काम कर सकते हैं- या तो आप यह चुन लें कि आपको बिजली का इस्तेमाल करना है या नहीं, या फिर आप समझ सकते हैं कि ये काम कैसे करता है और जिंदगी को बेहतर बनाने में मददगार कैसे हो सकता है। इसी तरह से, एक सर्विस प्रोवाइडर को भी यह समझना चाहिए कि वह आधार यूटिलिटी का कैसे सबसे अच्छा इस्तेमाल कर सकता है और इसकी असफलताओं को संभाल सकता है, ताकि यह सर्विस डिलीवरी के रास्ते में कोई रुकावट पैदा न करे।

एक आसान सा उदाहरण है कि आधार उन लोगों को भी मुहैया कराया जाता है, जिसके हाथ नहीं है और आंखें नहीं है (बायोमीट्रिक डेटा नहीं है)। इन लोगों को बायोमीट्रिक अपवाद की तरह माना जाता है और कुछ अतिरिक्त जांच के बाद आधार जारी किया जाता है, ताकि इस सेवा को कोई दुरुपयोग न किया जा सके।

इस तरह के लोग कभी भी बायोमीट्रिक पहचान नहीं दे सकते। ऐसे लोग ओटीपी ऑथेंटिकेशन दे सकते हैं, लेकिन मान लीजिए कि उनके पास मोबाइल फोन न हो (क्योंकि आधार कार्ड बनवाने के लिए मोबाइल नंबर जरूरी नहीं है)। यह वास्तविकता है और यह सर्विस प्रोवाइडर की जिम्मेदारी है कि वह इस तरह के मामलों से निपटने के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था करे। इस तरह के मामलों से निपटने के लिए कई तरीके हैं- आधार से पहले के दिनों की तरह सेवा दी जाए, फोटो आईडी वेरिफिकेशन किया जाए आदि।

2- समझने का दूसरा तरीका

2- समझने का दूसरा तरीका

आधार आईडी यूटिलिटी को समझने में दूसरी बड़ी चुनौती यह है कि विकसित दुनिया में कोई ऐसी यूटिलिटी नहीं है, जिससे आधार यूटिलिटी की तुलना की जा सके। किसी भी देश का आईडी सिस्टम जन्म की रजिस्ट्री (बर्थ रजिस्ट्री सिस्टम) के साथ शुरू होता है। भारत समेत अधिकतर विकासशील देशों में पूरे देश में जन्म की रजिस्ट्री नहीं होती है। 2008 में वर्ल्ड बैंक के अनुमान के मुताबिक सिर्फ 52.8 फीसदी बच्चों का जन्म ही अस्पताल या डॉक्टर की मौजूदगी में हुआ था। देश के आईडी सिस्टम में किसी व्यक्ति के जन्म का समय और स्थान रिकॉर्ड होना उसके यूनीक होने का सबसे बड़ा सबूत होता है। विकसित देशों में 99 फीसदी बच्चों का जन्म अस्पताल में होता है, जिसके चलते उसे जन्म के समय होने वाली रजिस्ट्री उन देशों को उनका यूनीक आईडी सिस्टम देता है, वो भी बिना किसी बायोमीट्रिक पहचान के।

भारत जैसे विकासशील देशों में बर्थ रजिस्ट्री सिस्टम न होने की वजह से यहां पर एक ऐसे सिस्टम की जरूरत है, जिससे यूनीक आईडी दी जा सके। इसके लिए यूआईडीएआई ने बायोमीट्रिक को चुना है। देश की कई सर्विस एजेंसी इस आईडी का फायदा उठा सकती हैं। अगर कोई सर्विस डिलीवरी एजेंसी अपने ग्राहकों के डेटाबेस की यूनीकनेस को सुनिश्चित करना चाहती है तो वह आधार से अपने डेटाबेस को इंटीग्रेट कर सकती है। इस तरह से वह अपने सिस्टम से उन ग्राहकों को आसानी से हटा सकती है, जिनकी एंट्री एक से अधिक बार हुई है।

