जानिए विवादित कानून अफस्पा के बारे में 10 खास बातें
नई दिल्ली। मणिपुर की 'आयरन लेडी' इरोम शर्मिला अपनी 16 वर्षों से जारी भूख हड़ताल खत्म करने जा रही हैं। उनके हड़ताल खत्म करने के साथ ही एक बार फिर से आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट यानी अफस्पा फिर से खबरों में है।
नॉर्थ ईस्ट और कश्मीर में लागू यह कानून हमेशा विवादों में रहा है। वर्ष 2010 में जब कश्मीर में छह माह तक कर्फ्यू जारी रहा था तो इस कानून ने काफी सुर्खियां बटोरी थीं।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले माह कहा था कि उन इलाकों में जहां अफस्पा लागू है, इंडियन आर्मी या फिर पैरामिलिट्री फोर्सेज अपनी ताकत का एक सीमा के बाहर प्रयोग नहीं कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश मणिपुर में वर्ष 2000 से 2012 तक हुईं 1,528 मौतों की सीबीआई जांच या फिर विशेष जांच की मांग करती एक याचिका पर सुनाया था। आलोचक इन मौतों के लिए इंडियन आर्मी को ही जिम्मेदार बताते आए हैं।
आइए आज इसी कानून से जुड़ी 10 बातों के बारे में जानिए और जानिए कि आखिर क्यों यह कानून हमेशा विवादों रहता है। आगे की स्लाइड्स में जानिए इसकी 10 खास बातें।
क्या है अफस्पा
अफस्पा वर्ष 1958 में पहली बार अस्तित्व में आया था जब नागा उग्रवाद पर नियंत्रण करने के लिए आर्मी के साथ राज्य और केंद्रीय बल को गोली मारने, घरों की तलाशी लेने के साथ ही उस प्रॉपर्टी को अवैध घोषित करने का आदेश दिया गया था जिसका प्रयोग उग्रवादी करते आए थे। सिक्योरिटी फोर्सेज को तलाशी के लिए वारंट की जरूरत नहीं होती थी।
किन-किन राज्यों में लागू अफस्पा
असम, जम्मू कश्मीर, नागालैंड और इंफाल म्यूनिसिपल इलाके को छोड़कर पूरे मणिपुर में यह कानून लागू है। वहीं अरुणाचल प्रदेश के तिराप, छांगलांग और लांगडिंग जिले और असम से लगी सीमा पर यह कानून लागू है। वहीं मेघालय में भी सिर्फ असम से लगती सीमा पर यह कानून लागू है।
क्या है अफस्पा के तहत तनावपूर्ण क्षेत्र
राज्य या केंद्र सरकार उस इलाके को तनावपूर्ण इलाका मानती है जहां पर किन्हीं वजहों से अलग-अलग धर्मों, जाति, विभिन्न भाषाओं के बोलने वालों के बीच विवाद रहता है।
क्या है राज्यपाल की ताकत
इस कानून का सेक्शन (3) राज्याल को यह ताकत देता है कि वह भारत के गजट के तहत एक आधिकारिक अधिसूचना जारी कर नागरिकों की मदद के लिए सेना भेज सके। एक बार अगर कोई क्षेत्र तनावपूर्ण घोषित हो जाता है तो फिर कम से तीन माह तक वहां पर सेना की तैनाती रहती है। यह तैनाती डिस्टर्ब्ड एरियाज (स्पेशल कोर्ट्स) एक्ट 1976 के तहत होती है।
राज्य सरकार का रोल
राज्य सरकार के पास अधिकार होता है वह सलाह दे सके कि राज्य में इस कानून की जरूरत है या फिर नहीं। लेकिन सेक्शन (3) के तहत केंद्र सरकार या फिर सरकार इस सलाह को खारिज कर सकते है।
शुरुआत में सिर्फ असम और मणिपुर के लिए
शुरुआत में यह कानून सिर्फ असम और मणिपुर के लिए ही था क्योंकि वहां पर नागा उग्रवाद बढ़ता जा रहा था। लेकिन वर्ष 1971 में इसे मणिपुर, त्रिपुरा, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश तक विस्तृत कर दिया गया। इन राज्यों ने इस कानून में संशोधन के रास्ते भी खोले।
जम्मू कश्मीर में स्थिति
जम्मू कश्मीर में वर्ष 1992 में डिस्टर्ब्ड एरियाज (स्पेशल कोर्ट्स) एक्ट लागू किया गया। इसके बाद वर्ष 1998 में इस कानून को हटाया गया लेकिन राज्यपाल ने अफस्पा के सेक्शन (3) तहत इसे तनावपूर्ण इलाका घोषित किया था।
अफस्पा को लेकर बहस
इंडियन आर्मी अफस्पा को हटाने के खिलाफ है। कई लोगों का कहना है कि अगर यह कानून हटाया गया तो फिर सेना का मनोबल कम हो जाएगा और आतंकवादी सेना के खिलाफ याचिका दायर करना शुरू कर देंगे।
क्या कहते हैं आलोचक
आलोचकों का कहना है कि यह कानून आतंकवाद को रोकने और सामान्य स्थिति बहाल करने में नाकाम रहा है। सेना की तैनाती बढ़ती गई है और कई इलाकों में सेना की वजह से ही तनाव बढ़ रहा है। वर्ष 2005 में जस्टिस जीवन रेड्डी कमेटी इस कानून का आकलन करने के लिए बनाई गई। कमेटी ने अफस्पा को हटाने की सिफारिश की थी।
पंजाब और चंडीगढ़ में भी लगा अफस्पा
पंजाब और चंडीगढ़ में वर्ष 1983 में अफस्पा लगाया गया था। ये दोनों ही राज्य देश के पहले ऐसे राज्य बने जहां पर इस कानून को हटाया गया। 14 वर्षों तक लागू रहने के बाद वर्ष 1997 में इस कानून को हटा लिया गया। वहीं वर्ष 2008 में डिस्टर्ब्ड एरियाज (स्पेशल कोर्ट्स) एक्ट भी हटा लिया। हालांकि चंडीगढ़ में यह सितंबर 2012 तक लागू रहा था।