ना लोकपाल, ना जनलोकपाल अब सिर्फ केजरीवाल और केजरीवाल
नई दिल्ली। दिल्ली के जंतर-मंतर और फिर रामलीला मैदान से लोकपाल-लोकपाल पास करो जनलोकपाल के नारों के साथ शुरु हुए अन्ना आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी आज खुद ही अपनी मूल मांग को ना सिर्फ भूल चुकी है बल्कि अब खुद ही लोकपाल का खुलेआम मखौल उड़ा रही है।
राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में जिस तरह से पार्टी के लोकपाल एडमिरल रामदास को बैठक में नहीं घुसने दिया और उन्हें लोकपाल के पद से हटा दिया। उससे साफ ही कि पार्टी के भीतर लोकपाल सिर्फ जोकपाल बनकर रह गया है। महज ढाई साल के भीतर आम आदमी पार्टी किसी भी परंपरागत पार्टी से कहीं आगे निकल गयी है।
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दिल्ली चुनाव के दौरान पार्टी के भीतर उम्मीदवारों के चयन से लेकर, चुनाव प्रचार के दौरान शराब और पैसे बांटे गये यही नहीं इस चुनाव के दौरान कई आरोप पार्टी पर लगे। लेकिन सारे आरोपों को दरकिनार करते हुए अरविंद केजरीवाल ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में कहा कि मैं जीतने के लिए आया हूं और हारने की राजनीति नहीं करता है।
आपने कई बार पार्टी के भीतर विवाद या कलह सुना होगा लेकिन शनिवार को जिस तरह से पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में जूतम-पैजार से लेकर गाली गलौज हुई वह आजतक की भारतीय राजनीति के इतिहास में कभी नहीं हुआ। पार्टी के भीतर वो चार चेहरे जिन्हें हमेशा पार्टी की रीढ़ माना जाता था उन्हें बैठक से धक्के मारकर भगा दिया गया।
अरविंद केजरीवाल का तानाशाही रवैया जिस तरह से पार्टी पर हावी हो रहा है उससे ना सिर्फ पार्टी के एक बड़े तबके बल्कि अन्ना आंदोलन से जुड़े लाखों लोगों की उम्मीद पर जबरदस्त कुठाराघात हुआ है। हाल ही के एक सर्वे में भी यह बात खुलकर सामने आयी है कि जिस तरह से पार्टी के भीतर सत्ता और पॉवर की घिनौनी लड़ाई शुरु हुई है उससे 81 फीसदी लोगों को लगता है कि पार्टी की छवि बुरी तरह से धूमिल हुई है।