इसके अलावा कुछ और भी मुद्दे हैं, जो ध्यान में आए-

A- ऑथेंटिकेशन फेल होने की वजह से सेवा न मिलना

A- ऑथेंटिकेशन फेल होने की वजह से सेवा न मिलना

यह काफी रोचक है कि जिस तरह कुछ मीडिया रिपोर्ट किसी सेवा के लिए ऑथेंटिकेशन के फेल हो जाने को उस सेवा का न मिलना मान रहे हैं। क्या किसी ने चेक किया कि अगला ऑथेंटिकेशन ट्रांजेक्शन सफल हो जाता है और वो भी उसी व्यक्ति के लिए। साथ ही, अगर कोई आपका आधार नंबर डालता है और अपना फिंगरप्रिंट देता है तो आप क्या चाहते हैं कि सिस्टम उसे स्वीकार करे या अस्वीकार करे? इसलिए किसी सेवा के लिए आधार ऑथेंटिकेशन फेल होने का मतलब वह सेवा देने से मना करना बिल्कुल नहीं है। ऑथेंटिकेशन फेल होना और बैकअप मैकेनिज्म को समझने की जरूरत है।

अगर कोई व्यक्ति वाकई जानना चाहता है कि 'सेवा न देने' का मतलब क्या है तो उसे सर्विस डिलीवरी (बैंक, पीडीएस आदि) की प्रक्रिया को समझने की जरूरत है। उसे यह भी समझने की जरूरत है कि कैसे सर्विस देते समय कोई सर्विस प्रोवाइडर डेटा इकट्ठा करता है। आधार सिर्फ ऑथेंटिकेशन करने का एक विकल्प है और इसके फेल होने का मतलब सेवा देने से मना करना बिल्कुल नहीं है।

बहुत से सर्विस प्रोवाइडर ऐसे मामलों से निपटने के लिए किसी अन्य विकल्प का इस्तेमाल करते हैं, जहां पर बायोमीट्रिक ऑथेंटिकेशन काम नहीं करता है। उदाहरण के लिए, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में पीडीएस सिस्टम में आने वाली बायोमीट्रिक एरर को कम करने की सभी कोशिशें की गईं। जब सभी फेल हो गईं तो एक अधिकारी ने आदेश दिया कि सभी को भोजन मिलना सुनिश्चित हो।

गलती से पहचान अस्वीकार करने की घटनाओं को कम करना

यह जानना बहुत ही जरूरी है बायोमीट्रिक ऑथेंटिकेशन एक्जैक्ट मैच साइंस (एक जैसी पहचान की तुलना) नहीं है। यूआईडीएआई किसी भी डिवाइस को सर्टिफाई करने के लिए एसटीक्यूसी पर भरोसा करता है। सर्टिफिकेशन की प्रक्रिया में लेबोरेट्री टेस्ट के अलावा इन डिवाइस को फील्ड में जाकर लोगों पर टेस्ट किया जाता है। सिर्फ उन्हीं डिवाइस को सर्टिफाई किया जाता है, जो थोड़ा बहुत ऊपर-नीचे रिजल्ट देती हैं। इसलिए हर सर्टिफाइड फिंगरप्रिंट सेंसर 2 फिंगर ऑथेंटिकेशन के जरिए तीन कोशिशों में 98 फीसदी तक सही रिजल्ट दे सकता है। आईरिस सेंसर और भी अधिक सही रिजल्ट देता है। सर्विस प्रोवाइडर्स को इसे ध्यान में रखना चाहिए (वरना इसे बंद ही कर देना उचित है)। ऑथेंटिकेशन फेल होना व्यक्ति, ऑपरेटर, एनरोलमेंट के समय लिए गएं फिंगर प्रिंट की क्वालिटी और कई अन्य बातों पर निर्भर करता है, जिसे प्रोसेस के जरिए बेहतर किया जा सकता है।

सिर्फ फिंगरप्रिंट के लिए:

एक उंगली की जगह दो उंगलियों से ऑथेंटिकेशन टेस्ट- यह अकेले ही ऑथेंटिकेशन की दर को काफी अधिक बढ़ा देता है और साथ ही इसे लागू करना भी काफी आसान है।

