सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंध के बावजूद तमिलनाडु के कई गांवों में खेला जा रहा है जानलेवा जल्लीकट्टू खेल
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु में जल्लीकट्टू खेल खेले जाने पर प्रतिबंध लगा रखा है, लेकिन इसके बावजूद यहां के कुछ गांवों में धड़ल्ले से इसका आयोजन किया जा रहा है।
चेन्नई। जहां एक ओर सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु में जल्लीकट्टू खेल पर रोक लगा रखी है, वहीं दूसरी ओर तमिलनाडु के गांवों में यह खेल धड़ल्ले से खेला जा रहा है। वन इंडिया को राजनीतिक पार्टी नाम तमिलर काटची की कुछ वीडियो मिली हैं, जिसमें तमिलनाडु के कुड्डालोर में तिरुवतिपुरम गांव में जल्लीकट्टू खेले जाने का कार्यक्रम बनाया गया है। इस पार्टी के मुखिया अभिनेता से पॉलिटीशियन बने सीमान हैं, जिन्होंने खुद दो बार जल्लीकट्टू पर प्रतिबंद लगाने के लिए आवाज उठाई थी। वीडियो में दिख रहा है काली ड्रेस पहने लड़के एक सांड से लड़ रहे हैं।
हालांकि,
यह
सिर्फ
एक
घटना
है,
इस
तरह
के
कई
वीडियो
तमिलनाडु
में
बन
रहे
हैं।
खासकर
मदुरई
क्षेत्र
में
यह
देखने
को
मिल
रहा
है
जहां
जल्लीकट्टू
खेला
जा
रहा
है।
अभी
तमिलनाडु
सरकार
जल्लीकट्टू
पर
से
प्रतिबंध
हटाने
की
कोशिशें
कर
रही
है
और
वहीं
दूसरी
ओर
सुप्रीम
कोर्ट
के
आदेश
का
उल्लंघन
करते
हुए
तमिलनाडु
की
कई
जगहों
पर
यह
खेल
खेला
जा
रहा
है।
सुप्रीम
कोर्ट
ने
2016
में
भी
तमिलनाडु
सरकार
को
इस
तरह
का
आयोजन
कराने
के
लिए
फटकार
लगाई
थी,
लेकिन
उस
समय
भी
जयललिता
द्वारा
चलाई
जा
रही
तमिलनाडु
सरकार
ने
ऐसे
किसी
भी
आयोजन
के
होने
से
मना
कर
दिया
था।
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के
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ना
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पर
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उसकी
बेटी
से
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दरअसल,
2014
में
सुप्रीम
कोर्ट
ने
जल्लीकट्टू
खेल
पर
यह
कहकर
प्रतिबंध
लगा
दिया
था
कि
यह
जानवरों
के
साथ
बर्बरता
वाला
खेल
है।
पिछले
साल
ही
सुप्रीम
कोर्ट
ने
तमिलनाडु
सरकार
की
उस
याचिका
को
भी
खारिज
कर
दिया,
जिसमें
उन्होंने
सुप्रीम
कोर्ट
से
उसके
2014
के
फैसले
पर
एक
बार
फिर
से
विचार
करने
की
मांग
की
थी।
जल्लीकट्टू
खेल
में
लोग
सांड
के
साथ
लड़कर
उसे
गिराते
हैं।
सुप्रीम
कोर्ट
पहले
ही
यह
कह
चुका
है
कि
तमिलनाडु
रेग्युलेशन
ऑफ
जल्लीकट्टू
एक्ट
2009
संवैधानिक
तौर
पर
गलत
है,
क्योंकि
यह
संविधान
की
धारा
254(1)
का
उल्लंघन
करता
है।
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Amazon
ही
नहीं
और
भी
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कंपनियां
कर
रही
हैं
तिरंगे
का
अपमान
पिछले
साल
8
जनवरी
को
केन्द्र
ने
एक
नोटिफिकेशन
जारी
करते
हुए
तमिलनाडु
में
जल्लीकट्टू
खेले
जाने
पर
लगे
प्रतिबंध
को
हटा
लिया
था
और
खेले
जाने
की
कुछ
शर्तें
निर्धारित
की
थीं।
इसे
एनिमल
वेलफेयर
बोर्ड
ऑफ
इंडिया,
पीपल
फॉर
एथिकल
ट्रीटमेंट
ऑफ
एनिमल
(पेटा)
इंडिया,
बेंगलुरु
के
एक
एनजीओ
और
कुछ
अन्य
लोगों
द्वारा
सुप्रीम
कोर्ट
में
चुनौती
दी
गई।
सुप्रीम
कोर्ट
8
जनवरी
को
केन्द्र
द्वारा
जारी
किए
गए
नोटिफिकेशन
पर
पहले
ही
रोक
लगा
चुका
है।
पिछले
साल
26
जुलाई
को
सुप्रीम
कोर्ट
ने
कहा
कि
जल्लीकट्टू
खेल
को
सिर्फ
इस
आधार
पर
अनुमति
नहीं
दी
जा
सकती
कि
वह
सदियों
पुरानी
परंपरा
है।