तीन बार तलाक की प्रथा है बड़ी चुनौती, बढ़ें हैं अलगाव के मामले
लखनऊ। तलाक के मामलों में ईसाई व बौद्ध धर्म में अधिक हैं, जबकि जैन धर्म में सबसे कम तलाक के मामले सामने आते हैं। 2011 के जनगणना के आंकड़ों पर नजर डालें तो हिंदुओ में तलाक के मामले मुस्लिमों से अधिक हैं, ऐसे में जो एक बहस हमेशा से होती रही है कि तीन बार तलाक कहने से तलाक होने जाने की परंपरा मुसलमानों में गलत है, इसपर पर जनगणना के आंकड़े फिर से सोचने को मजबूर करते हैं।
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हिंदू धर्म में विधवाओं की संख्या प्रति 1000 88.3, मुसलमानों में 72 है। जबकि अलग रहने वाले महिलाओं की संख्या हिंदुओं में प्रति 1000 पर 5.5 तो मुसलमानों में 4.8 है। वहीं तलाक के आंकड़ों पर नजर डालें तो हिंदुओं में प्रति 1000 यह 1.8 तो मुसलमानों में यह 3.4 है।
जीवनकाल में मृत्यु के चलते विधवा होने के मामले बौद्ध व ईसाई में अधिक
जिन लोगों ने मृत्यु की वजह से अपने माता-पिता को खो दिया है उसमें बौद्ध व ईसाई धर्म के लोग सबसे अधिक हैं। वहीं ईसाई धर्म के लोग बौद्ध धर्म के बाद दूसरे स्थान पर हैं। वहीं विधवा महिलाओं पर नजर डालें तो मुस्लिमों की तुलना में हिंदू और सिख धर्म की महिलायें कहीं अधिक हैं।
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सामाजिक तानेबाने की वजह से हिंदुओं में तलाक का दर कम
हिंदू दंपति में अलगाव पर नजर डालें तो यह एक हजार शादीशुदा जोड़ों में 5.5 फीसदी है, जबकि तलाक के मामले प्रति 1000 में 1.8 फीसदी है। इसमें वह आंकड़े भी शामिल हैं जिनमें पति ने पत्निओं को स्वीकार नहीं किया है। तलाक के तलाक की तुलना में अलग रहने वाली महिलाओं के आंकड़े में अधिकता की वजह सामाजिक तानाबाना माना जाता है। हिंदुओं में तलाक को सामाजिक बुराई के तौर पर देखा जाता है जिसके चलते यह आंकड़ा अधिक है।
मुस्लिमों में तीन बार तलाक कहने के चलते तलाक के मामले बढ़े हैं, यह आंकड़ा प्रति 1000 तलाक पर पांच फीसदी है। इस बढ़े हुए आंकड़े की वजह तीन बार तलाक कहने की प्रथा की वजह से हैं। वहीं हिंदुओं, सिख व जैन में तलाक का फीसदी प्रति एक हजार 2 से 3 फीसदी है।
मुस्लिमों में मृत्यु दर भी विधवाओं में संख्या के अधिक होने की वजह मुस्लिम महिलाओं में विधवाओं की संख्या में अधिक होने की एक अहम वजह मृत्यु दर है। मुसलमानों में मृत्यु की औसत का अधिक होना। मुसलमानों में प्रति 1000 पुरुषों में मृत्यु होने वाली संख्या 73 है, जबकि हिंदू, सिख में यह 88, ईसाई में 97 व बौद्ध धर्म में यह 100 है।
विवाह योग्य पुरुष महिला सबसे कम हिंदुओं में
वहीं विवाह योग्य पुरुष और महिलाओं के मामले में सबसे कम अविवाहितों की संख्या हिंदुओं में। कानूनी रूप से विवाह के लिए पुरुषों की 21 व महिलाओं की न्यूनतम आयु 18 के आधार पर हिंदुओं में अविवाहित विवाह योग्य पुरुषों की संख्या 16 व महिलाओं की 10 फीसदी है। इसकी अहम वजह कम उम्र में विवाह है, जिसके चलते यह संख्या सबसे कम हिंदुओं में है।
ईसाई पुरुषों में यह संख्या सबसे अधिक 21 फीसदी व महिलाओं में 18 फीसदी है। लेकिन अगर सभी धर्म संप्रदाय को एक साथ रखें तो विवाह योग्य अविवाहित महिलाओं की संख्या पुरुषों की तुलना में काफी कम है। जिसकी मुख्य वजह महिलाओं पर परिवार की ओर से लगातार डाले जा रहे विवाह का दबा है।