एक से अधिक कोशिशें (मल्टिपल अटेंप्ट)- इस प्रक्रिया में ऑथेंटिकेशन के स्वीकार किए जाने की दर भी काफी बढ़ जाती है। फील्ड में सामान्य रूप से ऐसा ही किया जाता है। अगर ऑथेंटिकेशन फेल होता है तो व्यक्ति दोबारा कोशिश करता है और हर अतिरिक्त कोशिश के साथ सफलता के मौके बढ़ते जाते हैं। यह प्रक्रिया ठीक उसी तरह है कि आप टाइपिंग एरर से बचने के लिए कई बार अपना पासवर्ड टाइप करके लॉगिन करने की कोशिश करते हैं।

बेस्ट फिंगर डिटेक्शन (बीएफडी)- यूआईडीएआई के पास एक प्रक्रिया है, जिससे वह ऑथेंटिकेशन के लिए किसी यूजर की बेस्ट फिंगर का पता लगाने में उसकी मदद करते हैं। इससे भी गलतियों की दर कम होती है।

एक अतिरिक्त बायोमीट्रिक को अनुमति दें जैसे कि आईरिस, जिसमें सफलता की दर बेहतर होती है।

अगर ओरिजनल एनरोलमेंट डेटा ही बेकार क्वालिटी का होगा, तो बेस्ट फिंगर डिटेक्शन प्रोसेस इस दिक्कत को पहचान सकता है और बायोमीट्रिक अपडेट का सुझाव दे सकता है।

यूं तो यूआईडीएआई इन सबसे जुड़े दिशा-निर्देश जारी करता है, लेकिन यह उस एजेंसी (सर्विस प्रोवाइडर) की जिम्मेदारी है कि वह ऑथेंटिकेशन के फेल होने की दर को समझे और उसे घटने के लिए कोशिशें करे।

B- लागत बनाम फायदा, बचत आदि

B- लागत बनाम फायदा, बचत आदि

आधार की लागत, फायदे और इससे होने वाली बचत को लेकर कई तरह से आंकड़े सामने आ रहे हैं। मेरे हिसाब से इसका कोई मतलब नहीं है, ऐसा क्यों है कि जो मैं कहता हूं वह सही है और जो तुम कहते हो वह गलत है। आधार को सरकार की सर्विस डिलीवरी को बेहतर बनाने के लिए लाया गया था। आधार को सिस्टम में लाने का क्रेडिट किसे दिया जाए यह भी एक मुश्किल काम है। हालांकि, इसे अपनाने की प्रक्रियाय जारी है (क्योंकि यह काम कर रही है)।

आधार की वजह से हर नागरिक को एक वेरिफिएबल पहचान मिली है और सरकार के साथ किए गए हर ट्रांजेक्शन की अकाउंटेबिलिटी भी आसान होती है। इसका विरोध सिर्फ वह लोग कर रहे हैं जिन्हें मौजूदा सिस्टम से फायदा है या फिर किसी अन्य सिस्टम से फायदा है, जैसे स्मार्ट कार्ड।

C- देश के अधिकतर लोगों के पास पहले ही आइडेंटिटी है

C- देश के अधिकतर लोगों के पास पहले ही आइडेंटिटी है

आधार के आने से पहले सबसे प्रचलित आईडी थी वोटर आईडी कार्ड। हालांकि, वोटर आईडी कार्ड की कोई ऐसी गारंटी नहीं है कि वह यूनीक है और साथ ही यह 18 साल से कम की उम्र के लोगों के लिए उपलब्ध भी नहीं है। साथ ही डुप्लिकेट वोटर आईडी कार्ड की संभावनाएं भी रहती हैं (लोग नया वोटर आईडी कार्ड बनवा लेते हैं, लेकिन पुराना सरेंडर नहीं करते हैं)।

दूसरी सबसे प्रचलित आईडी कार्ड है राशन कार्ड। इसमें घर के प्रमुख के साथ-साथ उसके परिवार के सभी सदस्यों की जानकारी होती है। इसमें सबकी उम्र (ना कि जन्म तिथि) होती है, जो राशन कार्ड जारी करने के दिन के हिसाब से मानी जाती है। कुछ राज्यों में राशन कार्ड में घर के प्रमुख की तस्वीर भी होती है। राशन कार्ड सिर्फ उसी राज्य में लागू होता है, जहां पर उसे जारी किया गया होता है। साथ ही, राशन कार्ड सिर्फ घर के प्रमुख के लिए ही आईडी कार्ड की तरह काम करता है, न कि परिवार के अन्य लोगों के लिए। यह सिस्टम लिंग के हिसाब से काफी पक्षपाती है, जिसके चलते बहुत सी महिलाओं को इस्तेमाल करने के लिए आईडी नहीं मिल पाती। साथ ही इस सिस्टम में नकली राशन कार्ड बनने की भी आशंकाएं रहती हैं।

आधार के चलते घर के हर सदस्य के पास उसकी अपनी आईडी है। एक पोर्टेबल, ऑनलाइन इलेक्ट्रॉनिक तरीके से वेरिफाई हो सकने वाली आईडी, जो पूरे देश में कहीं भी स्वीकार हो, लोगों के लिए काफी काम की है।

D- डेटा पर कंट्रोल

D- डेटा पर कंट्रोल

आप उस डेटा पर कंट्रोल नहीं पा सकते हैं जो कुछ कंपनियां आपके बारे में इकट्ठा करती हैं। आपका फोन नंबर ट्रू कॉलर पर है (आपके नाम के साथ), क्योंकि आपका नंबर किसी और की फोन बुक में है। ठीक ऐसा ही बहुत से अन्य सिस्टम के लिए भी है और उनके बारे में आपको जानकारी नहीं होती है। साथ ही, कोई भी डेटा जो आपके बारे में अन्य लोगों के पास है, वह कानून की धारा के तहत कई तरह की प्रक्रियाओं में उपलब्ध होता है। और जैसा कि एडवार्ड स्नोडन ने बताया है, कई बार यह बिना प्रोसेस के ही एक्सेस किया जा सकता है।

आधार के मामले में कानून आपके डेटा की हिफाजत करता है। आधार एक्ट किसी भी ऑर्गेनाइजेशन को आपका डेटा इकट्ठा करने, इस्तेमाल करने या फिर किसी के साथ किसी भी काम के लिए शेयर करने की अनुमति नहीं देता है, सिवाए आपकी ओरिजनल एप्लिकेशन के। हम इस तरह की कई अन्य सुरक्षा के बारे में मांग कर सकते हैं।

कंक्लूजन

कंक्लूजन

मौजूदा डेटाबेस आधार सिस्टम के एक निश्चित लोगों तक पहुंचने के बाद मिलने वाला रिजल्ट है। यह अच्छा होगा कि हम कुछ आगे बढ़ने वाली चर्चाएं करें और जहां अभी हैं उससे आगे बढ़ें और साथ ही इस पर बात करें कि किसी तरह से लोगों का निजी डेटा सुरक्षित रखा जा सकता है।

बहुत से लोगों के एक साथ विरोध का मतलब है कि कुछ भारतीयों को सरकार पर भरोसा नहीं है। आधार की वजह से रिटेल करप्शन में भी काफी कमी आ रही है। यह समझना काफी आसान है कि बहुत सी लॉबी हैं, जो लोगों को गलत जानकारी पहुंचा रही हैं और भटका रही हैं, जिसकी वजह से लोग अपना भरोसा भी खो रहे हैं।

मैं भी इसी देश का एक व्यक्ति हूं। मुझे भी बाहर भेजा जाना पसंद नहीं है ना ही मैं बिग-ब्रदर सिस्टम चाहता हूं। मैं पूरी तरह से उन मांगों का समर्थन करता हूं, जिनमें निजी जानकारी की रक्षा के लिए कानून को बेहतर बनाने की बात की गई है। अगर आधार पर बहस इसे बेहतर बनाने के तरीके, सिक्योरिटी बढ़ाने, अच्छे प्रदर्शन आदि की तरफ बढ़ती है, तो इससे दिशा में एक अच्छी कोशिश होगी।

(यह सभी विचार लेखक के है। लेखक श्रीकांत कारवा ने यूआईडीएआई प्रोजेक्ट पर इसके शुरुआती डिजाइन और लागू करने को लेकर काम किया था।)

Comments
English summary
Understanding Aadhaar and debunking controversies
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X